— ऋषि प्रकाश कौशिक

27 मई, भारतीय इतिहास का वह दिन है, जब भारत ने अपने स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री, आज़ादी की लड़ाई के महानायक और आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू को खोया था। हर वर्ष यह दिन हमें न केवल एक राजनेता की पुण्यतिथि के रूप में याद आता है, बल्कि उस विचारधारा, दृष्टिकोण और समर्पण को भी स्मरण कराता है, जिसने स्वतंत्र भारत की नींव को आकार दिया।
नेहरू केवल एक राजनेता नहीं थे, वे एक विचार थे — भारतीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, वैज्ञानिक सोच और वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करने वाला विचार। उनका जीवन राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित एक ऐसी यात्रा थी, जिसमें हर कदम पर उन्होंने देश को एक नई दिशा देने का प्रयास किया।
आज़ादी की लड़ाई से लेकर आधुनिक भारत तक
पंडित नेहरू ने न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी के नेतृत्व में लंबा संघर्ष किया, बल्कि आज़ादी के बाद उस भारत की कल्पना और निर्माण भी किया जो विविधता में एकता, प्रगति में समानता और विकास में वैज्ञानिक सोच को अपनाए। उन्होंने भारतीय संविधान की आत्मा को जीवंत रखने में बड़ी भूमिका निभाई।
उनकी नीतियों का केन्द्रबिंदु आम आदमी था। औद्योगीकरण, योजनाबद्ध विकास, सार्वजनिक क्षेत्र का सशक्तिकरण, वैज्ञानिक संस्थाओं की स्थापना और शिक्षा के विस्तार की जो नींव उन्होंने रखी, उसी पर आज भारत खड़ा है। आईआईटी, आईआईएम, इसरो, भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर जैसी संस्थाएं नेहरू जी के दूरदर्शी नेतृत्व की ही उपज हैं।
बाल मन का सच्चा मित्र ‘चाचा नेहरू’
नेहरू का बाल मन से विशेष जुड़ाव उनके ‘चाचा नेहरू’ रूप को अमर करता है। उन्होंने बच्चों को राष्ट्र का भविष्य माना और उनके सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा, पोषण और सुरक्षा की योजनाएं प्रारंभ कीं। 14 नवम्बर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाना उनकी बच्चों के प्रति प्रेम का प्रतीक है।
विचारधारा पर हमले, लेकिन इतिहास अमिट है
वर्तमान समय में भले ही कुछ राजनीतिक शक्तियाँ उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रही हों, लेकिन इतिहास गवाह है कि भारत का लोकतांत्रिक स्वरूप, संस्थागत मज़बूती और वैश्विक पहचान उन्हीं की दूरदृष्टि का परिणाम है। उनकी आलोचना करना आसान है, लेकिन उनके जैसा राष्ट्र निर्माता बनना अत्यंत कठिन।
पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि
आज उनकी पुण्यतिथि पर हम सभी को यह आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या हम उस भारत का निर्माण कर पा रहे हैं जिसकी कल्पना नेहरू जी ने की थी? क्या हम अपने लोकतंत्र, संविधान और मानवीय मूल्यों की रक्षा कर पा रहे हैं? यदि नहीं, तो यह दिन एक आह्वान है — विचारधारा के पुनर्जागरण का, सच्चे राष्ट्र निर्माण के संकल्प का।
पंडित नेहरू के प्रति मेरी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके विचारों को केवल इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि अपने कर्म, आचरण और राष्ट्रीय चरित्र में जीवित रखें।