भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम, 22 अप्रैल। गुरुग्राम जैसे स्मार्ट सिटी के दावेदार जिले में शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत चिंताजनक होती जा रही है। अभिभावकों की परेशानी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, खासकर तब जब बच्चों के स्कूल में दाखिले का समय नज़दीक है। शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और सरकारी घोषणाओं के बीच बड़ा अंतर दिखाई देता है।

राज्य सरकार बार-बार कह रही है कि गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को बंद किया जाएगा। प्रशासन की ओर से भी ऐसे स्कूलों की सूची जारी करने की बात की गई थी, लेकिन गुरुग्राम के जिला शिक्षा विभाग ने अब तक कोई स्पष्ट सूची जारी नहीं की है। ऐसे में अभिभावक अंधेरे में हैं — उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा कि वे अपने बच्चों को किस स्कूल में दाखिला दें और किसमें नहीं।

मान्यता की आड़ में चल रही हैं कई ‘ब्रांचें’

गुरुग्राम में ऐसे अनेक स्कूल हैं जो “मान्यता प्राप्त” का दावा तो करते हैं, लेकिन वास्तव में मान्यता नहीं रखते। कुछ संस्थानों ने एक नाम से सरकारी मान्यता प्राप्त कर ली और फिर उसी नाम से शहर में कई शाखाएं खोल दीं, जबकि उन ब्रांचों के पास कोई वैध मान्यता नहीं है।

इस गोरखधंधे में अभिभावकों को भ्रमित किया जा रहा है, और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से इस स्पष्ट धोखाधड़ी पर कोई सख्त कार्रवाई या सार्वजनिक सूचना नहीं दी जा रही।

क्या यह विभागीय लापरवाही है या भ्रष्टाचार की बू?

यह सवाल अब आम हो चला है। क्या जिला शिक्षा विभाग ने जानबूझकर आंखें मूंद ली हैं? क्या इसमें निजी स्वार्थ या मिलीभगत का मामला है? या फिर विभाग की कार्यक्षमता ही इतनी सीमित है कि वह इस चुनौती से पार नहीं पा रहा?

क्या मुख्यमंत्री करेंगे इस यक्ष प्रश्न का समाधान?

हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी कल गुरुग्राम दौरे पर आने वाले हैं। आम जन की उम्मीदें उनसे जुड़ी हुई हैं।

क्या मुख्यमंत्री गुरुग्राम की इस गंभीर समस्या पर ध्यान देंगे?
क्या वे शिक्षा विभाग से जवाबदेही तय करेंगे?
क्या गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए जाएंगे?

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री इस विषय को सिर्फ़ सुनेंगे या उस पर कोई ठोस कार्रवाई का आश्वासन भी देंगे।

निष्कर्ष:

शिक्षा का अधिकार केवल नीति में नहीं, व्यवहार में भी नजर आना चाहिए। गुरुग्राम जैसे विकसित जिले में अगर अभिभावकों को यह तय करने में कठिनाई हो रही है कि कौन सा स्कूल वैध है और कौन नहीं, तो यह प्रशासनिक विफलता की एक बड़ी निशानी है।

अब बारी मुख्यमंत्री की है — क्या वे गुरुग्राम के भविष्य की नींव कहे जाने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों की आवाज़ सुनेंगे?

Share via
Copy link