पर्ल चौधरी, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री

भाजपा आज 25 जून 1975 की इमरजेंसी की 50वीं सालगिरह पर जगह-जगह भाषण दे रही है जनसभाएं कर रही है और लोकतंत्र की दुहाई दे रही है लेकिन क्या देश की जनता नहीं देख रही कि आज भी हमारा देश इमरजेंसी से गुजर रहा है बस इस बार यह लिखित नहीं, लेकिन जीवंत है। घोषित नहीं, पर लागू है।

उस दौर की सबसे बड़ी आलोचना थी प्रेस पर अंकुश, विपक्ष की गिरफ्तारी और नागरिक अधिकारों पर लगाम। आज के दौर में सब कुछ वैसा ही है लेकिन चालाकी से, चुपचाप और संगठित रूप से। यही वजह है कि आज का भारत एक अघोषित आपातकाल में सांस ले रहा है।

और यह आपातकाल कहीं अधिक ख़तरनाक है, क्योंकि जनता को लोकतंत्र, देशभक्ति, हिन्दू खतरे में हैं के भ्रम में रखा जा रहा है

इंदिरा ने सत्ता छोड़ी, मोदी ने लोकतंत्र से विपक्ष छीनने की चली चाल

1975 में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता रद्द की, तो उन्होंने देश पर आम चुनाव थोपने की जगह संपूर्ण देश में आपातकाल लगाया। इस विवाद को राजनीतिक-संवैधानिक ढांचे में हल किया। और जब जनमत उनके खिलाफ गया, तो उन्होंने सत्ता छोड़ दी।

अब ज़रा 2023 के साल को देखिए। राहुल गांधी को एक सुनियोजित, तुच्छ मानहानि केस में फंसाकर संसद से बर्खास्त कर दिया गया। उन्हें सांसद आवास से निकाला गया, और देश की सबसे बड़ी विपक्षी आवाज़ को बंद करने की कोशिश की गई। ताकि देशभक्त आम जनता के हौसले टूट जाएं।

मोदी सरकार में संवाद नहीं, सिर्फ प्रचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 वर्षोँ में एक भी खुला प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर सके हैं। आज लोकतंत्र के सबसे बड़े मंच, संसद में भी सरकार की मौजूदगी बेमानी हो गई है। अक्टूबर 2014 से ‘मन की बात’ के ज़रिये एकतरफा भाषण होता है, लेकिन संसद में बहस से प्रधानमंत्री बार-बार किसी ना किसी कारण से ज्यादातर समय गायब रहते हैं जब विपक्ष को सुनाना होता है तब दर्शन देते हैं

मणिपुर में बहु बेटियों की मर्यादा से खिलवाड़, कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध और 700 से ज्यादा किसानों का शहीद होना, नोटबंदी, कोविड में मानवता की लाशों की गंगा में तैरती तस्वीरों, और अब हाल की पहलगाम आतंकी घटना तक, प्रधानमंत्री का चुप्पी धारण करना इस बात का प्रतीक है कि लोकतंत्र की जवाबदेही अब खत्म हो चुकी है।

लोकतंत्र अब संवाद नहीं रहा, सिर्फ प्रायोजित दृश्य बन गया है।

नोटबंदी से लेकर ₹2000 की विदाई तक: तुगलकी सा दौर

प्रधानमंत्री मोदी की नोटबंदी को इतिहास ने तुगलक के निर्णयों से भी बेतुका कहा।
पहले ₹500 और ₹1000 के नोट बंद किए, ₹2000 के नोट छापे, फिर उन्हीं ₹2000 के नोटों को वापस लिया गया। नतीजा? सैकड़ों लोगों की नोट बदलने के लाइनों में जानें गईं, असंगठित अर्थव्यवस्था बर्बाद हुई, और कोई ‘काला धन’ नहीं लौटा। अभी के हालिया रिपोर्ट में स्विस बैंक में भारतीय लोगों का काला धन अब तीन गुणा हो गया है

लेकिन इन तुगलकी फैसलों पर कोई सवाल नहीं पूछ सकता, क्योंकि जो भी पूछेगा, वो या तो देशद्रोही कहलाएगा, या उसे ईडी-सीबीआई के दफ्तर की गणेश परिक्रमा करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट के जज भी बोले थे—’लोकतंत्र खतरे में है’

याद कीजिए, 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ जजों ने प्रेस कांफ्रेंस की, तो देश की आत्मा कांप गई थी। उन्होंने कहा था कि “अगर हमने आज नहीं बोला, तो लोकतंत्र नहीं बचेगा।”

क्या ये आपातकाल जैसा नहीं है? आज उन्हीं में से कुछ जज रिटायर होते ही भाजपा सरकार के किसी आयोग में शामिल हो जाते हैं। न्यायपालिका को पहले दबाव में लाओ, फिर उसे अपने कब्ज़े में ले लो, यही तो सत्ता की निरंकुश शैली है।

विपक्ष नहीं, सिर्फ भक्त चाहिए

प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा सपना है, कांग्रेस मुक्त भारत।
दरअसल, यह सपना नहीं, लोकतंत्र मुक्त भारत की आकांक्षा की शुरुआत है। क्योंकि कोई भी लोकतंत्र, बिना विपक्ष के सिर्फ तानाशाही होता है।

आज राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, स्टालिन, तेजस्वी यादव—हर क्षेत्रीय नेता को या तो बदनाम किया जा रहा है, या उनके खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।

मोदी सरकार की नजर में हर आलोचक ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का सदस्य है। यानी आप अगर मोदी सरकार के नीतियों के खिलाफ हैं, तो आप देश के खिलाफ हैं सिंपल।

‘राष्ट्रवाद’ के पर्दे में संविधान की अनदेखी की जा रही है

मोदी सरकार ने 2014 से एक व्यवस्थित प्रयास शुरू किया, “धर्म को राजनीति में घुसाना”,भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान की आत्मा को हिंदू राष्ट्रवाद में बदलना।

आज महिलाएं, दलित, आदिवासी, सबके अधिकार खतरे में है। एक-एक करके हर सामाजिक न्याय की धारा को ‘सनातन’ की धुंध में छुपाया जा रहा है।

रामचरितमानस के उस दोहे का हवाला देकर, जिसे लोहिया और समाजवादी कभी नकारते थे—”ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी…”—आज की भाजपा सरकार उस पर चुप्पी साध जाती है भागवत कथा को दिन भर जपो लेकिन अगर कथा वाचन का समय आएगा तब सिर्फ एक विशेष वर्ग के लोगों की आपको सुननी पड़ेगी

इतिहास से छेड़छाड़: इमरजेंसी का नायक खुद को बताने की कोशिश

मोदी जी ने एक नया ट्रेंड शुरू किया है अपने बचपन के किस्से खुद गढ़ना! कभी मगरमच्छ से गेंद छीन लाने की बात, कभी हिमालय में साधना, कभी स्टेशन पर चाय। आज एक और नई स्क्रिप्ट मार्केट में लाई जा रही है 1975 की इमरजेंसी में मोदी जी सबसे बड़े क्रांतिकारियों में एक थे।

मगर अफ़सोस, आज तक कोई भी निष्पक्ष गवाह, साथी या दस्तावेज़ नहीं मिला जो यह साबित कर सके कि इमरजेंसी में मोदी का कोई सार्वजनिक महत्वपूर्ण संघर्ष रहा।
इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा है मन की बात के ढंग से।

लोकतंत्र अब विपक्ष बनाम सत्ता नहीं, बल्कि सत्ता बनाम नागरिक बन गया है

आज देश में लोकतंत्र का चरित्र ही बदल गया है। अब सरकार की आलोचना करने वाला लोकतांत्रिक विपक्षी नहीं, देशद्रोही माना जाता है। अब कानून नागरिक की रक्षा नहीं करता, बल्कि सरकार को प्रतिशोध का औजार देता है।

क्या हम चुपचाप लोकतंत्र को कमजोर होते देखेंगे?

जो लोग इंदिरा गांधी के आपातकाल की आलोचना करते नहीं थकते थे, आज उनके मुंह में मोदी के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं है।
क्यों? क्योंकि वह जानते हैं यह अघोषित आपातकाल है।

इंदिरा जी ने आपातकाल लगाया, सत्ता छोड़ी और जनमत का सम्मान किया।
मोदी जी ने आपातकाल नहीं लगाया, लेकिन हर वो काम कर डाला जो लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए ज़रूरी होता है।

भाजपा के लिए देशभक्ति का मतलब है मोदी सरकार से सवाल मत पूछो।
मगर आज भी कांग्रेस के लिए देशभक्ति का मतलब है सरकार चाहे मोदी जी की हो या किसी की भी, हर वह सवाल पूछो जो जनता के हक में है

अगर आज हमने नहीं बोला तो आने वाली पीढियां को सिर्फ इतिहास की किताबों में भारत का लोकतंत्र पढ़ने को मिलेगा।

21 जून 1975 का आपातकाल 635 दिनों बाद समाप्त हो गया और 1025 दिन बाद देश की जनता ने 14 जनवरी 1980 को एक बार फिर से इंदिरा गांधी को देश की बागडोर थमा दी। 31 अक्टूबर 1984 का मनहूस दिन जब इंदिरा जी को प्रधानमंत्री रहते देश के लिए शहीद हो गईं।
इंदिरा गांधी, सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि आयरन लेडी के रूप मजबूत भारत की विरासत हैं

1984 में शहीद होने के एक दिन पहले भुवनेश्वर में इंदिरा जी ने खुद कहा था “जब मैं मरूंगी तब मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करेगा “ और आज हम यह गर्व से कह सकते हैं इंदिरा जी का खून सिर्फ भूमि पर नहीं गिरा, वह हर उसे देशवासी की रगों में दौड़ रहा है जो देश के संविधान की रक्षा के लिए, लोकतंत्र बनाए रखने के लिए और भारत की आत्मा के लिए अडिग रूप से खड़ा है

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