जलभराव से निजात दिलाने में एमसीजी टीमों की अहम भूमिका, निगमायुक्त खुद कर रहे थे निगरानी

गुरुग्राम, 31 जुलाई। वीरवार को शहर में हुई मूसलाधार बारिश के दौरान नगर निगम गुरुग्राम की तत्परता और सक्रियता दिखाई दी। बारिश के दौरान एमसीजी की टीमें मौके पर मौजूद रहीं और जलनिकासी व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाई।

नगर निगम की टीमें सिर्फ मुख्य सड़कों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि सेक्टरों, कॉलोनियों, गलियों और अंदरूनी सड़कों तक पहुंचकर जलभराव की समस्या का समाधान करती रहीं। विशेष रूप से जिन स्थानों पर जलभराव की पुरानी समस्या रही है, वहां पर टीमों ने पहले से तैयारी कर रखी थी और तुरंत कार्रवाई करते हुए जल निकासी सुनिश्चित की।

बरसात के कारण कई स्थानों पर पेड़ गिरने की घटनाएं भी सामने आईं, जिससे यातायात प्रभावित हो सकता था। लेकिन नगर निगम की बागवानी टीमों ने तेजी से मौके पर पहुंचकर पेड़ों को हटाया और रास्तों को जल्द से जल्द साफ कर सुचारू रूप से यातायात चालू किया।

नगर निगम के संयुक्त आयुक्त स्तर के अधिकारी भी फील्ड में नजर आए और कर्मचारियों का उत्साहवर्धन करते हुए कार्यों को सुनिश्चित किया। उनके नेतृत्व में टीमें और अधिक प्रभावी ढंग से काम करती दिखाई दीं।निगमायुक्त प्रदीप दहिया स्वयं पूरे अभियान की निगरानी करते रहे। वे कंट्रोल रूम और फील्ड से लगातार अपडेट लेते रहे और जरूरत के अनुसार अधिकारियों व कर्मचारियों को दिशा-निर्देश भी देते रहे।

निगमायुक्त के अनुसार शहर को जलभराव जैसी समस्या से मुक्त कराना हमारी प्राथमिकता है। हमने सभी संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर पहले से तैयारी कर रखी थी। भविष्य में भी इसी तरह की कार्यप्रणाली अपनाकर नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान की जाएंगी।

संपादकीय टिप्पणी: तात्कालिक नहीं, स्थायी समाधान चाहिए गुरुग्राम को

गुरुग्राम में हुई हालिया मूसलाधार बारिश के दौरान नगर निगम की त्वरित कार्रवाई का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन इससे जुड़े कुछ बुनियादी सवालों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। क्या एक दिन की सक्रियता से गुरुग्राम जलभराव से मुक्त हो गया? क्या नागरिकों की वर्षों पुरानी समस्याएं एक बार की तत्परता से हल हो गईं?

हकीकत यह है कि कई क्षेत्रों में अब भी पानी भरा हुआ है, नालियों की सफाई अधूरी है, और मूलभूत ढांचागत खामियां जस की तस बनी हुई हैं। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जो कार्य जुलाई में किए जा रहे हैं, वे अप्रैल–मई में क्यों नहीं हुए, जब इनकी सबसे अधिक आवश्यकता थी?

जनता जानना चाहती है कि आखिर हर वर्ष यही स्थिति क्यों बनती है? अगर संवेदनशील इलाकों की पहचान पहले से थी तो उन इलाकों में पूर्व-निर्धारित उपाय समय रहते क्यों नहीं हुए? और यदि हुए भी, तो उनकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

सबसे गंभीर प्रश्न यह है कि जहां लापरवाही हुई — वह चाहे इंजीनियरिंग में हो, टेंडर प्रक्रिया में हो या फिर फील्ड मॉनिटरिंग में — वहां जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की गई? अगर कोई कर्मचारी या अधिकारी अपनी ज़िम्मेदारी में चूकता है, या फिर जानबूझकर लापरवाही या भ्रष्टाचार करता है, तो उस पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?

नगर निगम को यह समझने की ज़रूरत है कि जनता अब केवल तात्कालिक राहत से संतुष्ट नहीं होगी। जनता जवाबदेही चाहती है — सिर्फ़ बयान नहीं, परिणाम चाहती है।

समस्या की जड़ तक पहुंचे बिना उसका समाधान सिर्फ़ सतही बनकर रह जाएगा। अब समय आ गया है कि गुरुग्राम में स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं — सिर्फ बारिश में नहीं, बल्कि पूरे साल योजना, तैयारी और पारदर्शिता के साथ। वरना हर बरसात के साथ यही कहानी दोहराई जाएगी, और जनता को उसी परेशानी का सामना बार-बार करना पड़ेगा।

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