भारत में ज़हरीली शराब रोकने ऑपरेशन सिंदूर -2 की सख़्त ज़रूरत! 

नक़ली ज़हरीली शराब से मृतक के परिवारों के लिए मुआवजे का ऐलान,आरोपियों की गिरफ्तारी,जमानत, निचली से ऊपरी कोर्ट तक की प्रक्रिया-पीड़ित परिवारों की जिंदगी समाप्त?

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

 भारत में ज़हरीली शराब से होने वाली मौतें अब एक दुखद और बार-बार दोहराई जाने वाली त्रासदी बन चुकी हैं। चाहे पंजाब हो, बिहार, उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र – हर राज्य में समय-समय पर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। सवाल उठता है: यह नरसंहार आखिर कब रुकेगा? क्या सरकारें तब तक नहीं जागेंगी जब तक गरीबों के चूल्हे पूरी तरह बुझ न जाएं?

ताज़ा मामला: मजीठा (अमृतसर), 13 मई 2025

पंजाब के मजीठा ब्लॉक में जहरीली शराब पीने से 21 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। भंगाली कलां, थारीवाल संघा और मरारी कलां गांवों में फैली इस त्रासदी ने पूरे इलाके को मातम में डुबो दिया है। पंजाब सरकार ने मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख मुआवजा देने की घोषणा की है। वहीं, पुलिस ने 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (हत्या), 105 (गैर-इरादतन हत्या), और अन्य संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।

ज़हरीली शराब: गरीब की मौत का सामान

देश के हर कोने में नकली, अवैध शराब धड़ल्ले से बिक रही है। हाई-प्रोफाइल परमिट सिस्टम और जिम्मेदार अधिकारियों की आंखों पर पट्टी बंधी रहती है। शराब भट्टियों, मोहल्लों और ठेकों में नकली एथनॉल से बनी शराब का सेवन गरीब, मजदूर और निम्न वर्ग के लोग करते हैं, जिनकी ज़िंदगी इन जहरीली बूंदों के कारण तबाह हो जाती है।

2014-2022: एक दशक की मौतों का लेखा-जोखा

वर्षघटनाएंमौतेंप्रमुख राज्य
20141,699
20151,6241,522महाराष्ट्र, पुडुचेरी, मध्य प्रदेश
20161,0731,054मध्य प्रदेश, हरियाणा
20171,4971,510कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश
20181,3461,365मध्य प्रदेश, कर्नाटक
20191,1411,296मध्य प्रदेश, कर्नाटक
2020931947मध्य प्रदेश, झारखंड
2021708782उत्तर प्रदेश, पंजाब
2022507617बिहार, कर्नाटक

ज़हरीली शराब कैसे बनती है?

कच्ची शराब में गुड़, पानी और यूरिया जैसे खतरनाक तत्व मिलाए जाते हैं। ऑक्सीटोसिन, नौसादर, और मेथनॉल जैसे रसायन शराब में मिलाए जाते हैं, जिससे इथाइल अल्कोहल के बजाय मिथाइल अल्कोहल बनता है। यही मिथाइल अल्कोहल शरीर में जाकर फार्मेल्डिहाइड बनाता है, जो आंखों की रोशनी छीन सकता है और मृत्यु का कारण बनता है।

13 मई 2025 को बटाला कांड में मेथनॉल का इस्तेमाल ऑनलाइन खरीदकर किया गया, जो स्पष्ट रूप से अवैध गतिविधियों का हिस्सा था।

न्यायिक प्रक्रिया और पीड़ितों का दर्द

पीड़ितों को मुआवजा देने की घोषणा होती है, आरोपियों की गिरफ्तारी होती है, लेकिन फिर लंबी कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है — जमानत, निचली अदालत, ऊपरी अदालत… और इस बीच पीड़ित परिवार की ज़िंदगी थम जाती है।

क्या हो सकता है राष्ट्रव्यापी शराबबंदी का समाधान?

भारतीय संविधान शराब को राज्य सूची में रखता है। केंद्र सरकार अगर शराब पर नियंत्रण चाहती है तो उसे संविधान संशोधन कर शराब को संघ सूची में लाना होगा। इसके लिए लोकसभा व राज्यसभा के 2/3 बहुमत के अलावा 15 राज्यों की सहमति आवश्यक है। भाजपा के पास कई राज्यों में सरकार है, परंतु कर राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब से आता है, जिससे राज्य सरकारें इसके खिलाफ जाने से हिचकती हैं।

इसलिए राष्ट्रव्यापी शराबबंदी आज भी एक आदर्श कल्पना ही है, जिसे अमल में लाना कानूनी, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत कठिन है।

निष्कर्ष

भारत में ज़हरीली शराब से होने वाले नरसंहारों पर लगाम लगाने के लिए केवल मुआवजा और गिरफ्तारी काफी नहीं है। जरूरत है ऑपरेशन “सिंदूर-2” जैसे सख्त, राष्ट्रव्यापी अभियान की, जो नकली शराब के नेटवर्क को जड़ से खत्म करे। इसके साथ ही, सरकार को यह तय करना होगा कि गरीबों की ज़िंदगी की कीमत कितनी है?

कब तक घरों के चूल्हे बुझते रहेंगे? कब तक मातमगाहों में तब्दील होते रहेंगे ये आशियाने?
अब जागने का वक्त है, वरना देर हो जाएगी।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 

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