
रेवाड़ी, 4 जुलाई 2025। भारतीय संस्कृति, वेद और उपनिषद को पूरी दुनिया में गौरव दिलाने वाले महान संत स्वामी विवेकानंद की 123वीं पुण्यतिथि पर स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद न केवल एक महान योगी थे, बल्कि आधुनिक भारत के प्रेरणा स्तंभ भी हैं। अपने मात्र 39 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने भारतीय संस्कृति का जो प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाया, वह युगों-युगों तक अमिट रहेगा।
“संस्कृति के विश्वदूत थे स्वामी विवेकानंद” – विद्रोही
वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा कि अमेरिका और यूरोप में भारतीय वेद, उपनिषद और जीवनदर्शन का प्रसार जिस आत्मविश्वास और विवेक के साथ स्वामी विवेकानंद ने किया, वह अद्वितीय और ऐतिहासिक है। उनकी साधना और सेवा का फल है कि आज भी भारत का अध्यात्मिक ज्ञान विश्व को दिशा देता है।
“स्वामीजी का शिकागो में दिया गया संबोधन ‘मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों’ शब्दों से शुरू होकर भारतीय संस्कृति की आत्मा बन गया,” – विद्रोही
रामकृष्ण मिशन बना सेवा और ज्ञान का केंद्र
विद्रोही ने कहा कि स्वामी विवेकानंद द्वारा 1897 में स्थापित रामकृष्ण मिशन आज मानवता, सेवा और संस्कार का विशाल केंद्र बन चुका है। देश-विदेश में यह संस्था शिक्षा, स्वास्थ्य और अध्यात्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है।
बेलूर मठ से दी अध्यात्म की अमर धारा
स्वामी विवेकानंद का जीवन त्याग, सेवा और आत्मज्ञान का प्रतीक रहा। उन्होंने 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में अपने जीवन का अवसान किया, परंतु उनके विचार आज भी अमर हैं।
पुण्यतिथि पर विद्रोही का संदेश:
“स्वामीजी ने सिखाया कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि सेवा और कर्म का नाम है। आज उनके बताए मार्ग पर चलकर ही हम भारत को फिर से विश्वगुरु बना सकते हैं।”
वेदप्रकाश विद्रोही ने युवाओं से आह्वान किया कि वे स्वामी विवेकानंद के विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करें, क्योंकि वही सच्ची राष्ट्रसेवा और आत्मोन्नति का मार्ग है।
विशेष जानकारी:
- जन्म: 12 जनवरी 1863, कोलकाता
- विश्व धर्म संसद: 11-27 सितम्बर 1893, शिकागो
- पुण्यतिथि: 4 जुलाई 1902, बेलूर मठ
- जीवन दर्शन: “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो”
स्वामी विवेकानंद को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी शिक्षाएं युगों तक हमारे पथ-प्रदर्शक बनी रहें।