सरकारी अस्पतालों पर बढ़ेगा दबाव, निजी अस्पतालों में इलाज बंद होने से गरीबों को होगा सीधा नुकसान
✍ सुरेश गोयल ‘धूप वाला’

हिसार – गरीब और जरूरतमंद परिवारों के लिए आयुष्मान भारत योजना एक ऐसा सुरक्षा कवच रही है, जिसने लाखों लोगों को गंभीर बीमारियों के समय न केवल राहत दी, बल्कि कई बार जीवनदान भी दिया। यह योजना स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत सरकार की ऐतिहासिक पहल मानी गई, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मुफ्त इलाज की सुविधा मिली।
लेकिन हाल ही में हरियाणा सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस योजना के तहत पांच आम और महत्वपूर्ण बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में बंद करने का निर्णय गरीब मरीजों की चिंता का कारण बन गया है।
अब मोतियाबिंद, बच्चेदानी का ऑपरेशन, पित्त की थैली का ऑपरेशन, उल्टी-दस्त और सांस संबंधी बीमारियों (जैसे दमा) का इलाज केवल सरकारी अस्पतालों में ही संभव होगा। जबकि ये बीमारियाँ आम वर्ग को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं और उनका निजी अस्पतालों में इलाज पहले आयुष्मान योजना के तहत बिना किसी खर्च के संभव था।
सरकारी अस्पतालों की हकीकत किसी से छुपी नहीं है — वहाँ पहले से ही संसाधनों की भारी कमी, चिकित्सकों की संख्या में असंतुलन और अत्यधिक मरीजों का दबाव है। ऐसे में जब इन पांच आम बीमारियों के लिए भी मरीजों को इन्हीं अस्पतालों में भेजा जाएगा, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
इस फैसले पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) हरियाणा ने गहरी आपत्ति जताई है और सरकार से पुनर्विचार का आग्रह किया है। IMA का तर्क बिल्कुल व्यावहारिक है — इलाज बंद करना कोई समाधान नहीं है, बल्कि निजी अस्पतालों को लंबित बकाया समय पर चुकता करना और पारदर्शिता से काम लेना ही सही रास्ता है।
यह न केवल मरीजों की पीड़ा बढ़ाएगा, बल्कि एक बार फिर गरीब आदमी को सरकारी दफ्तरों की जटिलता, लंबी लाइन और सीमित चिकित्सा संसाधनों के रहमोकरम पर छोड़ देगा।
सरकार को चाहिए कि वह इस निर्णय की जनहित में समीक्षा करे और कोई ऐसा संतुलित और व्यवहारिक समाधान निकाले, जिससे मरीजों का विश्वास और राहत दोनों कायम रह सकें। आयुष्मान भारत योजना केवल एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि गरीब की आशा और जीवन की गारंटी बन चुकी है।