हरियाणा के विख्यात कवि अल्हड़ बीकानेरी के जन्म दिवस पर विशेष

राजेन्द्र भारद्वाज

विख्यात कवि अल्हड़ बीकानेरी

हास्य-व्यंग्य की कविता के क्षेत्र में हरियाणा प्रदेश का देश भर में एक विशिष्ट योगदान रहा है। देश के जाने-माने हास्य कवि श्री ओम प्रकाश आदित्य, श्री अल्हड़ बीकानेरी, श्री जैमिनी हरियाणवी , श्री सुरेन्द्र शर्मा और नई पीढ़ी के युवा हस्ताक्षर अरुण जैमिनी भी हरियाणा के ही धरती पुत्र हैं। हास्य-व्यंग्य के माहिर कवि श्री अल्हड़ बीकानेरी का जन्म 17 मई, 1937 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में हुआ था। वैसे उनका असली नाम श्री श्याम लाल शर्मा था।

उन्होंने सन् 1954 में मैट्रिक की परीक्षा में पूरे हरियाणा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुुरु की लेकिन वे दूसरे वर्ष में ही फेल हो गये। घर की आर्थिक परिस्थितियां खराब होने के चलते उन्होंने दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित जी.पी.ओ. डाक घर में क्लर्क की नौकरी से अपने कैरियर की शुरूआत की।

इसी दौरान सन् 1962 से उन्होंने ” माहिर बीकानेरी ” उपनाम से उर्दू में गीत और गज़लें लिखनी शुरु कीं, लेकिन इस क्षेत्र में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसके चलते उन्होंने सन 1968 में गंभीर गीत- गज़ल को छोड़ कर हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में हाथ अजमाने की ठानी और ” अल्हड़ बीकानेरी” के उपनाम से हिन्दी में हास्य-व्यंग्य कवितायें लिखना शुरु कीं।

हास्य-व्यंग्य कवितायें लिखने की प्रेरणा उन्हें काका हाथरसी से मिली थी। फिर क्या था, सिर्फ दो वर्षों में ही सन् 1970 तक वे अखिल भारतीय स्तर के जाने-माने हास्य कवि के रुप में स्थापित हो गये। हास्य-व्यंग्य के दिग्गज कवि श्री गोपाल प्रसाद व्यास उनके काव्य गुरु बने और इस प्रकार हिन्दी कवि-सम्मेलनों के मंचों पर वे एक लोकप्रिय हास्य कवि के रुप में स्थापित हो गये।

अल्हड़ जी की यह विशेषता थी कि उनकी हर कविता छंद बद्ध होती थी और वे अपनी हर कविता को गा- गा कर सुनाते थे। उन्होंने हास्य कविता के क्षेत्र में कई नये प्रयोग भी किये और हिन्दी के साथ ही हरियाणवी, उर्दू और संस्कृत भाषा में भी हास्य-व्यंग्य कवितायें लिखीं। उनकी हरियाणवी हास्य कविता – “अनपढ़ धन्नो” पूरे देश में बहुत ही लोकप्रिय हुई।

उन्होंने हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में कव्वाली की नई विधा का प्रयोग किया और उनकी हास्य कव्वाली – “मत पूछिये, फुरसत की घड़ियां, हम कैसे गुजारा करते हैं, होठों से छुआ कर मूंगफली माशूक पे मारा करते हैं ” ने पूरे देश में लोकप्रियता के नये कीर्तिमान स्थापित किए। उनकी शास्त्रीय संगीत पर आधारित हास्य कविता ” वोट मांगने निकले नेताजी “और संस्कृत भाषा में लिखी हास्य कविता” श्री राजनारायण स्तोत्र” भी बहुत ही हिट हुई थी। इसी प्रकार, उनकी हास्य-व्यंग्य कविता- ” दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया” हिन्दी कविता के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध हुई, जिसमें जीवन की नश्वरता का चित्रण बहुत ही प्रभावशाली ढंग से किया गया है। इस कविता का अन्तिम छंद कुछ इस तरह से है:-

” पाप-पुण्य है कत्था चूना, परमपिता पनवाडी। और पनवाड़ी की इस दुकान को, घेरे खडे़ अनाड़ी।

काल है सरौता, सुपारी सारी दुनिया। दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया।”

अल्हड़ जी को छंद बद्ध कविता का विशेषज्ञ माना जाता था। कवि-सम्मेलन में कोई कवि कविता पढ़ रहा हो और उनकी कविता छंद के मीटर से बाहर जा रही हो, तो उनके कान तुरन्त खडे़ हो जाते थे। इसीलिए उन्होंने अपनी पुस्तक ठाठ गज़ल के में गजलों का पिंगल शास्त्र भी लिखा ताकि सही छंद बद्ध गज़लें लिखी जा सकें।

अल्हड़ जी के प्रकाशित प्रमुख काव्य संग्रह हैं –

1.बेस्ट ऑफ अल्हड़ बीकानेरी, 2.घाट-घाट घूमे, 3.जय मैडम की बोल रे, 4.अनछुए हाथ,

5.भैंसा पीवे सोमरस, 6.अभी हंसता हूं और 7. हरियाणा के तीन त्रिशंकु।

अल्हड़ जी का अंतिम काव्य संग्रह था-” मन मस्त हुआ”, जो सन् 2009 में उनके निधन के पश्चात् प्रकाशित हुआ था।

नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में आयोजित इस काव्य संग्रह के विमोचन समारोह में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने श्री अल्हड़ बीकानेरी और श्री ओम प्रकाश आदित्य की स्मृति में हरियाणा सरकार की ओर से एक लाख रुपये की धनराशि का पुरस्कार- ” आदित्य-अल्हड़ सम्मान ” स्थापित करने की घोषणा की थी। हरियाणा सरकार द्वारा सन् 2010 से यह पुरस्कार हर साल देश के राष्ट्रीय स्तर के हास्य-व्यंग्य कवि का दिया जाता है।

इस क्रम में, अल्हड़ जी के काव्य शिष्य कवि डॉ. प्रवीण शुक्ला की संस्था “साहित्य प्रेमी मंडल द्वारा भी पिछले 9 वर्षों से “अल्हड़ बीकानेरी हास्य रत्न सम्मान ” दिया जा रहा है। इस वर्ष यह सम्मान मध्य प्रदेश के हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे को दिया गया है। इससे पहले यह सम्मान जैमिनी हरियाणवी, सुरेन्द्र शर्मा, अशोक चक्रधर, प्रदीप चौबे, डा. मधुप पांडेय, गुरु सक्सेना, मनोहर मनोज और संजय झाला को दिया जा चुका है।

अल्हड़ बीकानेरी को हिन्दी हास्य कविता के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें ठिठोली पुरस्कार, टेपा पुरस्कार (उज्जैन) प्रमुख हैं। सन् 1996 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने भी अल्हड़ बीकानेरी को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में सम्मानित किया था। इसी क्रम में, सन् 2000 में दिल्ली सरकार ने अलहड़ जी को ” काका हाथरसी सम्मान ” से सम्मानित किया था। इसी प्रकार सन् 2004 में हरियाणा सरकार ने उन्हें ” हरियाणा गौरव पुरस्कार ” से सम्मानित किया था।

अपने नाम के अनुरुप अल्हड़ जी हमेशा हर हाल में खुश रहते थे। जल्दी से कोई बीमारी उन्हें पकड़ती नहीं थी। लेकिन सन् 2009 में जब वे बीमार हुए तो नोएडा के कैलाश अस्पताल में दाखिल कराया गया था, वहीं उन्होंने 17 जून, 2009 को आखिरी सांस ली और वे हमें हमेशा के लिए अलविदा कह गये।

” घाट-घाट घूमें ” ……… -अल्हड़ बीकानेरी

घाट-घाट घूमें, निहारी सारी दुनिया,
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

साधू, संत, फकीर, औलिया, दानवीर, भिखमंगे,
दो रोटी के लिए रात-दिन नाचें होकर नंगे
आदमी जमूरा, मदारी सारी दुनिया,
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

राजा, रंक, सेठ, सन्यासी, बूढ़े और नवासे,
सब कुरसी के लिए, फेंकते उलटे-सीधे पासे
द्रोपदी अकेली, जुआरी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

आशिक, अफ़लातून, मनचले बिगड़े-दिल शहजादे,
लिए इश्क के तीर, गली में, खड़े, निशाना साधे
हुस्न है हिरनिया, शिकारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

कहीं न बुझती, प्यास प्यार की, प्राण कंठ में अटके,
घर की गोरी क्लब में नाचे, पिया सड़क पर भटके
शादीशुदा हो के, कुॅआरी सारी दुनिया,
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

पंचतत्व की बीन सुरीली, मनवा एक सपेरा
जब टेरा, पापी मनवा ने राग स्वार्थ का टेरा
सम्बंधी हैं सांप, पिटारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया

पाप-पुण्य है कत्था-चूना परम पिता पनवाड़ी
पनवाड़ी की इस दुकान को घेरे खडे़ अनाड़ी
काल है सरौता, सुपारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया।

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