ऋषि प्रकाश कौशिक
गुरुग्राम में आयोजित एक पत्रकार संगठन के कार्यक्रम में हरियाणा के शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने पत्रकारिता के महत्व और मीडिया की भूमिका पर कई भावनात्मक और आदर्शवादी बातें कहीं। उन्होंने मीडिया को राष्ट्र का दर्पण बताया और पत्रकारों से आग्रह किया कि वे समाज को नई दिशा देने का काम अपनी लेखनी से करते रहें। उन्होंने कहा कि “गलत को गलत तो पेश किया जा सकता है, लेकिन उस गलत में क्या सही है, उसे भी उजागर कर पत्रकार नई दृष्टि दे सकते हैं।”
बेशक, यह विचार प्रेरणादायक हैं। पर सवाल यह उठता है कि क्या यह सम्मान और समझ सिर्फ भाषणों तक सीमित है, या फिर यह धरातल पर भी नजर आती है?
गुरुग्राम में शिक्षा व्यवस्था में दिन-प्रतिदिन गहराती अनियमितताओं, निजी स्कूलों में मनमानी फीस वसूली, दाखिले में धांधली, और शिक्षकों की नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी जैसे मुद्दों पर क्या कभी शिक्षा मंत्री ने सक्रियता दिखाई? क्या कभी उन्होंने पत्रकारों द्वारा उठाए गए इन ज्वलंत सवालों पर सीधे संवाद किया या जवाब देना जरूरी समझा?
शहर में कई सरकारी और निजी स्कूलों की हालत ऐसी है जहां न तो मूलभूत सुविधाएं हैं, न ही किसी प्रकार की प्रशासनिक निगरानी। स्कूलों में छात्रों को सुविधा से अधिक कारोबार की दृष्टि से देखा जाता है। शिक्षा का व्यवसायीकरण अपनी चरम पर है। मगर अफसोस की बात यह है कि मंत्री महोदय ने न तो इन समस्याओं पर खुलकर कोई प्रतिक्रिया दी है, और न ही कभी किसी पत्रकार से सीधे संवाद कर इन विषयों पर अपना पक्ष रखा है।
क्या यह विडंबना नहीं है कि मंच पर पत्रकारों को राष्ट्रनिर्माता कहा जाता है, लेकिन जब वही पत्रकार ज़मीनी सवाल पूछते हैं तो उन्हें कोई जवाब नहीं दिया जाता?
शिक्षा मंत्री का यह कहना कि “पत्रकार समाज को राह दिखाते हैं”, सच है। लेकिन समाज को राह दिखाने वाला पत्रकार जब खुद शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनियमितता और शोषण पर सवाल उठाता है, तो उसका जवाब देना भी उतना ही जरूरी है। यह जवाबदेही ही किसी भी मंत्री की असली परीक्षा होती है।
समाज सेवा और सच्चे लोकतंत्र की भावना वहीं जीवित रहती है, जहां संवाद जीवित हो। सिर्फ भाषण देना काफी नहीं है, पत्रकारों की बात सुनना, उनके सवालों का जवाब देना, और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कार्रवाई करना ही असल में पत्रकारों के प्रति सम्मान है — न कि केवल मंच से प्रशंसा के फूल बरसाना।
अगर शिक्षा मंत्री वास्तव में पत्रकारों और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को गंभीरता से लेते हैं, तो उन्हें गुरुग्राम की शिक्षा व्यवस्था की बुनियादी समस्याओं की ओर ध्यान देना होगा और मीडिया के सवालों का जवाब देना होगा।