अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुरुग्राम इकाई ने किया आयोजन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुरुग्राम इकाई द्वारा ‘गीता जयंती’ के उपलक्ष्य में विचार एवं काव्य गोष्ठी गूगल मीट के आभासी मंच पर राजकीय महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य तथा अनेक भाषाओं के विद्वान डॉ. रघुनाथ ऐरी की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसका कुशल संचालन गुरुग्राम इकाई की महामंत्री मोनिका शर्मा द्वारा किया गया| इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री इंदिरा मोहन एवं मुख्य वक्ता के रूप में द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय, गुरुग्राम, की संस्कृत विषय की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी पांडेय ने सहभागिता की। इस गोष्ठी में गुरुग्राम के अनेक साहित्यकारों व कवियों ने भाग लिया |
कार्यक्रम का आरम्भ संस्कृति गौड़ द्वारा सरस्वती वंदना ‘मुझको नवल उत्थान दो, माँ सरस्वती वरदान दो’ के मधुर गान से हुआ | स्वागत वक्तव्य में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, के प्रांतीय महामंत्री डॉ. योगेश वासिष्ठ ने सभी वक्ताओं का सविस्तार परिचय देते हुए सभी का स्वागत किया| दिनकर की काव्य पंक्तियों “क्षत-विक्षत है भरत-भूमि का अंग-अंगवाणों से” का वाचन करते हुए उन्होंने मार्ग शुक्ला एकादशी को ‘गीता जयंती’ के रूप में मनाने का कारण बताते हुए कार्यक्रम का आरम्भिक वक्तव्य दिया |
. मीनाक्षी पांडेय ने ‘त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः’ के मंगलाचरण से अपने वक्तव्य का आरम्भ करते हुए भगवद्गीता को सभी उपनिषदों का सार बताते हुए गीता की गहनता का सार बिन्दुरूप में प्रस्तुत किया| इस शरीर को ही कुरुक्षेत्र बताते हुए सारे संघर्षों की युद्धस्थली बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य की सारी शंकाओं का समाधान गीता में दिया गया है|
वरिष्ठ कवयित्री इंदिरा मोहन ने आज के सन्दर्भ में भगवद्गीता की प्रासंगिकता बताते हुए इस विडम्बना पर दुःख व्यक्त किया कि आज गीता मात्र शब्द बनकर रह गई है, जबकि गीता में मानव जीवन की हर समस्या का समाधान उपस्थित है| वह भारतीय साहित्य की मणि है। सत्य सनातन का उद्घोष तथा भक्ति, ज्ञान, कर्म व उपासना का संगम है। मैं और मेरा के मोहजाल से निकलने का एकमात्र मार्ग गीता के अध्ययन से निकलता है| उन्होंने आज की पीढ़ी को गीता के ज्ञान से परिचित करवाने की आवश्यकता पर बल दिया|
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. रघुनाथ ऐरी ने गुरुवाणी को गीता के श्लोकों का सरलीकृत रूप बताते हुए अपना वक्तव्य दिया| ज्ञान की अपेक्षा भक्ति को कल्याणकारी व मोक्ष प्राप्ति का सरल उपाय बताते हुए उन्होंने यज्ञ को श्रेष्ठ कर्म बताया व अपने कर्तव्यों को करने के लिए प्रेरित किया| भगवद्गीता के श्लोकों का सरल हिंदी काव्य रूपांतरण प्रस्तुत कर विषय को उन्होंने सुग्राह्य बना दिया|
चुनौतियों में हमसे कुछ भूल न हो जाए, इसके लिए हम गीता की शरण में जाएँ – गोष्ठी की इस मूल आत्मा पर अपना वक्तव्य रखते हुए ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने सभी वक्ताओं तथा रचनाकारों के वक्तव्यों तथा प्रस्तुतियों पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी करते हुए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया|
इस प्रकार भगवद्गीता के ज्ञानालोक में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित इस विचार एवं काव्य गोष्ठी में डॉ. मंजुलता रेढू, हरेंद्र यादव, विदु कालड़ा, अलका गुलाटी सहित अनेक रचनाकारों ने भाग लिया व आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।