भारत सारथि | ऋषिप्रकाश कौशिक

गुरुग्राम, 14 जून 2025 – गुरुग्राम में विकास योजनाएं अब जनप्रतिनिधियों के बीच क्रेडिट की होड़ का अखाड़ा बनती जा रही हैं। बुनियादी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं, जबकि विधायक और पार्षद इन योजनाओं की उपलब्धि का श्रेय लेने में व्यस्त हैं।

स्थानीय विधायक के सोशल मीडिया पोस्टों पर नज़र डालें तो तस्वीरों की भरमार किसी दुकान, कोचिंग सेंटर या निजी संस्थान के उद्घाटन की होती है। यदाकदा किसी पार्क में लाइट लगाने या गली-पक्कीकरण जैसी मामूली योजनाओं को भी अपने खाते में दिखाने की कोशिश होती है, जो मूलतः पार्षदों के कार्यक्षेत्र में आते हैं। इससे यह संदेश साफ है कि विधायक का ध्यान जनसेवा से अधिक अपने प्रचार पर केंद्रित है।

हाल ही में सेक्टर-4 की दो सड़कों की मरम्मत को लेकर विधायक और पार्षद के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया। पार्षद का दावा है कि मरम्मत के लिए एस्टीमेट उन्होंने पास कराया था, जबकि उद्घाटन का पूरा श्रेय विधायक ले गए। यह घटनाक्रम न सिर्फ जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर सवाल उठाता है, बल्कि स्थानीय निकायों की स्वायत्तता पर भी चोट करता है।

स्थिति तब और उलझ जाती है जब मुख्यमंत्री अपने गुरुग्राम दौरे में प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन कर जाते हैं। ऐसे में विधायक के पास दिखाने लायक कोई बड़ा कार्य नहीं बचता, और प्रशासन में भी उनकी पकड़ कमजोर हो जाती है।

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि विधायक अब ज़्यादातर समय अपने करीबी लोगों के निजी संस्थानों के उद्घाटन में ही व्यस्त रहते हैं। आरोप यह भी है कि इन संस्थानों की अनियमितताओं पर प्रशासन से ‘नरमी’ बरतने का दबाव बनाया जाता है। ऐसे में आम जनता के बीच यह भावना गहराती जा रही है कि चुनाव पूर्व किए गए वादे अब खोखले साबित हो रहे हैं।

दूसरी ओर, शहर की सफाई व्यवस्था और मानसून से पहले की जल निकासी जैसे जरूरी मुद्दे पूरी तरह उपेक्षित हैं। हर साल की तरह इस बार भी बारिश में गुरुग्राम के जलभराव और बदहाल प्रबंधन की तस्वीरें सुर्खियों में आने को तैयार हैं।

अब आम लोग सवाल कर रहे हैं — “जनप्रतिनिधियों को हमने अपने मुद्दे उठाने और हल करने के लिए चुना था या केवल फोटो खिंचवाने और अपने आकाओं की चमचागिरी के लिए?”

जब जनता को ज़रूरत होती है, तब अगर कोई प्रतिनिधित्व करने को नहीं है — तो फिर जनता आखिर अपनी बात किससे कहे?

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