·        पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके गरीबों के लिए बैंकों के दरवाजे खोले, जिसे बीजेपी सरकार बंद कर रही है – दीपेन्द्र हुड्डा

·        बैंकों के विलय और निजीकरण की पूरी प्रक्रिया गोपनीय रखकर जनता को अंधेरे में रखा जा रहा – दीपेन्द्र हुड्डा

·        बैंकों के निजीकरण और विलय से बड़े पैमाने पर होगी छंटनी, बढ़ेगी बेरोजगारी– दीपेन्द्र हुड्डा

·        निजीकरण के नाम पर बीजेपी सरकार देश की संपत्ति को प्राइवेट कंपनियों के हाथ सौंप रही – दीपेन्द्र हुड्डा

चंडीगढ़, 18 अगस्त। दीपेन्द्र हुड्डा ने संसद में सरकार से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अलावा अन्य बैंकों के निजीकरण की योजना और विचाराधीन बैंकों के नाम पूछते हुए उन बैंकों के विनिवेश से प्राप्त होने वाले अनुमानित राजस्व पर सवाल किया और ये भी पूछा कि क्या सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय या समेकन के किसी नए प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इसके जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि दो बैंकों के निजीकरण और आगे और बैंकों के विलय की संभावनाओं पर विचार कैबिनेट समिति करेगी। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार न तो बैंकों के नाम सार्वजनिक कर रही है और न ही यह बता रही है कि कितने राजस्व की अपेक्षा है। सरकार के जवाब से स्पष्ट है कि पूरी प्रक्रिया को गोपनीय रखकर जनता को अंधेरे में रखा जा रहा है। भाजपा राज में सरकारी संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है। सरकारी बैंक में आम और गरीब निश्चिन्त होकर अपना पैसा डाल देता था। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके गरीबों के लिए बैंकों के दरवाजे खोले, जिसे बीजेपी सरकार बंद कर रही है। कांग्रेस की आर्थिक नीति से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का लाभ आम गरीब उठाता था, बीजेपी की नीति से गरीबों को मिलने वाला लाभ अब चंद धनाढ्यों की तिजोरियों में जाएगा।

सांसद दीपेन्द्र ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मेरे सवाल पर संसद में दिए गए उत्तर से स्पष्ट होता है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) का निजीकरण और विलय करने पर आमादा है। केंद्र सरकार की यह नीति देश की वित्तीय संप्रभुता के साथ खिलवाड़ है और इसका सीधा लाभ केवल बड़े कॉरपोरेट घरानों को मिलेगा, जबकि इसका खामियाज़ा करोड़ों आम ग्राहकों और कर्मचारियों को उठाना पड़ेगा। क्योंकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक गरीबों, किसानों, छात्रों और छोटे व्यवसायियों की रीढ़ हैं। सरकार की गलत नीतियों से सरकारी बैंक निजी हाथों में चले जाएंगे, जिससे आम उपभोक्ताओं के लिए बैंकिंग सेवाएं महंगी हो जाएंगी।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्रों में नये रोजगार देने का खोखला दावा करती है, लेकिन वास्तविकता इसके उलट है। बैंकों के निजीकरण और विलय से बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी होगी और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे। निजीकरण के नाम पर इस सरकार ने जहाज बेच दिए, हवाई अड्डे बेच दिए, सरकारी होटल बेच दिए, रेल बेच दी, चिकित्सा बेच दी, सड़क बेच दी, खेल स्टेडियमों, बिजली पारेषण लाइनों और गैस पाइपलाइनों सहित देश की संपत्ति को निजी कंपनियों को सौंप दिया। सरकार के कार्य-कलापों से ऐसा लगता है जैसे ये सरकार न होकर के प्राइवेट कंपनी हो। यदि सब कुछ प्राइवेट हाथों में ही देना है तो फिर सरकार की क्या जरूरत है। कॉर्पोरेट क्षेत्र में स्थायी रोजगार की बजाय कॉन्ट्रैक्ट और गिग इकॉनॉमी का चलन बढ़ रहा है, जिससे युवाओं का भविष्य असुरक्षित हो रहा है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि देश में 45 साल की सबसे बड़ी बेरोजगारी है। जबकि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में है। प्रदेश का युवा बेरोजगारी से हताशा, हताशा से नशे और नशे से अपराध और पलायन की तरफ बढ़ गया। हमारे नौजवानों को अपना सब कुछ बेचकर काम के लिए विदेशों की ओर पलायन करना पड़ रहा है।

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