संविधान की रक्षा सिर्फ भाषणों से नहीं होती, बल्कि संस्थाओं की स्वतंत्रता, विपक्ष की आवाज़ और अल्पसंख्यकों के अधिकार से होती है : पर्ल चौधरी

क्या मोदी सरकार भी वैसी ही ईमानदारी और लोकतांत्रिक आत्मा दिखा सकती है? क्या वो चुनाव आयोग पर विपक्ष के सुझाव को मानेगी : पर्ल चौधरी

नई दिल्ली/न्यूयॉर्क/गुरुग्राम, 26 जून 2025: जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार पूरे देश में सरकारी खर्चे के साथ “आपातकाल स्मृति दिवस” मना रही थी, उसी दिन अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से एक ऐसी खबर आई, जिसने भारत के लोकतंत्र को आईना दिखा दिया।

33 वर्षीय मुस्लिम भारतीय-अमेरिकी युवा ज़ोहराण मामदानी ने न्यूयॉर्क सिटी की डेमोक्रेटिक प्राइमरी में जीत दर्ज की वो भी पूर्व गवर्नर एंड्रयू क्युमो जैसे स्थापित नेता को पराजित कर। यह केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं, लोकतंत्र की नैतिक विजय थी, जो भारत के ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ जैसे खोखले नारों पर सीधा प्रहार कर गई।

मुस्लिम, अल्पसंख्यक और विजेता : लेकिन भारत में नामुमकिन?

PRRI के 2023 के अनुसार, न्यूयॉर्क शहर में 59% लोग क्रिश्चियन हैं, 14% यहूदी, 13% अघोषित, सिक्ख समुदाय सहित हिंदु 5% और 9% मुस्लिम।

ज़ोहराण मामदानी न तो बहुसंख्यक वर्ग से आते हैं, न ही किसी वोटबैंक का चेहरा हैं। फिर भी उन्होंने जनता के समर्थन और लोकतंत्र की ताक़त से मेयर की दौड़ में पहला पड़ाव फतह किया।

उधर, भारत का गुजरात, जहां से मामदानी का परिवार आता है वहां भी मुस्लिम आबादी 10% से अधिक है। लेकिन भाजपा ने 30 वर्षों में केवल एक मुस्लिम (अब्दुल गनी कुरैशी) को ही विधानसभा टिकट दिया। गौरतलब है कि ज़ोहरान मामदानी का परिवार मूलतः गुजरात से है और इस्माइली मुस्लिम समुदाय से जुड़ा है। उनके पिता महमूद मामदानी युगांडा में जन्मे भारतीय मूल के विद्वान हैं, जबकि मां मीरा नायर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक हैं मीरा नायर ने सलाम बॉम्बे, मानसून वेडिंग, द नेमसेक जैसे बहुचर्चित और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सिनेमा का बनाई । यह परिवार भारत, विशेषकर गुजरात, अफ्रीका और अमेरिका की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
तो सवाल ये है कि क्या गुजरात का मुसलमान सिर्फ अमेरिका में लोकतंत्र का हिस्सा बन सकता है अपने भारत में नहीं?

मामदानी बोले: “गुजरात में मुस्लिम बचे ही नहीं, ऐसा लोग मान बैठे हैं”

15 मई को न्यूयॉर्क में “न्यू मेयर, न्यू मीडिया” टाउनहॉल (जिसमें शामिल थे: ज़ोहराण मामदानी, आयशा हसन, जैक कार्टर, एलेना टोरेस और मार्क बेलिन्स्की), में मामदानी से पूछा गया कि क्या वे प्रधानमंत्री मोदी के मेडिसन स्क्वायर गार्डन कार्यक्रमों में कभी जाएंगे?

उनका जवाब था:

“लोग शॉक में आ जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि मैं गुजराती मुस्लिम हूं उन्हें लगता है कि गुजरात में मुस्लिम बचे ही नहीं।”

यह एक वाक्य नहीं, बल्कि भारत की वर्तमान राजनीतिक संरचना पर ध्वनि बम था।

कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री पर्ल चौधरी का तीखा वार: “ आज के माहौल में भारत में डर जीतता है, अमेरिका में लोकतंत्र”

कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने मामदानी की जीत और भाजपा के ‘इमरजेंसी इवेंट्स’ को जोड़ते हुए तीखा और बेधड़क बयान दिया:

“गुजरात में मुसलमान वोट डाल सकते हैं, लेकिन अपना नेता नहीं चुन सकते। ये भाजपा का न्यू नॉर्मल है, ‘न्यू इंडिया’ है जिसमें अल्पसंख्यकों का अस्तित्व केवल पोस्टरों तक सीमित है।”

“भारत में भाजपा संविधान बदलने की अपनी मंशा को छिपाने के लिए ‘संविधान बचाओ’ का सरकारी तमाशा कर रही है, जबकि असली लोकतंत्र न्यूयॉर्क से हमें आईना दिखा रहा है।”

“जो व्यक्ति 7 साल पहले तक अमेरिकी नागरिक भी नहीं था, वह आज अमेरिका के सबसे बड़े शहर का मेयर बनने की दावेदारी कर सकता है। लेकिन गुजरात का मुसलमान, जहां वह पीढ़ियों से है, वहां 30 साल में भाजपा से विधानसभा की टिकट तक नहीं पा सकता, अगर ये अघोषित आपातकाल नहीं है तो क्या है?”

संविधान रक्षक बनाम संविधान भक्षक: राहुल गांधी का स्पष्ट आह्वान

जहां भाजपा इंदिरा गांधी के लगाए गए आपातकाल को “संविधान का काला अध्याय” बताकर बार-बार मंच सजाती है, वहीं कांग्रेस पार्टी इस प्रसंग को गंभीरता, आत्ममंथन और जवाबदेही के साथ स्वीकार करती है।

राहुल गांधी, जो इन दिनों कांग्रेस पार्टी के “संविधान रक्षक संवाद” चला रहे हैं, ने आपातकाल के बारे में दो टूक कह रखा है

“इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया — वह एक ऐतिहासिक भूल थी। लेकिन उन्होंने चुनाव कराए, सत्ता छोड़ी और अपनी आलोचना स्वीकार की।”

पर्ल चौधरी ने पूछा कि क्या मोदी सरकार भी वैसी ही ईमानदारी और लोकतांत्रिक आत्मा दिखा सकती है? क्या वो चुनाव आयोग पर विपक्ष के सुझाव को मानेगी ।

पर्ल चौधरी ने भाजपा को याद दिलाया कि संविधान की रक्षा सिर्फ भाषणों से नहीं होती, बल्कि संस्थाओं की स्वतंत्रता, विपक्ष की आवाज़ और अल्पसंख्यकों के अधिकार से होती है।

पर्ल चौधरी ने कहा कि, “आज का भारत एक ऐसे ‘सिस्टमेटिक साइलेंस’ में घिरा है, जहां संविधान को गाया जा रहा है, लेकिन जिया नहीं जा रहा।” लोकतंत्र का असली चेहरा अब न्यूयॉर्क से झाँक रहा है

न्यूयॉर्क की गलियों से आई मामदानी की जीत की गूंज भारत के हर उस नागरिक तक पहुंच रही है जो सवाल पूछता है।

कहावत है : “भगवान की लाठी बेजुबान होती है।”

ज़ोहराण मामदानी का न्यूयॉर्क शहर में डेमोक्रेटिक पार्टी का मेयर उम्मीदवार घोषित होना, कहीं न कहीं उस राजनीतिक साजिश का करारा जवाब है जो भाजपा ने वर्षों से ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी की विरासत को नीचा दिखाने के लिए प्रायोजित करती रही है

आज समय कि मांग है कि जब देश के युवाओं को इंदिरा गांधी की असली पहचान, 1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बाँटकर बांग्लादेश का निर्माण कराने वाली निर्णायक नेतृत्व की, पुनः स्मरण और गर्व के साथ याद कराने की ज़रूरत थी।
पिछले ही महीने, पहलगाम की आतंकी घटना के जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारतीय सेना की तेज़ कार्रवाई ने दिखाया कि यह देश किसी भी दुश्मन को जवाब देना जानता है और यह परंपरा इंदिरा गांधी की ही दृढ़ इच्छाशक्ति से उपजी थी।

लेकिन भाजपा ने इन वीरतापूर्ण विरासतों को भुलाकर एक राजनीतिक ड्रामा रचा, ‘आपातकाल स्मृति दिवस’। और ऊपरवाले ने उसी दिन अमेरिका से जवाब भिजवा दिया ।
यह कोई संयोग नहीं था : यह इतिहास का जवाब था।
है कि लोकतंत्र का मूल्य भाषणों से नहीं बल्कि समाज में बराबरी के अवसरों से नापा जाता है।

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