पूर्व डीएसपी और सामाजिक कार्यकर्ताओं की याचिका पर तेज़ हुई सुनवाई, फर्जीवाड़े से चुनाव जीतने का आरोप

गुरुग्राम, 1 मई: गुरुग्राम की मेयर राजरानी मल्होत्रा के कथित फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों को लेकर दाखिल याचिका पर वीरवार को सिविल कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने मेयर को आगामी 10 जुलाई तक अपने शैक्षणिक दस्तावेज न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश जारी किया है। मामले की सुनवाई अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (एसीजेएम) मनीष कुमार की कोर्ट नंबर 9 में हुई।

इस मामले में याचिकाकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता यशपाल प्रजापति और पूर्व डीएसपी बनवारी लाल ने आरोप लगाया है कि भाजपा की ओर से मेयर बनीं राजरानी मल्होत्रा ने बीसीए (बैचलर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन) का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर चुनाव लड़ा और जनता को धोखे में रखकर जीत दर्ज की। साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी सीमा पाहुजा पर भी इसी प्रकार का आरोप लगाया गया है।

न्यायालय में पेश हुई दोनों पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं के वकील रामअवतार गुप्ता ने बताया कि वीरवार को सुनवाई के दौरान विपक्षी पक्ष यानी मेयर और कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से वकीलों ने जवाब दाखिल किया, जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए अगली सुनवाई की तारीख तय की है। वकील का दावा है कि उन्होंने कोर्ट के समक्ष ऐसे ठोस दस्तावेज और सबूत पेश किए हैं, जिससे साबित होता है कि दोनों उम्मीदवारों ने न सिर्फ फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर चुनाव लड़ा बल्कि इसे जीतकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी ठेस पहुंचाई।

गुप्ता ने यह भी कहा कि “यह सिर्फ गुरुग्राम ही नहीं, बल्कि पूरे हरियाणा के मतदाताओं के विश्वास के साथ धोखा है। हम उम्मीद करते हैं कि कोर्ट निष्पक्ष और त्वरित निर्णय सुनाएगी।”

जातिगत प्रमाण पत्रों पर भी उठे सवाल

मामले में सिर्फ शैक्षणिक प्रमाण पत्र ही नहीं, बल्कि जातिगत प्रमाण पत्रों को लेकर भी गंभीर आरोप सामने आए हैं। आरोप है कि मेयर राजरानी मल्होत्रा के पति तिलक राज मल्होत्रा, जो कि उच्च जाति से संबंध रखते हैं, उन्होंने खुद को “सुनार” जाति का बताकर पिछड़ा वर्ग (OBC) का लाभ लेने की कोशिश की। यही नहीं, उन्हें नगर निगम में अवैध रूप से एडवाइजर नियुक्त किया गया था, जिसे सरकार ने बाद में रद्द कर दिया।

कांग्रेस की प्रत्याशी सीमा पाहुजा, जो दो बार पार्षद रह चुकी हैं, पर भी आरोप है कि उन्होंने अपने पिता मोहनमुरारी कपूर को सुनार जाति का दिखाकर OBC का प्रमाण पत्र बनवाया।

जल्द आ सकता है बड़ा फैसला

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उनके पास ऐसे दस्तावेज़ हैं जो अदालत में मेयर के खिलाफ गंभीर आरोपों को प्रमाणित कर सकते हैं। यदि कोर्ट में प्रमाण पत्र फर्जी पाए जाते हैं, तो दोनों उम्मीदवारों पर न सिर्फ चुनाव अयोग्य होने का खतरा मंडरा रहा है, बल्कि आपराधिक कार्यवाही भी संभव है।

लोकतंत्र से विश्वासघात या साज़िश?

यह मामला न सिर्फ गुरुग्राम की राजनीति में हलचल मचा रहा है, बल्कि पूरे प्रदेश में चुनावी नैतिकता और ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। कोर्ट का फैसला आने वाले समय में नगर निगम चुनावों के मानकों और उम्मीदवारों की पारदर्शिता के लिए एक नज़ीर बन सकता है।

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