— श्रीमती पर्ल चौधरी, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री

“हम उस भारत में विश्वास करते हैं जो अपने विविध रंगों, स्वादों और संस्कृतियों से महकता है — जहां हर धर्म, हर भाषा, हर परंपरा को बराबर सम्मान मिलता है। यह भारत नफ़रत से नहीं, समरसता से बना है। लेकिन अफसोस, आज एक स्वयंभू बाबा — रामदेव — बार-बार इस भारत की आत्मा पर चोट कर रहे हैं।
उनका हालिया बयान जिसमें उन्होंने रूहअफ़ज़ा और हिमालया जैसे उत्पादों को ‘100% इस्लामी आस्था’ से जोड़कर हिंदुओं को उनसे दूर रहने की सलाह दी, और फिर ‘शर्बत जिहाद’ जैसा ज़हरीला शब्द गढ़ा — वह सिर्फ बेतुका नहीं, बल्कि गहराई से समाज को बाँटने वाला है।
रामदेव शायद भूल गए कि जब कोका-कोला, पेप्सी जैसे पेय भारत के बाज़ारों में नहीं थे, जब नींबू पानी और नारियल पानी प्लास्टिक की बोतलों में नहीं बिकते थे — तब रूहअफ़ज़ा हर भारतीय घर की रसोई में गर्मियों की सबसे प्रिय मिठास हुआ करता था।
यह सिर्फ एक शर्बत नहीं था — यह भारतीय संस्कृति में अतिथि देवो भव: की भावना का हिस्सा था।
आज जो सौभाग्यशाली दंपति 2025 में अपनी सिल्वर या गोल्डन जुबली मना रहे हैं, उनमें से न जाने कितनों का रिश्ता रूहअफ़ज़ा के स्वाद के बीच ही पक्का हुआ होगा। वह दौर धर्म नहीं, रिश्तों की गर्मजोशी और साझा स्वाद का दौर था।
और आज उसी शर्बत को सांप्रदायिक चश्मे से देखा जा रहा है — क्या यह हमारे सांस्कृतिक विवेक पर हमला नहीं है?
रामदेव की यह सोच केवल एक धर्म पर नहीं, बल्कि हमारे संविधान, हमारी साझी विरासत और भारत के उस सपने पर हमला है जिसे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे महापुरुषों ने मिलकर गढ़ा था।
उन्होंने एक ऐसा भारत देखा था जहाँ हर नागरिक को समान अधिकार मिले — चाहे उसकी आस्था कुछ भी हो। उन्होंने ऐसा संविधान रचा जो न केवल कानून की किताब है, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और साझी चेतना का प्रतीक है।
रामदेव जैसे लोग उस संविधान की आत्मा को बार-बार अपमानित कर रहे हैं।
वे धर्म के नाम पर समाज को बाँटते हैं, आध्यात्म के नाम पर व्यापार करते हैं, और अब ‘शर्बत जिहाद’ जैसी शब्दावली के जरिए देश के मूल स्वभाव को कलंकित कर रहे हैं।
सनातन धर्म कभी नफ़रत की शिक्षा नहीं देता। भगवान श्रीराम ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ हैं — जिनके आदर्शों में करुणा है, दया है, सबके लिए सम्मान है।
और रामदेव, उनके उलट, बन चुके हैं ‘मर्यादातोड़क’ — जिन्होंने न मर्यादा बचाई, न साधुता, और न ही देश के प्रति ईमानदारी।
भारत माता के संविधान में विश्वास रखनेवाला हर संवेदनशील नागरिक यह स्पष्ट कहता है —
हम उस भारत के साथ हैं जो रूहअफ़ज़ा के स्वाद में साझी विरासत खोजता है, जो संविधान के हर अक्षर में न्याय देखता है, और जो हर धर्म, हर नागरिक को गले लगाता है।
यह लड़ाई एक ब्रांड की नहीं — यह भारत की आत्मा की है।
हम संविधान के साथ हैं, बाबा साहब के सपने के साथ हैं,
और भारत माता की विविधता की रक्षा के लिए हर मंच पर डटकर खड़े रहेंगे।
जय भारत। जय संविधान।