ऋषिप्रकाश कौशिक

गुरुग्राम – प्रधानमंत्री की बहुचर्चित रेडियो वार्ता ‘मन की बात’ आज जिस पड़ाव पर है, वहां उसकी लोकप्रियता और प्रभावशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं। आज भाजपा कार्यालय से जारी प्रेस नोट भी इस सच्चाई की गवाही देता है कि यह कार्यक्रम अब न केवल आम जनमानस बल्कि पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं तक को आकर्षित नहीं कर पा रहा है।

इस राष्ट्रीय विमर्श के स्थानीय प्रतिबिंब की बात करें तो ‘मन की बात’की स्थिति बेहद चिंताजनक है। जिलाध्यक्ष पिंटू त्यागी की कार्यशैली के प्रति कार्यकर्ताओं में जबरदस्त असंतोष है। हालिया घटनाओं ने इस असंतोष को और स्पष्ट किया है—चाहे वो डेयरी चेयरमैन पद पर श्री बिट्टू जी की नियुक्ति हो, जो न कभी संगठन से जुड़े थे और न ही डेयरी से परिचित, या फिर जिला कष्ट निवारण समिति में ऐसे चेहरों को जिम्मेदारी देना जिनका हाल तक पार्टी से कोई रिश्ता नहीं था।

यह कैसे संभव है कि जिन कार्यकर्ताओं ने वर्षों तक पार्टी की सेवा की, उन्हें नजरअंदाज करके ऐसे लोगों को जिम्मेदारी दी जा रही है जिनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि या निष्ठा स्पष्ट नहीं है? सवाल उठता है—क्या संगठन में अब योग्यता का पैमाना केवल व्यक्तिगत समीकरण और गुटबाजी बनकर रह गया है?

और भी विडंबना तब दिखती है जब जनता त्रस्त है—

गुरुग्राम की सफाई व्यवस्था चरमराई हुई है, गलियों में जलभराव है, और नागरिक समस्याओं का कोई स्थायी समाधान नहीं दिखाई देता। ऐसे में चुने हुए जनप्रतिनिधि कांवड़ सेवा या अन्य आयोजनों में व्यस्त हैं। जनता जब अपने प्रतिनिधियों को फोन करती है तो वे फोन उठाना तक जरूरी नहीं समझते। जिलाध्यक्ष खुद भी इस व्यवहार में पीछे नहीं हैं—मैंने स्वयं कई बार फोन करके बात करनी चाही, लेकिन हर बार केवल निराशा ही हाथ लगी।

क्या यही है ‘सबका साथ, सबका विकास’ का धरातल पर उतरा स्वरूप?
क्या अब पार्टी का ध्यान केवल आयोजनों, तस्वीरों और प्रचार तक सीमित हो गया है?

“मन की बात” के माध्यम से प्रधानमंत्री भले ही देशवासियों से जुड़ने का प्रयास कर रहे हों, लेकिन यदि संगठन में जमीनी सच्चाइयों को नजरअंदाज किया जाएगा, तो यह कार्यक्रम भी केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा।

अब देखना यह है कि क्या इस बार के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इन नेताओं को कोई आत्ममंथन की प्रेरणा मिलेगी या फिर यह संवेदनहीनता और उपेक्षा का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा…

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