✍️ सुरेश गोयल ‘धूप वाला’

मनुष्य को समाज में गरिमामय स्थान दिलाने वाला यदि कोई एक गुण है, तो वह है — सदाचार। यह मात्र एक व्यवहार नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना की धड़कन है। सदाचार का आशय है — उत्तम आचरण, विनम्र व्यवहार और नैतिक मर्यादाओं का आदरपूर्वक पालन। जैसे पुष्प की महक उसकी सुंदरता का परिचायक होती है, वैसे ही मनुष्य की पहचान उसके सदाचार से होती है।
सदाचार वह दीपक है जो व्यक्तित्व के अंधकार को आलोकित करता है। यह व्यक्ति को विनम्र बनाता है, उसे ईमानदारी, करुणा और सहृदयता से भर देता है। सदाचारी व्यक्ति दूसरों के प्रति सम्मान, प्रेम और सहयोग की भावना से ओतप्रोत होता है। उसका जीवन एक संदेश बन जाता है — एक ऐसी मधुर ध्वनि, जो समाज में सद्भाव और संस्कारों की गूंज भर देती है।
भारत की प्राचीन परंपरा में सदाचार को धर्म के समकक्ष माना गया है। हमारे ऋषियों-मुनियों, महापुरुषों और विचारधाराओं ने इस गुण को सर्वोच्च स्थान दिया। भगवान राम का आदर्श चरित्र, श्रीकृष्ण की जीवन-संवेदनाएं, महात्मा बुद्ध की करुणा और गांधीजी की सत्यनिष्ठा — सबके मूल में सदाचार ही था। इन महापुरुषों ने जीवन की हर परिस्थिति में सदाचार की पताका को ऊँचा रखा और संपूर्ण मानवता को यह सिखाया कि सच्चा सम्मान और सफलता आचरण की पवित्रता में ही निहित है।
सदाचार केवल सामाजिक व्यवहार तक सीमित नहीं, बल्कि यह कर्तव्यबोध, राष्ट्रनिष्ठा और आत्मानुशासन का भी प्रतीक है। जो व्यक्ति अपने वचनों का पालन करता है, समय की मर्यादा समझता है और अपने कार्यों में नैतिकता को सर्वोपरि रखता है, वही सच्चा सदाचारी होता है। वह न छल करता है, न कपट; न ईर्ष्या में जलता है, न घृणा में डूबता है। उसका जीवन एक दीपस्तंभ की तरह होता है, जो दूसरों को राह दिखाता है।
आज जब समाज भौतिकतावाद, स्वार्थ और नैतिक संकट के अंधेरे में भटक रहा है, तब सदाचार की आवश्यकता और भी अधिक हो गई है। बढ़ती अपराधशीलता, अविश्वास और नैतिक पतन को केवल सदाचार की पुनर्स्थापना से ही रोका जा सकता है। यदि प्रत्येक नागरिक सदाचार को जीवन का अंग बना ले, तो समाज में शांति, सद्भाव और मानवीय गरिमा का नवप्रभात अवश्य उदित होगा।
सदाचार एक ऐसी अमूल्य संपत्ति है, जो न केवल चरित्र को उज्ज्वल बनाती है, बल्कि समाज में व्यक्ति को गौरव प्रदान करती है। यह आत्मा की महक है, अंतःकरण की सज्जता है और भारत के जीवन दर्शन का प्राणतत्व है। आइए, हम सब संकल्प लें कि अपने जीवन में सदाचार को अपनाकर एक सच्चे आदर्श नागरिक और श्रेष्ठ मानव बनें। यही हमारी संस्कृति की सेवा होगी, यही राष्ट्र की सच्ची पूजा।