ऋषि प्रकाश कौशिक
“जब सियासत सेवा से व्यापार बनने लगे, तो मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराधों की जड़ें गहरी होती जाती हैं। और जब एजेंसियाँ सच में सक्रिय होती हैं, तब सियासत की परतें खुलती हैं।”
चंडीगढ़ में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई ताज़ा कार्रवाई ने हरियाणा की राजनीति, नौकरशाही और रियल एस्टेट की एक खतरनाक त्रिकोणीय साठगांठ को उजागर कर दिया है। जननायक जनता पार्टी (JJP) के पूर्व विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) के पूर्व अधिकारी सुनील कुमार बंसल की गिरफ्तारी केवल दो व्यक्तियों पर कार्रवाई नहीं, बल्कि एक पूरे सिस्टम पर चोट है।

सुरजाखेड़ा: “जन” से “धन” की यात्रा?
रामनिवास सुरजाखेड़ा का नाम हरियाणा की राजनीति में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में सामने आया था। नरवाना से विधायक रहते हुए उन्होंने किसानों और युवाओं के लिए कई वादे किए। लेकिन 2024 के बाद सियासी गतिविधियों से उनकी दूरी और बार-बार बदलते राजनीतिक रुख पर सवाल उठते रहे। अब ईडी की गिरफ्तारी ने साफ कर दिया कि पर्दे के पीछे कोई और खेल चल रहा था।
HSVP: “विकास प्राधिकरण” या “विकास का व्यापारी”?
HSVP (पूर्व में HUDA) पर वर्षों से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। भूखंडों का आवंटन, टेंडर प्रक्रिया और अधिग्रहण में नियमों की अनदेखी कोई नई बात नहीं रही। लेकिन यह मामला अलग है — क्योंकि इसमें बात 70 करोड़ की मनी लॉन्ड्रिंग की हो रही है। ईडी के अनुसार HSVP अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से किसानों की जमीनें औने-पौने दामों में लेकर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया गया, और वही पैसा हवाला और फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से सिस्टम में वापस घुमाया गया।
FIR से गिरफ्तारी तक: एक केस स्टडी
पंचकूला के सेक्टर-7 थाने में 2023 में दर्ज FIR से शुरू हुई जांच 2025 में सुरजाखेड़ा और बंसल की गिरफ्तारी पर आकर रुकी है। ईडी ने बैंक रिकॉर्ड, दस्तावेज, डिजिटल साक्ष्य और गवाहों के आधार पर कार्रवाई की है। इस केस के जरिए ED हरियाणा के राजनीतिक और प्रशासकीय गलियारों में छुपे कई चेहरों को बेनकाब कर सकती है।
राजनीतिक असर: खामोशी क्यों?
पूर्व विधायक की गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है जब हरियाणा में भाजपा सरकार विपक्ष के निशाने पर है। लेकिन सत्ताधारी दल की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या जांच की आंच कुछ और बड़े नामों तक भी पहुंच सकती है? कांग्रेस और इनेलो ने इस प्रकरण को “राजनीति और रियल एस्टेट का काला गठजोड़” करार दिया है।
समाज के लिए सबक:
- जनप्रतिनिधियों की संपत्ति की पारदर्शिता और नियमित ऑडिट अनिवार्य हो।
- HSVP जैसे विभागों की स्वतंत्र निगरानी आवश्यक है।
- जनता को अब केवल वादों पर नहीं, काम और ईमानदारी पर वोट देना होगा।
निष्कर्ष: यह गिरफ्तारी केवल दो लोगों की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो राजनीति को सेवा नहीं, संपत्ति बनाने का जरिया मानती है। यदि इस परंपरा पर लगाम नहीं लगी, तो लोकतंत्र की बुनियाद पर विश्वास करने वाले लोगों के लिए यह एक और आघात होगा। अब देखना है — क्या यह केवल कानूनी कार्रवाई बनकर रह जाएगी या किसी व्यापक सुधार की शुरुआत?