कमलेश भारतीय

छब्बीस जनवरी एक इम्तिहान है किसान आंदोलन और सरकार के बीच इम्तिहान जारी है । बातचीत होती है लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता । इसलिए शायरी में पूछ रहा हूं

तुम ही कहो कि ये
अंदाजे गुफ्तगू क्या है ,,,,
न तुम समझे , न हम समझे ,,
दिल की बात ;,,,,

जब कुछ समझना नहीं , कुछ कदम आगे पीछे होना नहीं तो फिर बातचीत का यह पाखंड क्यों ? जब किसान यह बात हर बार स्पष्ट कर रहा है कि बिना कानून रद्द करवाये , लौटने को तैयार नहीं तो बातचीत कैसी ? होल्ड करने की बात दोहरा दी जाती है । अगर ये कृषि कानून साल दो साल किसी काम के नहीं तो बाद में किस काम आयेंगे साहब ? सोचो तो जरा ।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सही कह रहे हैं कि सरकार किसानों की मांग मानने की बजाय इस कोशिश में है कि आंदोलन खत्म करवाने की ओर बढ़ा जाये पर किसान संघर्ष समिति इस बात को बखूबी समझ रही है । इसीलिए जैसे जैसे छब्बीस जनवरी निकट आती जा रही है , वैसे चालाकियां बढ़ती जा रही हैं । किसान अपनी ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में जुटे हैं तो सरकार इस आंदोलन को टालने के चक्कर में है ।

गणतंत्र ही सच्ची परीक्षा का समय है । यह गणतंत्र है , जनतंत्र है , तानाशाही नहीं । निरंकुशता नहीं चलेगी । साहब । समय रहते इस बात को हल कर दीजिए नहीं तो दिल्ली में किसान व पुलिस के बीच टकराव की नौबत आने की आशंका है । इससे हंगामा होगा । किसानों ने सरकारी प्रस्ताव ठुकरा दिया है और एमएसपी पर भी गारंटी मांगी है , इसे मौखिक आदेश मानने से इंकार कर दिया है । झांकिया दोनों तरफ निकाली जायेंगी ।

सरकार स्किल इंडिया और कौशल विकास की झांकिया दिखायेगी तो किसान अपनी दुख दर्द की झांकियों का प्रदर्शन करेंगे । अब आप समझ सकते हो कि बात कहां तक पहुंच गयी है साहब । कुछ मन की बात से बाहर आइए और जन की बात सुनिये और समझिये । यह राजहठ किसी काम नहीं आएगा ।
यह कहानी है
दीये की और तूफान की,,,

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