राष्ट्रधर्म की पूर्ति हेतु लिया गया निर्णय – बोध राज सीकरी

गुरुग्राम, 10 मई: “राष्ट्र सर्वोपरि, राष्ट्रधर्म सर्वोपरि, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य परायणता सर्वोपरि” — यह केवल कोई वाक्य नहीं, अपितु वह जीवंत भावना है जिसे महापुरुष अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लेते हैं। इसी भावना को आत्मसात करते हुए गीता मनीषी महा मंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने अपने जन्मोत्सव के भव्य आयोजन को राष्ट्रधर्म की प्राथमिकता देते हुए स्थगित करने का अद्वितीय संकल्प लिया है।
सेवा-पथ पर समर्पित जीवन
स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज का सम्पूर्ण जीवन सनातन धर्म के प्रचार, श्रीमद्भगवद्गीता के प्रचार-प्रसार, गौसेवा, राष्ट्रसेवा एवं मानवकल्याण के लिए समर्पित रहा है। वर्ष 2025 में उनके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में 15 मई को गुरुग्राम स्थित लेज़र वैली (सेक्टर 29) में एक विशाल सेवा-संवेदना महोत्सव का आयोजन प्रस्तावित था।
सेवा की रूपरेखा
इस आयोजन को केवल उत्सव न मानकर, सेवा, सद्भाव और आध्यात्मिक साधना का स्वरूप प्रदान करने हेतु शिष्यों द्वारा विविध कार्यक्रमों की योजना बनाई गई थी:
- गौसेवा एवं गीता सेवा अभियान
- निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर
- थैलेसीमिया पीड़ितों हेतु रक्तदान शिविर
- धार्मिक स्मरण, जाप एवं साधना अनुष्ठान
- आध्यात्मिक संवाद व सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
इस महोत्सव में हरियाणा के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री श्री मनोहर लाल एवं श्री भूपेन्द्र यादव, तथा देशभर के 12 से अधिक परमहंस संतों की गरिमामयी उपस्थिति प्रस्तावित थी।
राष्ट्रधर्म की सर्वोपरिता
किन्तु, वर्तमान में देश जिस संवेदनशील परिस्थिति से गुजर रहा है — जहाँ जन-जन की सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय अखंडता प्रमुख विषय हैं — ऐसे समय में स्वामी श्री ने अपने निजी उत्सव को स्थगित कर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। उनके इस निर्णय को सभी शिष्यों एवं भक्तों ने श्रद्धा एवं समर्पण के साथ स्वीकार किया।
साधना का विशेष आग्रह
स्वामी जी की प्रेरणा के अनुसार, 15 मई को सभी भक्तों, अनुयायियों एवं साधकों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने-अपने निवास स्थानों पर ही साधना करें — प्रभु स्मरण, नाम जाप, श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ एवं राष्ट्र की मंगलकामना ही इस दिन की सच्ची साधना होगी।
सेवा का संकल्प अटल है
हालाँकि यह आयोजन स्थगित हुआ है, किन्तु इसके पीछे निहित सेवा और समर्पण का भाव अडिग एवं अटल है। जैसे ही परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी, यह कार्यक्रम और अधिक श्रद्धा, संकल्प और ऊर्जा के साथ सम्पन्न किया जाएगा।
युग के लिए एक प्रेरणा
यह निर्णय आज की पीढ़ी के लिए एक संदेश है — कि धार्मिक आयोजन केवल उत्सव मात्र नहीं, अपितु समयानुकूल धर्म और कर्तव्य का पालन ही सच्ची साधना है। स्वामी श्री के इस निर्णय में तप, त्याग और राष्ट्रभक्ति की वह उजास दृष्टिगोचर होती है जो एक सच्चे संत के हृदय में निवास करती है।
अंत में बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा —
“जहाँ राष्ट्र का हित सर्वोपरि होता है,
वहाँ संतों का मौन भी राष्ट्र जागरण बन जाता है।”
“होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥”