गुरुग्राम, 30 जून। हूल दिवस के अवसर पर कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आदिवासी समाज की अस्मिता को तोड़ने का आरोप लगाते हुए कहा है कि — “भाजपा द्वारा ‘आदिवासी’ शब्द की जगह ‘वनवासी’ कहने का प्रयास एक राजनीतिक षड्यंत्र है, जो भारत के मूल निवासियों की पहचान मिटाने का कुत्सित प्रयास है।”

पर्ल चौधरी ने गुरुग्राम में एक बयान जारी करते हुए कहा, “हूल दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि संथालों के आत्मसम्मान की चेतना है। 1855 में अंग्रेजों और सामंतवाद के खिलाफ शुरू हुआ यह विद्रोह आज भी जीवित है। लेकिन भाजपा-आरएसएस इसे ‘वनवासी उत्सव’ बना रही है, जो कि संथालों के बलिदान का अपमान है।”

“वनवासी” शब्द नहीं, यह एक विचारधारा का हमला है

पर्ल चौधरी ने कहा कि संविधान में ‘आदिवासी’ शब्द का उल्लेख है, जबकि भाजपा और आरएसएस लगातार ‘वनवासी’ शब्द का प्रयोग करते हैं।

“’वनवासी’ कहना आदिवासियों को जंगलों तक सीमित करना है, जबकि वे इस भूमि के मूल निवासी हैं। उनके पास केवल जंगल नहीं, बल्कि इस देश की आत्मा है।”

उन्होंने कहा कि यह शब्दावली परिवर्तन केवल भाषाई नहीं है, बल्कि संविधानिक अधिकारों को खत्म करने का माध्यम है।

राहुल गांधी का संदर्भ: असली लड़ाई की पहचान

पर्ल चौधरी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के शब्दों को दोहराते हुए कहा, “राहुल जी ने स्पष्ट किया है कि एक पक्ष है जो आदिवासियों के हक और सम्मान की बात करता है, और दूसरा पक्ष है जो उन्हें ‘वनवासी’ कहकर उनकी जमीन, संस्कृति और अधिकार छीनना चाहता है। यही आज की असली लड़ाई है।”

हूल दिवस को ‘उत्सव’ में बदलना एक सोची-समझी साजिश

उन्होंने कहा कि भाजपा ने ‘हूल दिवस’ को ‘वनवासी उत्सव’ बनाकर उसके मूल राजनीतिक संदेश को खत्म करने की कोशिश की है।

“यह दिन सिद्दू-कान्हू, फूलो-झानो जैसे योद्धाओं की स्मृति का दिन है, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और महाजनी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया था। भाजपा अब उसी संघर्ष को सांस्कृतिक उत्सव में बदलकर उसकी धार कुंद करना चाहती है।”

भाजपा की नीतियों ने हमेशा आदिवासी हितों को कुचला

पर्ल चौधरी ने आरोप लगाया कि भाजपा ने हमेशा आदिवासी हितों के खिलाफ काम किया है —

  • वन अधिकार कानून को कमजोर किया,
  • जमीन अधिग्रहण को कारपोरेट्स के पक्ष में मोड़ा,
  • और विरोध करने वाले आदिवासियों को नक्सली बताकर जेलों में डाल दिया।

“संविधान और अस्मिता दोनों की रक्षा ज़रूरी”

कांग्रेस नेत्री ने स्पष्ट किया कि आज की लड़ाई, 1855 के हूल विद्रोह की अगली कड़ी है।

“आज दो विचारधाराएं आमने-सामने हैं — एक जो आदिवासियों को उनका हक देना चाहती है, और दूसरी जो उन्हें ‘वनवासी’ कहकर हाशिए पर धकेलना चाहती है। कांग्रेस पार्टी हमेशा से संविधान के साथ और आदिवासी अस्मिता के साथ खड़ी रही है, और आगे भी रहेगी।”

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