ऑनलाइन मनी गेम की सर्विस देना,संचालन करना,प्रचार करना गैरकानूनी होगा-सरकार का चलेगा चाबुक-3 साल की सजा,एक करोड़ जुर्माना
कानून अपनी जगह ज़रूरी है,लेकिन,समाज परिवार माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखें,शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों को सही दिशा दिखाएँ
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया-वैश्विक स्तरपरभारत आज युवा देश कहलाता है। यहाँ की आधी से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है और यही युवा शक्ति “नवभारत का भविष्य” कही जाती है। लेकिन दुखद यह है कि यही युवा धीरे-धीरे ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया में फंसते चले जा रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर यह लत उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक संकटों में धकेल रही है। इसी गंभीर पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने “प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025” संसद में प्रस्तुत कर पारित किया है, जो देश के डिजिटल और सामाजिक भविष्य के लिए एक ऐतिहासिक कदम है।
ऑनलाइन गेमिंग का बढ़ता खतरा
मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट की आसान उपलब्धता ने ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को भारत में विस्फोटक रूप से बढ़ाया है। आज लगभग 50 करोड़ युवा किसी न किसी रूप में ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े हुए हैं। PUBG, Free Fire, BGMI, Call of Duty और फैंटेसी स्पोर्ट्स जैसे खेल युवाओं में इतनी लोकप्रियता पा चुके हैं कि लाखों छात्र पढ़ाई, खेल-कूद और सामाजिक जीवन से कटकर वर्चुअल दुनिया में खो गए हैं।
सरकार की चिंता और कानून की ज़रूरत
20 अगस्त 2025 को संसद के बाहर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग ने करोड़ों युवाओं को अंधकार में डाल दिया है और समाज से बड़े पैमाने पर मिले फीडबैक के बाद इसे नियंत्रित करना अनिवार्य हो गया।
- ऑनलाइन गेमिंग को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:
- ई-स्पोर्ट्स
- ऑनलाइन सोशल गेमिंग
- ऑनलाइन मनी गेमिंग
इस बिल के माध्यम से पहले दो वर्गों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जबकि ऑनलाइन मनी गेमिंग पर कड़ा अंकुश लगाया जाएगा।
डब्ल्यूएचओ का दृष्टिकोण और स्वास्थ्य संकट
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2019 में ही “गेमिंग डिसऑर्डर” को मानसिक स्वास्थ्य की श्रेणी में शामिल कर दिया था।
- अत्यधिक गेमिंग से पढ़ाई-लिखाई, रोजगार, नींद, खान-पान और पारिवारिक जीवन प्रभावित होता है।
- भारत में कई घटनाओं में बच्चे तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसी चरम सीमाओं तक पहुँच गए।
- माता-पिता ने शिकायत की कि बच्चे मोबाइल स्क्रीन से अलग नहीं हो पा रहे, नींद और आँखों की रोशनी प्रभावित हो रही है, और पैसों का अत्यधिक व्यय हो रहा है।
बिल की आवश्यकता और मुख्य कारण
- युवा पीढ़ी पर खतरा – 50 करोड़ युवाओं का लती होना।
- आर्थिक शोषण – इन-ऐप परचेज़ और कैश रिवार्ड्स के कारण परिवार कर्ज़ में डूबे।
- अपराध की घटनाएँ – पैसों के लिए चोरी और अपराध की ओर झुकाव।
- स्वास्थ्य संकट – मानसिक तनाव, डिप्रेशन और अन्य रोग।
- सामाजिक असंतुलन – वास्तविक जीवन से कटाव और वर्चुअल में गुम होना।
- फीडबैक का दबाव – समाज और अभिभावकों का व्यापक समर्थन।
प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 की मुख्य बातें…
- गेम्स की श्रेणीकरण – स्किल-बेस्ड और चांस-बेस्ड गेम्स की स्पष्ट परिभाषा।
- लाइसेंस प्रणाली – बिना सरकारी अनुमति कोई भी कंपनी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म नहीं चला पाएगी।
- आयु सीमा – 18 वर्ष से कम आयु वालों पर कड़े प्रतिबंध।
- समय सीमा – गेम खेलने की अधिकतम अवधि तय की जाएगी।
- वित्तीय नियंत्रण – इन-ऐप परचेज़ और निवेश पर सख्त नियम।
ऑनलाइन मनी गेमिंग पर कठोर प्रावधान
- ऑनलाइन मनी गेम की सर्विस देना, चलाना और प्रचार करना गैरकानूनी होगा।
- उल्लंघन करने पर 3 साल तक की जेल और 1 करोड़ रुपए जुर्माना।
- विज्ञापन करने पर 2 साल तक की जेल और 50 लाख रुपए जुर्माना।
- खिलाड़ियों पर कोई दंड नहीं, बल्कि सेवा देने और विज्ञापन करने वालों पर कार्रवाई।
- एक नई अथॉरिटी बनाई जाएगी, जो तय करेगी कि कौन सा गेम मनी गेमिंग है और कौन सा ई-स्पोर्ट्स।
सरकार का संदेश
सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह गेमिंग को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं करना चाहती, बल्कि उसे नियंत्रित करना चाहती है ताकि ई-स्पोर्ट्स और सोशल गेमिंग को बढ़ावा मिले, लेकिन मनी गेमिंग से समाज को बचाया जा सके।
समाज और परिवार की भूमिका
कानून अपने आप में ज़रूरी है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है समाज और परिवार की जागरूकता।
- माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखना चाहिए।
- शिक्षकों को विद्यार्थियों को सही दिशा दिखानी चाहिए।
- युवाओं को समझना होगा कि जीवन केवल वर्चुअल गेम्स तक सीमित नहीं है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरी विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि “प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025” न केवल एक कानून है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है। यह युवाओं को अंधकार से बाहर निकालने और स्वस्थ समाज की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह दिखाता है कि भारत केवल डिजिटल शक्ति बनने की दिशा में नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार डिजिटल समाज बनाने की दिशा में भी अग्रसर है।
संकलनकर्ता लेखक-कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र