“22 अप्रैल 2025 — यह दिन हर भारतीय के दिल में हमेशा एक टीस, एक न भरने वाला घाव बनकर रहेगा।”
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में हुआ भीषण आतंकी हमला न केवल 28 निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे राष्ट्र की अस्मिता, शांति और सभ्यता पर सीधा प्रहार है। जो पर्यटक वहां प्रकृति की सुंदरता देखने और कुछ शांत पल बिताने आए थे, वे आतंक की अंधी हिंसा का शिकार बन गए।
मैं इन मासूम नागरिकों के परिजनों के प्रति अपनी गहन संवेदना प्रकट करती हूँ। उनके दुख में पूरा राष्ट्र सहभागी है। यह आघात केवल कुछ परिवारों का नहीं, सम्पूर्ण भारतवर्ष का है।
इस हमले की जिम्मेदारी जिस आतंकी संगठन ‘द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF)’ ने ली है, वह असल में लश्कर-ए-तैयबा जैसे घृणित संगठनों का ही नया रूप है। ये संगठन यह भ्रम फैलाना चाहते हैं कि वे स्थानीय हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इनकी डोर सीमा पार से संचालित होती है। उनका एकमात्र उद्देश्य भारत की एकता, शांति और अखंडता को छिन्न-भिन्न करना है।
हम केंद्र सरकार से यह मांग करते हैं कि ऐसे संगठनों और उनके मददगारों को उदाहरणीय और कठोरतम सज़ा दी जाए — ऐसी सज़ा जो आतंकवाद को समर्थन देने वालों के लिए एक स्थायी चेतावनी बन जाए।
यह समझना जरूरी है कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। आतंकवादी केवल कायर होते हैं — वे मासूमों को निशाना बनाते हैं, समाज में भय फैलाते हैं, और मानवता से घृणा करते हैं।
इस घटना के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 6.2 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। यह संयोग है या न्याय का दैवी संकेत — इसका उत्तर समय देगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि न्याय का चक्र चल पड़ा है।
कांग्रेस पार्टी आतंकवाद की पीड़ा को भलीभाँति समझती है। हमने अपने दो महान नेताओं — श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री राजीव गांधी — को आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में खोया है। हमारे लिए आतंकवाद केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक निजी त्रासदी है, एक राष्ट्रीय संकल्प है।
यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे जी ने स्पष्ट घोषणा की है कि पार्टी भारत सरकार के उन हर ठोस कदम का समर्थन करेगी जो आतंकवाद के समूल नाश के लिए उठाए जाएं — चाहे वह सैन्य कार्रवाई हो, कूटनीतिक दबाव, आंतरिक सुरक्षा में सुधार या अंतरराष्ट्रीय सहयोग।
यह समय राजनीति का नहीं, एकता का है।
राष्ट्र की सुरक्षा, नागरिकों की जान और भारत की अखंडता से बड़ा कोई एजेंडा नहीं हो सकता।
हम दुख में हैं, लेकिन असहाय नहीं।
हम क्रोधित हैं, लेकिन संयमित हैं।
हम शांत हैं, लेकिन संकल्पित हैं।
हर आँसू, हर चुप्पी, हर टूटी साँस एक सवाल बनकर गूंज रही है — “कब तक?”
हम इस सवाल का उत्तर ढूंढेंगे, और उसे न्याय की मिसाल में बदलेंगे।
जय हिंद।