– विजय गर्ग

कभी अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के वक्त डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया था कि वे तमाम युद्धों को बंद करवा देंगे। लेकिन समय के साथ वादे बदलते गये और अब ट्रंप कह रहे हैं कि वे यूक्रेन को और हथियार देंगे। यानी रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा – उल्टा, हथियारों की सप्लाई बढ़ रही है।
दूसरी ओर, ईरान और अमेरिका एक-दूसरे को लगातार धमकियां दे रहे हैं – “देख लूंगा”, “बर्दाश्त नहीं करेंगे” जैसी भाषा में। दुनिया के अलग-अलग कोनों में युद्ध थमे नहीं हैं, और ट्रंप की शांति की बातें अब कोई नहीं सुन रहा। मगर ट्रंप वही सुन रहे हैं जो उनके कारोबारी हित में हो।
असल में, जब युद्ध बढ़ता है, तो हथियारों की बिक्री भी बढ़ती है। और यही ट्रंप की दिलचस्पी है – व्यापार में। ठहर चुके युद्धों का मतलब होता है ठहरे हुए मुनाफे। और मुनाफा न हो तो ट्रंप जैसे कारोबारी नेता को क्या फायदा?
हथियार कंपनियां युद्ध में मुनाफा कमाती हैं, नेता उसमें से ‘कमीशन’ खाते हैं, और आम जनता? वो क्या खा रही है – इसकी चिंता शायद किसी सरकार को नहीं।
पाकिस्तान इसका एक ताज़ा उदाहरण है। महंगाई चरम पर है, फिर भी सेना बजट का सबसे बड़ा हिस्सा मांग रही है। सेना कोई युद्ध जीतती नहीं, लेकिन हर साल ज्यादा हिस्सा ले जाती है। पाकिस्तान में जो जनरल युद्ध हारता है, वह अगला फील्ड मार्शल बन जाता है! डर इस बात का है कि मौजूदा सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर कहीं प्रधानमंत्री मोदी से यह न कह बैठें – “एक हमला और कर दीजिए, फिर मैं राष्ट्रपति बन जाऊंगा!”
पाकिस्तान की हालत उस ‘गर्लफ्रेंड’ जैसी हो गई है, जो दोनों ब्वॉयफ्रेंड – चीन और अमेरिका – से वसूली करना चाहती है। और दोनों ब्वॉयफ्रेंड जानते हैं कि यह ‘धंधेबाज’ है, फिर भी रिश्ता निभा रहे हैं।
ट्रंप को ऐसे ‘उधार के ग्राहक’ पसंद नहीं – उन्हें तो नकद चाहिए। पाकिस्तान जैसे देश की ट्रंप को कोई खास परवाह नहीं, क्योंकि वहां से ‘कलेक्शन’ की उम्मीद नहीं।
उधर ट्रंप के पुराने दोस्त और दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में एक – एलन मस्क – अब अपनी राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं। मस्क को समझ आ गया है कि बाकी धंधों की तरह राजनीति भी एक मुनाफे का सौदा है। चार पैसे एक्स्ट्रा कमाने के चक्कर में अगर थोड़ी ‘इज्जत’ भी चली जाए, तो भी चलता है।
आज की तारीख में अमेरिका पर कोई देश आंख मूंद कर भरोसा नहीं करता। धंधे वालों के लिए पहली प्राथमिकता मुनाफा होता है – जो हथियार खरीदे वही दोस्त, और जो नकद में खरीदे, वह परम मित्र!
भारत राफेल खरीदता है फ्रांस से, अमेरिका से नहीं – फिर दोस्ती कैसे चले? ट्रंप के लिए यह ‘गहरी बात’ है – और वे इसे खूब समझते हैं।