गुरुग्राम – ऋषिप्रकाश कौशिक, 11 अगस्त 2025 – बीजेपी, जिसे “अनुशासन की पार्टी” कहकर प्रचारित किया जाता है, गुरुग्राम नगर निगम में इस समय अपने ही नेताओं की खींचतान का मैदान बन चुकी है। निगम चुनावों को पांच महीने से ज़्यादा हो चुके हैं, मगर सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर की कुर्सियां अब तक खाली पड़ी हैं।
असली वजह – राव इंदरजीत बनाम नरबीर की पुरानी अदावत
स्थानीय सांसद राव इंदरजीत सिंह और हरियाणा सरकार में मंत्री नरबीर सिंह के बीच वर्षों पुराना राजनीतिक टकराव इस गतिरोध की जड़ है। यही खींचतान हाल में मानेसर चुनाव में भी दिखी थी, जहां बताया जाता है कि नरबीर को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का भी समर्थन मिला। आरोप तो यहां तक लगे कि बीजेपी पार्षदों को मतदान से पहले नेपाल भेजा गया और वोटिंग के दिन सीधे स्थल पर लाया गया।
अब वही स्क्रिप्ट गुरुग्राम में भी—पार्षद तीन खेमों में बंटे हैं: राव इंदरजीत गुट, नरबीर गुट और पूर्व विधानसभा प्रत्याशी नवीन गोयल के समर्थक।
बहुमत के बावजूद बिखरी पार्टी
पार्टी का दावा है कि मेयर समेत बीजेपी के पास पर्याप्त बहुमत है, लेकिन हकीकत यह है कि अंदरूनी कलह ने पार्टी को तीन हिस्सों में बांट दिया है। सूत्रों के मुताबिक इस चुनाव में “पैसे के खेल” की भी आशंका है, जिसकी भनक केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच चुकी है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर तारीख टालने का रास्ता ही चुना गया।
अटल की विरासत बनाम आज की राजनीति
विडंबना देखिए—यही पार्टी 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक वोट से सरकार गिरने के बाद समझौता करने की बजाय विपक्ष में बैठने का ऐतिहासिक निर्णय ले चुकी है। और आज, वही पार्टी के नेता महज एक कुर्सी हथियाने के लिए पांच महीने से जोड़-तोड़, “साम-दाम-दंड-भेद” की राजनीति में उलझे हैं।
जनता के मुद्दे हाशिये पर
गुरुग्राम की गंदगी, जलभराव और आधारभूत सुविधाओं की बदहाली पर ध्यान देने के बजाय नेताओं की सारी ऊर्जा कुर्सी की राजनीति में खप रही है। शीर्ष नेतृत्व भी इस कलह पर लगाम लगाने में असहाय या अनिच्छुक दिख रहा है।