गुरुग्राम — कभी भारत की सिलिकॉन वैली बनने के सपने देखने वाला यह शहर, आज भ्रष्टाचार की गर्त में डूबता जा रहा है। जब से नगर निगम अस्तित्व में आया है, तब से ही शहर की दुर्दशा की कहानी शुरू हो चुकी थी। खर्चों की भरमार है, योजनाओं की घोषणाओं की झड़ी है, लेकिन धरातल पर हालात जस के तस हैं। सड़कों के गड्ढे, सीवर की ओवरफ्लो, अधूरी परियोजनाएं और टूटी उम्मीदें — यह आज के गुरुग्राम की असल तस्वीर है।
जनता का सीधा सवाल है — जिम्मेदार कौन?

मुख्यमंत्री के मुख्य सचिव हों या अन्य आला अधिकारी — सभी आते हैं, बैठकों में गुरुग्राम के विकास की बात करते हैं, प्रेस में बयान देते हैं, पर नतीजा हमेशा ‘शून्य’। अधिकारियों की सक्रियता केवल मीडिया प्रचार और कमीशन के गणित में दिखाई देती है। आम नागरिकों की धारणा अब यह बन चुकी है कि गुरुग्राम नगर निगम एक भ्रष्टाचार सिंडिकेट बन चुका है, जिसमें कर्मचारी और पूर्व पार्षद भी हिस्सेदार हैं।
कागज़ों पर काम, हकीकत में धूल
सड़कों की हालत पर गौर कीजिए — चार महीने में बनती हैं, छह महीने में उखड़ जाती हैं। मानकों की बात करना मज़ाक बन चुका है। टेंडर की प्रक्रिया तक में गड़बड़झाला है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कुछ मंत्रियों से जुड़े लोग ही टेंडर हासिल कर रहे हैं, और बाकी ठेकेदारों को जानबूझकर तकनीकी आधारों पर रिजेक्ट किया जा रहा है।
जब रिश्वत नहीं दी तो रोक दिया भुगतान
एक ताज़ा मामला सामने आया है, जिसमें एक ठेकेदार ने तय मानकों के अनुसार कार्य किया और मौके के अधिकारियों ने बिल बना कर दस्तखत कर दिए, परंतु कुछ अधिकारियों ने पेमेंट पास करने के लिए ₹2 लाख की रिश्वत मांगी। जब ठेकेदार ने रिश्वत देने से मना कर दिया, तो भुगतान रोक दिया गया। शिकायत निगम आयुक्त और यहां तक कि मुख्यमंत्री की सीएम विंडो तक भी की गई, लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। संबंधित अधिकारी ने यहाँ तक कह दिया —
“कर ले जो करना है, मेरे संबंध कैबिनेट मंत्रियों से हैं, तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जितनी शिकायत करेगा उतना अधिक पैसा देना पड़ेगा।”
मुख्यमंत्री भी आये, लेकिन सिस्टम वही पुराना
23 अप्रैल को मुख्यमंत्री गुरुग्राम में कष्ट निवारण समिति की बैठक में आए। उन्होंने उसी भ्रष्ट अधिकारी पर बेगमपुर खटोला में सीवर की ओवरफ्लो की समस्या को लेकर कार्रवाई की बात कही। लेकिन जैसे ही वे वापस गए, निगम आयुक्त ने उसी भ्रष्ट अधिकारी को तीन-चार डिवीजन का अतिरिक्त चार्ज सौंप दिया। इतना ही नहीं, ऑर्डर की तारीख भी 22 अप्रैल रखी गई, जबकि उसे जारी किया गया मुख्यमंत्री की वापसी के बाद।
तो क्या सच में मंत्री और अधिकारी एक ही व्यवस्था का हिस्सा हैं?
गुरुग्राम में बड़े-बड़े नेता रहते हैं, भाजपा का सांगठनिक ढांचा भी बेहद मजबूत है। तो फिर सवाल ये उठता है — क्या सबको जानकारी नहीं है? या जानकारी होते हुए भी चुप्पी इसलिए है क्योंकि सब कहीं न कहीं इस व्यवस्था में हिस्सेदार हैं?
“तुम मेरी पीठ खुजलाओ, मैं तुम्हारी” — यह गुरुग्राम का नया मंत्र बन चुका है।
मुख्यमंत्री कहते हैं कि गुरुग्राम को ग्लोबल सिटी बनाएंगे। लेकिन जनता पूछ रही है — क्या गुरुग्राम एक सामान्य शहर बन भी पाएगा?
अब समय आ गया है कि प्रदेश सरकार इस सड़ांध की तह तक जाए। अगर गुरुग्राम को वाकई एक मॉडल शहर बनाना है, तो सबसे पहले इसकी अंदरूनी सफाई जरूरी है — और वह सिर्फ सीवर की नहीं, सिस्टम की होनी चाहिए।