विशेषज्ञों की बजाय सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं को तरजीह देने का आरोप
चंडीगढ़, 9 जुलाई। हरियाणा शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने प्रदेश के 80 नगर निकायों—नगर निगम, नगरपालिका परिषदों और नगरपालिका समितियों—में मनोनीत पार्षदों (नॉमिनेटेड सदस्यों) की सूची अधिसूचित की है। यह अधिसूचना विभाग के आयुक्त एवं सचिव विकास गुप्ता के हस्ताक्षरों से दो अलग-अलग नोटिफिकेशन के ज़रिए जारी की गई।
हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर कानूनी सवाल भी उठाए जा रहे हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और नगरपालिका कानून मामलों के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (आर) और हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 तथा हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 के अनुसार, केवल उन्हीं व्यक्तियों को नॉमिनेट किया जाना चाहिए जिन्हें नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव हो। परंतु, व्यावहारिक तौर पर अधिकतर नॉमिनेशन सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही दिए जाते हैं।
एडवोकेट हेमंत ने कहा कि कई बार तो नॉमिनेटेड सदस्य ऐसे लोग बना दिए जाते हैं जो आम चुनाव में हार चुके हों या जिन्हें टिकट ही न मिला हो। इस तरह यह राजनीतिक समायोजन का माध्यम बन गया है, जो कानून की मूल भावना के विपरीत है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि नॉमिनेटेड सदस्य सदन की बैठकों में वोटिंग का अधिकार नहीं रखते, न ही वे सीनियर डिप्टी मेयर अथवा डिप्टी मेयर का चुनाव लड़ सकते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें निगम की विभिन्न समितियों में भी सदस्य नहीं बनाया जा सकता। नॉमिनेटेड सदस्यों के लिए किसी शपथग्रहण की आवश्यकता नहीं होती; केवल सरकारी गजट में प्रकाशित अधिसूचना ही उनके पद पर नियुक्ति की पुष्टि करती है।
मानदेय की बात करें तो, नगर निगम में नॉमिनेटेड पार्षद को प्रति माह ₹15,000, नगरपालिका परिषद में ₹12,000 और नगरपालिका समिति में ₹8,000 दिए जाते हैं। यह राशि राज्य सरकार नहीं, बल्कि स्थानीय निकाय के फंड से दी जाती है। भले ही नगर निकाय की बैठकें हों या न हों, सभी मनोनीत सदस्य हर महीने यह मानदेय प्राप्त करते हैं, जिससे यह खर्च लाखों रुपये में पहुंचता है।
एडवोकेट हेमंत ने इस व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब यह पद विशेषज्ञों के लिए हैं, तो इन पर राजनीतिक नियुक्तियों का चलन स्थानीय स्वशासन की आत्मा के विपरीत है।