भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी हरियाणा में वर्तमान में कमजोर नजर आ रही है। लगता है कि वह अपनी आगे की राह ढूंढ रही है। जिस प्रकार जनवरी में संगठन चुनाव होने थे, जो आज तक वे नहीं हो पाए हैं। उससे यह अनुमान लगता है कि भाजपा भी कांग्रेस की राह चल रही है।

जिस प्रकार कांग्रेस में अशोक तंवर प्रधान बने तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने आदमियों को निष्क्रिय रहने को बोल दिया और वह अपने पूरे कार्यकाल में हरियाणा में अपना संगठन नहीं बना पाए। अब वर्तमान में कुमारी शैलजा को प्रधान बनाया गया है, लेकिन इतना समय होने के पश्चात भी कांग्रेस अपना संगठन खड़ा नहीं कर पाया है, क्योंकि कांग्रेस में अनेक क्षेत्रीय क्षत्रप हैं जैसे रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी आदि-आदि और वे सभी अपनी-अपनी सियासत चमकाने में लगे रहते हैं। पार्टी का कद उन्हें अपने कद के बाद दिखाई देता है।

भाजपा में भी जनवरी में चुनाव होने थे लेकिन अब तक नहीं हो पाए। संगठन में असंतोष है। यदि मैं यह कहूं कि संगठन बिखराव की तरफ है तो भी शायद अनुचित नहीं होगा। भाजपा में जो अब हो रहा है, ऐसी स्थिति हरियाणा भाजपा में इससे पूर्व कभी देखी नहीं गई, चाहे वह विपक्ष में ही थी।
वर्तमान में भाजपा में भी ऐसा ही दिखाई दे रहा है कि प्रधान पद पाने के लिए अनेक खेमे बनते नजर आ रहे हैं।

मुख्य रूप से कहा जाता है कि प्रधान मुख्यमंत्री समर्थक होगा या पार्टी समर्थक और यह बात पार्टी के ही शीर्ष नेताओं के मुख से सुनी जाती है और शायद यही कारण है कि भाजपा के संगठन चुनाव नहीं हो पा रहे। और फिर भाजपा सदा यह कहती रही है कि कांग्रेस में आंतरिक प्रजातंत्र नहीं है, उनके पद राहुल और सोनिया के कहने से सौंपे जाते हैं और वही बात अब भाजपा में भी प्रत्यक्ष रूप में नजर आ रही है कि यहां भी पद प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार ही दिए जाते हैं।

भाजपा और कांग्रेस में एक अंतर विशेष देखने को आता है कि भाजपा की नीति यह रही है कि वह किसी भी क्षेत्रीय नेता को पनपने नहीं देती और यही कारण है कि जिस प्रकार कांग्रेस में इस बुरे वक्त में भी क्षेत्रीय नेता अपना जनाधार बनाए हुए हैं, वैसे भाजपा में कोई भी ऐसे विशेष जनाधार वाला नेता नजर आता नहीं और शायद यही कारण है कि भाजपा हाइकमान किसी हरियाणा के भाजपाई नेता पर आश्वस्त नहीं हो पा रहा है कि वह बिखरी हुई भाजपा को एकत्र कर जनता में अपने घटते जनाधार को रोक कर बढ़ाने की ओर कार्य कर पाएगा।

दोनों पार्टियों की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पार्टियां जनता से सरोकार रखने की बजाय अपने ही संगठन को एक करने में ध्यान लगाए हुए हैं। कांग्रेस का तो सोचना यह है कि भाजपा से रुष्ट होकर जनता के पास कांग्रेस के पास आने के अलावा कोई रास्ता बचेगा नहीं, जबकि भाजपा का यह सोचना है कि प्रदेश की जनता के साथ चाहे कुछ भी कर लो, प्रदेश की जनता राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक और कट्टर हिंदूवाद के ऊपर भाजपा को छोडक़र कहीं जा ही नहीं सकती। ऐसी स्थितियां प्रदेश के लिए सुखद तो नहीं कही जा सकती।

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