“सेवा, सुरक्षा, सहयोग” के सामने सियासत का दबाव !
“सत्ताधारी पार्टी के परिजनों के सामने वर्दीधारी अधिकारी से माफीनामा पढ़वाना लोकतंत्र की रीढ़ पर सीधी चोट है” – पर्ल चौधरी
गुरुग्राम, सिरसा, 28 अप्रैल। हरियाणा पुलिस की वर्दी इस समय न सिर्फ सवालों के घेरे में है, बल्कि उसकी गरिमा पर भी राजनीतिक वंशवाद ने सीधा आघात किया है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में सिरसा के डीएसपी जितेंद्र राणा को भाजपा नेता मनीष सिंगला के सामने सार्वजनिक रूप से माफीनामा पढ़ते देखा गया — वह भी उस वक्त जब यह स्पष्ट था कि अधिकारी ने अपने कर्तव्य के निर्वहन के तहत मंच पर सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किया था।
मनीष सिंगला केवल भाजपा नेता ही नहीं, बल्कि उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल के पुत्र भी हैं — और यही तथ्य पूरे मामले को एक संवैधानिक चिंता का विषय बना देता है।
मामला: कर्तव्य निर्वहन या राजनीतिक अपमान का बहाना?
यह प्रकरण Cyclothon 2.0 नामक नशा मुक्ति अभियान के दौरान सामने आया, जिसमें मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मंच पर मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान डीएसपी राणा ने नियमों के अनुसार मनीष सिंगला को मंच पर चढ़ने से रोका। लेकिन इसके बाद जो दृश्य सामने आया, वह न सिर्फ पुलिस व्यवस्था की स्वतंत्रता बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे की निष्पक्षता पर सवालिया निशान छोड़ गया।
क्या अब कर्तव्यपालन भी अपराध मान लिया जाएगा — अगर वह किसी राजनेता के “अहंकार” से टकरा जाए?
“वंशवाद” बनाम “संवैधानिक मर्यादा”: भाजपा की दोहरी नीति
यह मामला भाजपा की उस राजनीतिक कथनी और करनी के बीच की खाई को भी उजागर करता है, जिसे “परिवारवाद के विरोध” के नाम पर बार-बार प्रचारित किया जाता है।
सिर्फ कुछ दिन पहले ही गुरुग्राम की नव-निर्वाचित महापौर श्रीमती राजरानी मल्होत्रा ने अपने पति श्री तिलक राज मल्होत्रा को नगर निगम में ‘सलाहकार’ नियुक्त कर लोकतांत्रिक संस्थानों में “वंशवाद” को संस्थागत रूप दे दिया था।
अब सिरसा में, एक पूर्व राज्यपाल के पुत्र के अहंकार के सामने हरियाणा पुलिस को झुकने पर मजबूर किया गया।
यह वही भाजपा है जिसके नेता — स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी — मंचों से परिवारवाद को लोकतंत्र का सबसे बड़ा खतरा बताते हैं।
Cyclothon 2.0: नशा मुक्ति का मंच या सत्ता के नशे की पराकाष्ठा?
नशा मुक्ति का संदेश देने वाला यह आयोजन अब सत्ता के नशे का प्रतीक बन गया है।
युवाओं को जागरूक करने के बजाय यह कार्यक्रम लोकतंत्र को शर्मिंदा करने वाले घटनाक्रम के लिए जाना जाएगा — जहां एक अधिकारी को सार्वजनिक रूप से झुकाया गया।
संवैधानिक चिंता: क्या अब वर्दी का सम्मान राजनीतिक दबाव तय करेगा?
भारतीय संविधान किसी भी नागरिक, अधिकारी या संस्था को उनके कर्तव्यों के पालन के लिए अपमानित किए जाने की अनुमति नहीं देता।
यदि डीएसपी ने कोई अनुशासनहीनता की होती, तो उसके लिए विभागीय या न्यायिक प्रक्रिया होती — परंतु माफीनामा पढ़वाना, वह भी कैमरे के सामने, न केवल अधिकारों का हनन है, बल्कि हर उस व्यक्ति के आत्मसम्मान पर प्रहार है जो कानून का पालन करता है।
मांग: न्यायिक जांच और संवैधानिक हस्तक्षेप जरूरी
हम मांग करते हैं कि:
- इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की जाए।
- दोषी चाहे कोई भी हो — राजनेता हो या अधिकारी — उस पर निष्पक्ष कानूनी कार्यवाही की जाए।
- पुलिस अधिकारियों की गरिमा और निर्णय की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए भविष्य में राजनीतिक हस्तक्षेप पर सख्ती हो।
अगर आज चुप रहे, तो कल संविधान भी दबाव में होगा
यह मुद्दा केवल एक पुलिस अधिकारी या एक घटना का नहीं है। यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की आत्मनिर्भरता बनाम राजनीतिक हस्तक्षेप का विषय है।
यदि आज इस पर सवाल नहीं उठे, तो कल न्यायपालिका, नौकरशाही और खुद संविधान भी राजनीतिक शक्ति के आगे नतमस्तक हो सकता है।
हम बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संविधान में आस्था रखने वाले नागरिकों से आह्वान करते हैं — कि ऐसी घटनाओं पर चुप न रहें।
यह सिर्फ वर्दी की नहीं, लोकतंत्र की आत्मा की लड़ाई है। और यह लड़ाई हर उस व्यक्ति को लड़नी है, जो एक न्यायप्रिय और संवैधानिक भारत देखना चाहता है।