भारत सारथी, ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम, जो एक समय हरियाणा की आर्थिक राजधानी और तकनीकी हब के रूप में पहचाना जाता था, आज सफाई व्यवस्था की बदहाली के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है। सरकार द्वारा इसे स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के दावे ज़मीन पर धूल फांकते नजर आ रहे हैं।
शहर के मुख्य बाजारों से लेकर आवासीय कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों तक—हर जगह गंदगी, कूड़े के ढेर और दुर्गंध ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। ट्रिपल इंजन सरकार यानी केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन—तीनों एक ही राजनीतिक पार्टी से होने के बावजूद, गुरुग्राम की सफाई व्यवस्था सुधरने की बजाय और बिगड़ती जा रही है।

विधायक का संकल्प बना मज़ाक?
गुरुग्राम के मौजूदा विधायक ने चुनाव के बाद दावा किया था कि 100 दिनों में शहर की सफाई व्यवस्था सुधार देंगे। लेकिन 100 दिन क्या, 200 दिन भी गुजर चुके हैं, स्थिति जस की तस बनी हुई है। नतीजा—लोगों में भारी असंतोष है और प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
मालामाल कॉलोनियां, मगर हालत बेहाल
यह हालात सिर्फ पुरानी बस्तियों तक सीमित नहीं हैं। अशोक विहार से पालम विहार रोड तक की सड़क पर जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। गायें कचरे में खाना ढूंढती दिखती हैं। धन्यवापुर रोड, सेक्टर-22, सूर्य विहार रोड, कन्हाई गांव, और बसई जैसे इलाकों में भी यही नजारा है। नागरिकों का कहना है कि नगर निगम की गाड़ियां हफ्तों तक नज़र नहीं आतीं।
संक्रमण का बढ़ता खतरा
गंदगी से मच्छर, मक्खियों और बदबू का आलम यह है कि डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। डॉक्टरों ने भी चेतावनी दी है कि अगर समय रहते सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया तो हालात महामारी जैसे बन सकते हैं।
कौन लेगा ज़िम्मेदारी?
जब विधायक, पार्षद और प्रशासन तीनों एक ही राजनीतिक पार्टी से हैं तो जनता यह सवाल पूछ रही है कि आखिर जवाबदेही किसकी है? क्या सफाई सिर्फ भाषणों और घोषणाओं तक सीमित रह जाएगी? या फिर प्रशासन को किसी बड़ी महामारी का इंतजार है?
जनता की गुहार
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि अब वे सिर्फ वादों से नहीं, ज़मीनी बदलाव से ही संतुष्ट होंगे। वे जल्द से जल्द एक ठोस कार्ययोजना चाहते हैं, जिसमें सफाई के लिए स्थायी समाधान हो—ना सिर्फ चुनावी दिखावे।