वानप्रस्थ क्लब में “बिहार की संस्कृति एवं इतिहास” पर संगोष्ठी का आयोजन

हिसार, 7 अगस्त – “बिहार का राजनीतिक इतिहास चाहे 106 वर्ष पुराना हो, लेकिन बिहार का सांस्कृतिक और बौद्धिक इतिहास हज़ारों वर्षों की स्वर्णिम गाथा है। यह भूमि विद्वानों, वीरों और क्रांतिकारियों की रही है। बिहार केवल एक राज्य नहीं, बल्कि एक चेतना है जो भारत की आत्मा से जुड़ी है।” ये प्रेरणास्पद विचार डॉ. बी. के. सिंह (सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार) ने अपने जन्मदिवस के अवसर पर वानप्रस्थ सीनियर सिटीज़न क्लब, हिसार में आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए।
बिहार के खगड़िया ज़िले के एक सुदूर गांव से संबंध रखने वाले डॉ. सिंह ने अपने उद्बोधन में बिहार के गौरवशाली अतीत से लेकर वर्तमान सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियों पर विचार रखे।

डॉ. सिंह ने बताया कि वैदिक काल में विदेह राज्य की स्थापना, जनक और सीता की पौराणिक कथा, द्वापर युग में मगध के सम्राट जरासंध की शक्ति, मौर्य, गुप्त और नंद वंशों की शासन व्यवस्था – यह सब बिहार को इतिहास में एक विशेष स्थान प्रदान करता है। चाणक्य, अशोक, आर्यभट जैसे महान विभूतियों की भूमि बिहार प्राचीन काल से ही ज्ञान, शासन, धर्म और विज्ञान की भूमि रही है।नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाया था, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। डॉ. सिंह ने कहा कि “बिहार की बौद्धिक विरासत आज भी भारत के शैक्षणिक पुनर्जागरण की प्रेरणा है।

डॉ. सिंह ने बिहार की सांस्कृतिक विविधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहाँ भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका, और तिरहुत जैसी भाषाएँ आज भी जीवंत हैं। छठ, होली, दीपावली, ईद, बकरीद, गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती जैसे पर्व पूरे सौहार्द के साथ मनाए जाते हैं। मधुबनी की चित्रकला, लोकगीत, पारंपरिक वाद्ययंत्रों और संस्कार गीतों के माध्यम से बिहार की लोकसंस्कृति भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करती है।

डॉ. सिंह ने चिंता जताते हुए कहा कि इतनी समृद्ध विरासत होने के बावजूद बिहार आज सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ राज्य बना हुआ है।उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति आय: भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय जहाँ ₹2,02,000 के आसपास है, वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय अब भी ₹55,000 से कम है – जो देश में सबसे कम है।बिहार की साक्षरता दर अभी लगभग 70.9% है, जो राष्ट्रीय औसत (77.7%) से काफी कम है। इसमें महिला साक्षरता दर सिर्फ 61% है।

वर्ष 2024 की अनुमानित जनगणना अनुसार बिहार में लिंगानुपात में सुधार हुआ है और यह अब लगभग 918 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष तक पहुँचा है, लेकिन यह अभी भी राष्ट्रीय औसत से नीचे है।बिहार की आबादी 13 करोड़ से अधिक है और यह भारत का तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जिससे संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बना रहता है। उन्होंने बताया कि विकास की धीमी गति धीमी प्रगति का यह मुख्य कारण है । उन्होंने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में लंबे समय तक उपेक्षा , औद्योगिकीकरण की कमी और कृषि पर अत्यधिक निर्भरता एवं जातिवादी राजनीति और अल्पकालिक शासन और प्राकृतिक आपदाएँ बाढ़, सूखा, , जल प्रबंधन की समस्याएं और कुशल प्रशासन का अभाव और व्यापक भ्रष्टाचार बिहार के विकास में सबसे बड़ी बाधा बनी रही है ।

डॉ. सिंह ने सकारात्मक रुझानों की ओर भी संकेत किया और बताया कि बिहार अब विकास की ओर बढ़ रहा है । बिहार में बुनियादी ढांचे में तीव्र गति से सुधार हो रहा है: 50,000 किमी से अधिक सड़कों का निर्माण, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गाँव-गाँव सड़कें , शिक्षा क्षेत्र में नए स्कूल, कॉलेज, और तकनीकी संस्थान खुल रहे हैं। पटना विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनः स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है । स्वास्थ्य सेवाओं में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में वृद्धि और टेलीमेडिसिन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं ।
महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार प्रयास कर रही है । उदाहरण के तौर पर महिला आरक्षण, बाल विवाह विरोधी अभियानों, मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना आदि पर भी तीव्र गति से काम किया जा रहा है । डा सिंह ने कहा कि केंद्र की ओर से भी कई विकास परियोजनाएं चल रहीं हैं और बिहार तेजी से विकास की दिशा मे अग्रसर हो रहा है ।

चर्चा में भाग लेते हुए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर श्री धर्म पाल ढुल्ल ने कहा
कि बिहार के समृद्ध संस्कृति एवं इतिहास रहे है किंतु अब बिहार की गिनती पिछड़े राज्यों होती है । कृषि उत्पादनों के लिए ठोस नीतियों की कमी, मंडियों का ना होना और किसानों के घटती आय, उद्योगों की कमी बिहार के पिछड़े पन का कारण हैं । बिहार में उपलब्ध संसाधन और श्रमशक्ति उस प्रदेश को समृद्ध बनाने में सक्षम किंतु व्यवस्था और सरकारें इनका सही उपयोग नहीं कर पाईं हैं।

दूर दर्शन के भूतपूर्व निदेशक श्री अजीत सिंह ने कहा कि 1857 की क्रांति में सक्रिय भूमिका निभाने का दंड बिहार को आज भी भुगतना पड़ रहा है। ब्रिटिश शासन की अनदेखी और सामंती व्यवस्था ने बिहार को पीछे धकेला। वही डा ए. एल. खुराना, सोनिया और राज गर्ग ने भी चर्चा भाग लिया ।

क्लब के महासचिव डॉ. जे. के. डाँग ने इस अवसर पर डॉ. सिंह को जन्मदिवस की बधाई देते हुए कहा कि अल्पायु में विवाह होने के बाजूद अपनी लगन और मेहनत से पशु विज्ञान के शोध अपना नाम रोशन किया है ।डा सिंह मृदु भाषी, हँसमुख आदर्श नागरिक हैं जो समाज और संस्कृति को समान दृष्टि से देखते हैं।

क्लब के प्रधान डा एस के अग्रवाल ने डा सिंह को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने ने बिहार की वस्तुस्थिति का बड़े सुंदर ढंग से चित्रण किया है । उन्होंने कहा कि बिहार विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है ।

कार्यक्रम के अंत में क्लब की ओर से डॉ. सिंह को पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया। जन्मोत्सव पर डा एस. के. महेशवरी, डा: अजीत कुंडू, डा: एम एस. राणा ने गीत प्रस्तुत किए ।

इस अवसर पर डा : वी के कौड़ा की ओर से सब सदस्यों को एक पौधा भेंट किया गया । डा सिंह की ओर से सभी के लिए जलपान की विशेष व्यवस्था की गई। दो घंटे तक चली इस प्रेरणादायक संगोष्ठी में लगभग 40 सदस्यों ने भाग लिया

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