उपभोक्ता को 86,255 रुपये की एवज में चुकाने पड़े 1,94,661 रुपये | अदालत ने लगाई फटकार

गुड़गांव, 30 मई |अशोक) – हरियाणा बिजली वितरण निगम द्वारा उपभोक्ता को भेजे गए गलत बिल की भारी कीमत निगम को चुकानी पड़ी है। अदालत के आदेश पर निगम को 86,255 रुपये की वसूली के बदले उपभोक्ता को 1,94,661 रुपये का भुगतान करना पड़ा। यह मामला उपभोक्ता अधिकारों की जीत और सरकारी विभागों की मनमानी पर न्यायिक अंकुश का उदाहरण बन गया है।

क्या है मामला?

गुड़गांव के सैक्टर 39 निवासी उपभोक्ता दलीप सिंह को 1 मार्च 2019 से 30 सितंबर 2020 के बीच भेजे गए बिजली बिलों में 86,255 रुपये की अतिरिक्त राशि वसूली गई थी। उपभोक्ता के अधिवक्ता क्षितिज मेहता के अनुसार, दलीप सिंह का अकाउंट साउथ सिटी से सैक्टर 31 सब-डिवीजन में ट्रांसफर हो चुका था, लेकिन बिलों में गड़बड़ी जारी रही।

जब उपभोक्ता ने बार-बार शिकायत की और राहत नहीं मिली, तो उसे यहां तक धमकी दी गई कि यदि पूरी राशि नहीं भरी गई, तो बिजली का कनेक्शन काट दिया जाएगा। अंततः दलीप सिंह ने मजबूरी में भुगतान कर 3 नवम्बर 2020 को जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया।

न्याय की जीत और प्रशासन की हठधर्मिता

22 अगस्त 2023 को तत्कालीन सिविल जज सौरभ शर्मा की अदालत ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा कि पूरी वसूल की गई राशि 24% वार्षिक ब्याज सहित लौटाई जाए। इसके बावजूद सैक्टर 31 के एसडीओ ने आदेश को मानने से इंकार कर दिया और दावा किया कि मात्र 35,000 रुपये ही अतिरिक्त लिए गए थे।

इसके बाद दलीप सिंह को 12 अगस्त 2024 को एग्जिक्यूशन पिटीशन दायर करनी पड़ी। अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बिजली का बिल समायोजित करने की अनुमति अदालत ने नहीं दी थी। एसडीओ को चेतावनी दी गई कि यदि आदेश का पालन न हुआ तो सख्त कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

अंततः उपभोक्ता को मिला न्याय

न्यायालय के दबाव में आकर निगम को मजबूरन 81,164 रुपये के बिल समायोजन के अतिरिक्त 1,13,497 रुपये का चेक उपभोक्ता को जारी करना पड़ा।

अधिवक्ता क्षितिज मेहता ने कहा: “यदि उपभोक्ता न्यायालय की शरण न लेता, तो यह अन्याय कभी उजागर नहीं होता। बिजली निगम की यह हठधर्मिता दर्शाती है कि कैसे आम नागरिक को उसकी ही मेहनत की कमाई के लिए लड़ना पड़ता है।”

विश्लेषण: क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?

  • यह मामला प्रशासनिक जवाबदेही और उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में एक नजीर बन सकता है।
  • यह दर्शाता है कि सरकारी विभागों की मनमानी को न्यायिक हस्तक्षेप से रोका जा सकता है।
  • यह भी स्पष्ट करता है कि यदि उपभोक्ता साहस और जानकारी के साथ अपने अधिकारों के लिए लड़ें, तो न्याय संभव है।
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