भारत सारथी / ऋषिप्रकाश कौशिक
भारतीय जनता पार्टी जहां राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से सरकार चला रही है, वहीं गुरुग्राम जैसे महत्वपूर्ण जिले में संगठन भीतरी टकराव और कार्यकर्ताओं की अनदेखी से जूझ रहा है। पार्टी के कई पुराने और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता इस समय खुद को उपेक्षित और हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।
सूत्रों और कई पुराने कार्यकर्ताओं से हुई बातचीत में सामने आया है कि पार्टी में धनबल और चमचागिरी का प्रभाव इस कदर बढ़ गया है कि कार्यकर्ताओं की योग्यता और अनुभव को नजरअंदाज कर ऐसे लोगों को पद सौंपे जा रहे हैं, जिनकी खुद की साख कमजोर है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में नियुक्त जिलाध्यक्ष उन व्यक्तियों में से हैं, जो पिछले निकाय चुनाव में अपनी पत्नी की सीट तक नहीं बचा सके थे। इससे कार्यकर्ताओं में रोष है और वे इसे संगठन की गिरती साख का कारण मान रहे हैं।
विधायक को लेकर भी नाराजगी का माहौल है। कई कार्यकर्ता खुले तौर पर यह कह रहे हैं कि मौजूदा विधायक गुरुग्राम के इतिहास के सबसे कमजोर और अक्षम जनप्रतिनिधि हैं। उन्होंने जनता के बुनियादी मुद्दों — जैसे सफाई व्यवस्था, मूलभूत सुविधाएं और जनसंपर्क — पर ध्यान न देकर केवल स्कूल कार्यक्रमों और दुकानों के उद्घाटन तक अपनी भूमिका सीमित रखी है। आरोप यह भी है कि वे आम लोगों के फोन नहीं उठाते, और दावा करते हैं कि उनके परिवार के 12 सदस्य गुरुग्राम के 12 क्षेत्रों में कार्यरत हैं, परंतु वे भी लोगों की सुनवाई नहीं कर रहे।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो अब प्रदेश संगठन भी गुरुग्राम की स्थिति को लेकर गंभीर है और जल्द ही जिलाध्यक्ष को लेकर कोई बड़ा निर्णय लिया जा सकता है। यह स्पष्ट संकेत है कि कार्यकर्ताओं की आवाज अब प्रदेश नेतृत्व तक पहुंच चुकी है।
गुरुग्राम में संगठन फिलहाल अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। यदि जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ऐसे ही जारी रही, तो आने वाले चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
(यह रिपोर्ट कार्यकर्ताओं की बातों पर आधारित है, जिनकी पहचान गोपनीय रखी गई है।)