क्या यही है वह भाजपा, जो कभी नैतिकता और अनुशासन की मिसाल हुआ करती थी?
छेड़छाड़ के आरोपी को सजा नहीं, संवैधानिक सम्मान दिया जाए?

गुरुग्राम – भारतीय जनता पार्टी, जो कभी पारदर्शिता, नैतिकता और परिवारवाद के विरोध की प्रतिमूर्ति मानी जाती थी, और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे को बुलंद करती नहीं थकती थी, अब स्वयं अपने आदर्शों को शर्मसार कर रही है। हाल ही में राज्यसभा सांसद एवं हरियाणा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के पुत्र विकास बराला को एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) नियुक्त किया गया — जिसने एक समय एक आईएएस अधिकारी की बेटी से छेड़छाड़ का गंभीर आरोप झेला और कानून के साथ खिलवाड़ किया।
इस शर्मनाक नियुक्ति ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब बीजेपी का “संघर्ष का युग” समाप्त होकर “शर्म का युग” शुरू हो चुका है?
गिरती साख और उलटे-सीधे फैसले :
भाजपा की यह निर्णय प्रक्रिया अब अराजक प्रतीत हो रही है। लड़खड़ाती हुई पार्टी संघर्ष और सिद्धांतों की जगह अब *समर्पण और समझौतों की ओर बढ़ती दिख रही है।
एक न्यायिक पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति, जो स्वयं एक समय कानून के मज़ाक का प्रतीक बन चुका हो, न सिर्फ विपक्ष को बल्कि आमजन को भी झकझोर गई है।
परिवारवाद की नई परिभाषा?
जो पार्टी नेहरू-गांधी परिवारवाद को कोसती नहीं थकती थी, वही अब एक छेड़छाड़ के दोषी को उसके पिता के रसूख के बल पर न्यायिक पद दे रही है। यह न केवल नैतिक गिरावट है, बल्कि जन आक्रोश को न्योता देने जैसा है।
विपक्ष की भूमिका और कांग्रेस संबंध:
विकास बराला की नियुक्ति से विपक्ष को एक मजबूत मुद्दा तो मिला है, लेकिन जानकारों का मानना है कि चूंकि सुभाष बराला के संबंध कांग्रेस के कई बड़े नेताओं से हैं और गाढ़ी रिश्तेदारी भी है , शायद इसी कारण विपक्ष भी इस मुद्दे पर सतही विरोध तक सीमित रह सकता है।
जनता का संभावित आक्रोश:
हालांकि, विपक्ष का रुख कुछ भी हो, जनता में इस नियुक्ति को लेकर गहरा असंतोष देखा जा रहा है। यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि आने वाले दिनों में सरकार की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। यदि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने समय रहते इसका संज्ञान नहीं लिया, तो यह मामला पार्टी के लिए एक भारी राजनीतिक संकट में बदल सकता है।
“तेरी लड़खड़ाहट बयां कर रही है, कि शमें दौर अब खत्म होने को है…”
अब जनता सवाल पूछ रही है — क्या ये वही बीजेपी है, जो कभी नैतिकता और अनुशासन की मिसाल हुआ करती थी? और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा यही है कि एक बेटी के साथ छेड़छाड़ के आरोपी को सजा के बजाय कानून अधिकारी का ताज सौंप दिया I