“हमारी इच्छाएँ ही हमारे मन को दुखी करती हैं” – आचार्य सचिन दीक्षित
गीता आज भी उतनी ही प्रासंगिक, जितनी प्राचीन काल में थी

हिसार, 11 जून। वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब में गीता अकेडमी, हिसार के सहयोग से श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों पर मंथन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता आचार्य सचिन दीक्षित ने अपने प्रेरक संबोधन में गीता के गूढ़ सिद्धांतों को सरल रूप में समझाते हुए कहा, “आत्मा कभी नहीं मरती, नष्ट नहीं होती और सदा विद्यमान रहती है। यदि गीता के इन सिद्धांतों को आत्मसात कर लिया जाए, तो जीवन में दुःख, भय और मोह से मुक्ति संभव है।”
आचार्य दीक्षित ने गीता के मूल भाव को स्पष्ट करते हुए कहा, “हमारी इच्छाएँ और निरंतर बढ़ती कामनाएँ ही हमारे मन को अशांत और दुखी करती हैं। यह इच्छाएँ धीरे-धीरे वासना में बदल जाती हैं और अंततः मोह का कारण बनती हैं। यदि इन इच्छाओं पर नियंत्रण पा लिया जाए, तो जीवन सार्थक और शांतिपूर्ण बन सकता है।”
गीता का गूढ़ ज्ञान और भक्ति का संगम
क्लब के महासचिव डॉ. जे.के. डांग ने गीता के 18 अध्यायों और 700 श्लोकों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गीता में चार प्रमुख योगों—कर्म योग, ज्ञान योग, ध्यान योग और भक्ति योग—का विस्तृत वर्णन है, जो जीवन को संतुलित और समर्पित बनाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ एफ.सी. कॉलेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. सुषमा गांधी द्वारा प्रस्तुत भजन “भजन बिना चैन न आवे राम…” से हुआ, जिसने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

भजन, कविता और आत्मचिंतन का संगम
कार्यक्रम में सदस्यों ने कबीर के भजन और गीता आधारित रचनाएँ प्रस्तुत कीं। डॉ. पुष्पा खरब ने “नर तेरा चौला रतन अमोल…” भजन गाया, वहीं दूरदर्शन के पूर्व निदेशक श्री अजीत सिंह मन्न ने “अब के बचा ले मेरी माय, बटेऊ आयो लेवण ने…” प्रस्तुत कर भावुकता का संचार किया।
डॉ. प्रज्ञा कौशिक की कविता “मेरे राम, तेरे राम, हम सबके राम…” और श्रीमती राज गर्ग की गीता पर आधारित 18 पंक्तियों की कविता को भी खूब सराहा गया।
श्री योगेश सुनेजा ने फिल्म ‘चित्रलेखा’ का प्रसिद्ध गीत “मन रे तू काहे ना धीर धरे…” प्रस्तुत किया।
गीता का अंतिम संदेश और समापन
क्लब की संरक्षक डॉ. सत्य सावंत ने गीता के अंतिम श्लोक “तस्मात् त्वं युद्धाय युज्यस्व” का भावार्थ समझाते हुए कहा कि जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो। उन्होंने भजन “मत कर माया को अहंकार…” गाकर कार्यक्रम को ऊंचाई दी।
क्लब की ओर से आचार्य सचिन दीक्षित, उनकी माता जी और डॉ. सावंत को पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के समापन पर डॉ. सुदेश गांधी ने सभी का आभार व्यक्त किया और कहा, “आज एक युवा योगी के मुखारविंद से गीता का अमृत सुनना एक दुर्लभ अनुभव था।”
अंत में प्रसाद वितरण और जलपान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर 45 से अधिक वरिष्ठ नागरिक उपस्थित रहे।