●जेल क्यों गए थे ओमप्रकाश चौटाला
●जेल जाने का पूरा घटनाक्रम
●इनेलो क्यों हुई दोफाड़
●देवीलाल की राजनीतिक विरासत और चौटाला
●कैसे और क्यों बनी इनेलो
●चौटाला के रिहा होने का इनेलो पर असर
अमित नेहरा


23 जून 2021 की सुबह खबर आई कि जूनियर बेसिक ट्रेनिंग (जेबीटी) भर्ती घोटाले में सजायाफ्ता हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल में सजा पूरी हो गई है। बताया गया कि जेल प्रशासन ने इस संबंध में चौटाला के वकील को सूचना दे दी है कागजी कार्रवाई पूरी होते ही रिहाई के आधिकारिक आदेश जारी हो जाएंगे। ओमप्रकाश चौटाला, उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और 3 अन्य को 22 जनवरी 2013 को सीबीआई की विशेष अदालत ने 3206 शिक्षकों की अवैध तरीके से भर्ती के मामले में 10 साल की सजा सुनाई थी। वे तभी से सजायाफ्ता थे।
गौरतलब है कि 86 साल के ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी उम्र और दिव्यांगता का हवाला देकर जेल से रिहा किए जाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि वह 2013 में ही 60 फीसदी दिव्यांग हो गए थे और पेसमेकर लगाए जाने के बाद 70 फीसदी से अधिक दिव्यांग हो चुके हैं। याचिका में केंद्र सरकार की जुलाई 2018 की अधिसूचना का हवाला दिया गया था, जिसमें 60 साल से अधिक उम्र, सात साल की सजा और 70 प्रतिशत दिव्यांगता की बात कही गई थी। इसके चलते उनको जेल से रिहा किया गया है। हालांकि ओमप्रकाश चौटाला कोविड महामारी के चलते जेल से बाहर ही हैं।
ओमप्रकाश चौटाला के जेल जाने का पूरा मामला इस प्रकार है

●नवंबर 1999 में 3206 शिक्षक पदों का विज्ञापन जारी हुआ।
●अप्रैल 2000 में रजनी शेखर सिब्बल को प्राथमिक शिक्षा निदेशक नियुक्त किया गया।
●जुलाई 2000 में रजनी शेखर को पद से हटाकर संजीव कुमार को निदेशक बनाया गया।
●दिसंबर 2000 में भर्ती प्रक्रिया पूरी हुई और 18 जिलों में जेबीटी शिक्षक नियुक्त किए गए।
●जून 2003 में संजीव कुमार इस मामले में धांधली होने का हवाला देकर मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए।
●नवंबर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जांच करने के आदेश दिए।
●मई 2004 में सीबीआई ने जांच शुरू की।
●फरवरी 2005 में संजीव कुमार से पूछताछ हुई।
●जून 2008 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल।
●जुलाई 2011 में सभी आरोपियो के खिलाफ चार्ज फ्रेम कर दिए गए।
●दिसंबर 2012 में केस की सुनवाई पूरी हुई।
●16 जनवरी 2013 को ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े पुत्र अजय चौटाला समेत 55 दोषी करार दिए गए।
●22 जनवरी 2013 को सभी आरोपियों को 10-10 साल की सजा सुना दी गई। खास बात यह रही कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाले संजीव कुमार को भी इस मामले में दोषी पाया गया और उन्हें भी 10 साल की सजा सुनाई गई।
●7 फरवरी, 2013 को ओमप्रकाश चौटाला ने फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की।
●11 जुलाई, 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
●5 मार्च, 2015 को दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। लेकिन उसने ओमप्रकाश चौटाला, अजय चौटाला व तीन अन्य की 10-10 वर्ष की जेल ज्यों की त्यों रखी और बाकी अन्य 50 दोषियों की सजा में बदलाव करके उन्हें 10 की जगह दो वर्ष में बदल दिया।
●15 मई 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान राहत देने से मना किया।
●3 अगस्त 2015 को ओमप्रकाश चौटाला व अन्य की अर्जी सुप्रीम कोर्ट से खारिज कर दी।
इसके बाद ओमप्रकाश चौटाला के सामने सभी कानूनी विकल्प खत्म हो गए और निश्चित हो गया कि उनको जेल की सजा काटनी ही होगी। चौटाला के जेल में जाने के बाद हरियाणा की राजनीति में भारी उथल-पुथल हुए, पहली बार प्रदेश में बीजेपी ने अकेले अपने बहुमत से सरकार बनाई। इसके अलावा 2018 में इनेलो पार्टी ही दोफाड़ हो गई। ओमप्रकाश चौटाला के पोते (बड़े बेटे अजय चौटाला के पुत्र) दुष्यंत चौटाला ने जींद में 9 दिसंबर 2018 को अपनी नई पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाने का एलान कर दिया। इनेलो के ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता इनेलो से जेजेपी में चले गए। कुछ ने बीजेपी जॉइन कर ली, इनेलो के लंबे समय से प्रदेशाध्यक्ष चले आ रहे अशोक अरोड़ा जैसे थोड़े-बहुत नेता कांग्रेस में भी शामिल हो गए। बाकी बचे नेता और कार्यकर्ता निराश होकर घर बैठ गए। इस समय अगर इनेलो की बात की जाये तो वर्तमान में पार्टी का न तो कोई सांसद है और न कोई विधायक। यह पार्टी का अभी तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा है। हालांकि 2019 में ओमप्रकाश चौटाला के छोटे पुत्र और इनेलो के सर्वेसर्वा अभय चौटाला ऐलनाबाद से एकमात्र विधायक बने थे मगर उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में 27 जनवरी 2021 को विधानसभा से इस्तीफा दे दिया।
अब सवाल यह है कि ओमप्रकाश चौटाला की जेल से रिहाई इनेलो और हरियाणा की राजनीति पर क्या असर डालेगी। इसके लिए हमें ओमप्रकाश चौटाला के राजनैतिक कैरियर पर ध्यान देना होगा।
पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला 1970, 1990, 1993, 1996, 2000, 2005 और 2009 में सात बार हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। वे 1987 से 1990 तक राज्यसभा के सांसद भी भी रह चुके हैं। वे 2 दिसंबर 1989 को वे पहली बार सीएम बने मगर महम कांड के चलते 22 मई 1990 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा वे महज 172 दिन ही सीएम रहे। फिर 12 जुलाई 1990 को वे फिर सीएम बन गए मगर पाँच दिन बाद ही यानी 17 जुलाई 1990 को उन्होंने फिर इस्तीफा दे दिया। वजह यह थी कि उनके सीएम बनते ही संसद में बवाल खड़ा हो गया। काफी प्रदर्शन हुए, राजीव गांधी ने महम कांड को उठा दिया तो चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। ओमप्रकाश चौटाला 22 मार्च 1991 को फिर से सीएम बन गए, फिर विरोध हुआ। केवल 16 दिन के अंदर 6 अप्रैल 1991 को चौटाला को फिर से इस्तीफा देना पड़ा।
मगर 24 जुलाई 1999 को हरियाणा की राजनीति ने ऐसा पलटा खाया कि ओमप्रकाश चौटाला चौथी बार मुख्यमंत्री बने। उनके इस कार्यकाल के दौरान वर्ष 2000 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और उनकी पार्टी ने बहुमत से सरकार बना ली वे 2 मार्च 2000 को पुनः मुख्यमंत्री बन गए और 4 मार्च 2005 तक इस पद पर बने रहे। यानी वे कुल पाँच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
ओमप्रकाश चौटाला का पारिवारिक इतिहास
ओमप्रकाश चौटाला के पिता देवीलाल के परदादा का नाम तेजाराम था। वो उन्नीसवीं सदी में राजस्थान से हरियाणा के सिरसा ज़िले में आकर बस गए थे। तेजाराम के तीन बेटे थे देवाराम, आशाराम और हुकमराम। आशाराम के दो बेटे हुए जिनके नाम थे थारूराम और लेखराम। इन्ही लेखराम के दो बेटे थे, देवीलाल और साहब राम। देवीलाल को पांच संतानें हुईं जिनमें चार बेटे प्रताप सिंह, ओमप्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, जगदीश चंदर और एक बेटी शांति देवी थीं।
देवीलाल के परिवार में पहले राजनेता उनके भाई साहबराम थे। वे 1938 में हिसार से कांग्रेस के विधायक चुने गए थे। जबकि देवीलाल का राजनीतिक जीवन 1952 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनने से शुरू हुआ।
देवीलाल का एक बेटा प्रताप सिंह 1960 के दशक में विधायक चुना गया जबकि रणजीत सिंह सांसद बने और ओमप्रकाश चौटाला पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। जगदीश चंदर की मौत युवावस्था में राजनीति में प्रवेश करने से पहले ही हो गई थी। ओमप्रकाश चौटाला के दो बेटे अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला हैं। अजय चौटाला के दो बेटे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला हैं जबकि अभय चौटाला के पुत्रों के नाम कर्ण चौटाला और अर्जुन चौटाला हैं।
ओमप्रकाश चौटाला कैसे बने देवीलाल के राजनीतिक उत्तराधिकारी
भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय देवीलाल बेशक बहुत बड़े जननेता थे लेकिन उन्होंने खुद की पार्टी बनाकर राजनीति करने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया न कभी उन्होंने अपने समर्थकों का कैडर बनाया। देवीलाल 1958 में पंजाब कांग्रेस के प्रधान चुने गए थे लेकिन कुछ समय बाद उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। उन्हें 1962 में कांग्रेस से निष्काषित कर दिया गया। इसी वर्ष उन्होंने प्रोग्रेसिव इंडिपेंडेंट पार्टी बनाई, 22 विधायकों की इस पार्टी को पंजाब विधानसभा में विपक्षी दल की मान्यता मिली। देवीलाल असेंबली में पार्टी के नेता बने। इसके बाद 1968 में वे फिर कांग्रेस में आ गए लेकिन 17 जनवरी 1971 को उन्होंने हमेशा के लिए कांग्रेस छोड़ दी।
कांग्रेस छोड़ने के बाद देवीलाल, चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांतिदल (बीकेडी) में शामिल हो गए। राजनीतिक हालातों के चलते 1974 में भारतीय क्रांतिदल और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने विलय करके भारतीय लोकदल का गठन किया। भारतीय लोकदल का विलय 1977 में जनता पार्टी में हो गया साथ ही देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए। चौधरी चरण सिंह ने 1979 में जनता पार्टी (सेक्युलर) का गठन किया तो देवीलाल उसमें शामिल हो गए। इसके बाद 1984 में चरण सिंह ने जब दलित मजदूर किसान पार्टी (दमकिपा) बनाई तो देवीलाल भी उसमें शामिल हो गए। कुछ समय बाद ही दमकिपा टूट गई और फिर लोकदल बनाई गई और देवीलाल लोकदली बन गए। वर्ष 1987 में लोकदल में फिर विभाजन हो गया और लोकदल (अजित) व लोकदल (बहुगुणा) दो पार्टियां बन गईं। इस बार देवीलाल, लोकदल (बहुगुणा) के प्रदेश अध्यक्ष बने। इसी साल वे दोबारा सीएम बने। आखिरकार अक्टूबर 1988 में लोकदल (बहुगुणा) का भी नए एक दल जनता दल में विलय हो गया और देवीलाल जनता दल में आ गए। जल्द ही चंद्रशेखर ने वीपी सिंह से अलग होकर जनता दल (एस) बनाया तो देवीलाल उसमें शामिल हो गए। इसके बाद चंद्रशेखर ने इसका नाम बदलकर समाजवादी जनता पार्टी कर लिया तो देवीलाल इसी पार्टी में रहे।
पूरे विवरण से पता चलता है कि देवीलाल ने अपनी खुद की कोई क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पार्टी बनाने के प्रयास नहीं किये बल्कि वे अन्य नेताओं की पार्टियों में शामिल होते रहे या छोड़ते रहे। न कोई अपना झंडा बनाया और ऐसे में खुद की पार्टी के चुनाव चिन्ह का तो सवाल ही नहीं उठता।
अब बात आती है ओमप्रकाश चौटाला के राजनीतिक सफर की। वर्ष 1987 में जब देवीलाल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो सियासी गलियारों में उनके बेटे रणजीत सिंह (जो वर्तमान में हरियाणा में ऊर्जा और जेल मंत्री हैं) को ही उनका उत्तराधिकारी माना जाता था। लेकिन ओमप्रकाश चौटाला ने देवीलाल की राजनीतिक विरासत पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया और जब देवीलाल 1989 में उपप्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ओमप्रकाश चौटाला को ही अपनी जगह हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि मुख्यमंत्री पद की पहली तीन पारियों में ओमप्रकाश चौटाला को बुरी तरह मात खानी पड़ी लेकिन प्रदेश को उनका असली राजनीतिक कौशल देखना बाकी था।
चौटाला ने जब अपने आपको देवीलाल के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित कर लिया तो उन्होंने संगठन मजबूत करने पर ध्यान दिया।
इसके चलते 1998 में ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी खुद की पार्टी बनाई, नाम रखा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो)। इस पार्टी के झंडे का रंग हरा था और निशान था ऐनक (चश्मा)। ओमप्रकाश चौटाला अब पार्टी, झंडे और चुनाव चिन्ह के मामले में आत्मनिर्भर हो गए। उन्होंने बेहद मेहनत करके देवीलाल के सभी समर्थकों को चैनलाइज करके कैडर में तब्दील कर दिया। सत्ता में पहुँचने के बाद देवीलाल को अपना संगठन न होने से जो मात खानी पड़ती थी वह माहौल बदल चुका था। ओमप्रकाश चौटाला के सामने परिवार के बाकी सदस्यों की चुनौतियां भी खत्म हो गई थीं।
इनेलो बनने का असर जल्द ही सामने आ गया। वर्ष 1996 से बंसीलाल के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी की संयुक्त सरकार का 1999 में ही पतन हो गया और मुख्यमंत्री बने ओमप्रकाश चौटाला। अगले ही साल 2000 में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए हालांकि ये चुनाव इनेलो और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था लेकिन ओमप्रकाश चौटाला के करिश्माई नेतृत्व ने इनेलो को अकेले ही बहुमत दिलवा दिया और 2005 तक चौटाला ने अपने पिता देवीलाल के उलट, बिना किसी रुकावट के प्रदेश पर शासन किया। हालांकि 2005 के चुनाव में इनेलो पार्टी की केवल 9 सीटें ही आईं लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इनेलो के वोट परसेंटेज में कोई खास गिरावट नहीं आई। अगले चुनाव 2009 में इनेलो को 32 (इनेलो 31+अकाली दल1) सीटें आईं साथ ही इनेलो का वोट बैंक भी बढ़ गया।
चौटाला 2014 के विधानसभा चुनाव में कोई करिश्मा कर पाते उससे पहले ही उनको 2013 में 10 साल की जेल हो गई। आज वो जब आधिकारिक रूप से जेल से निकले हैं तो ऐसे में इनेलो के कार्यकर्ताओं को लगता है कि वे अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते मृतप्रायः पार्टी में जान फूँक देंगे। इनेलो के कार्यकर्ताओं का सोचना अपनी जगह ठीक है क्योंकि ओमप्रकाश चौटाला एक बेहतरीन रणनीतिकार हैं, बहुत अच्छे धाराप्रवाह वक्ता भी हैं, उनका विजन भी एकदम साफ है लेकिन एक बहुत बड़ी बाधा है, वो है उनकी उम्र। कामना है कि भगवान उनको लम्बी उम्र व अच्छी सेहत दे मगर चिकित्सीय आधार पर कहा जा सकता है कि मानवीय शरीर की भी एक सीमा होती है ऐसे में 86 साल की उम्र काफी हो जाती है। हालांकि चौटाला ने दिव्यांगता को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया लेकिन फिर भी इस उम्र में अपने आपको मेंटेन करना भी एक बड़ी चुनौती होगा। नियमों के अनुसार ओमप्रकाश चौटाला अगले 6 वर्षों तक चुनाव नहीं लड़ सकते यानी जब उनको चुनाव लड़ने का अवसर प्राप्त होगा तब तक उनकी उम्र 92 साल हो चुकी होगी। इतना तो तय है कि उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला को उनके दिशानिर्देशों और अनुभव का निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा। लेकिन क्या इस अनुभव और राजनीतिक सलाह से अभय मृतप्रायः इनेलो में फिर से जान फूँक पाएँगे ये देखना खासा दिलचस्प रहेगा।
चलते-चलते
बेशक ओमप्रकाश चौटाला जेबीटी भर्ती मामले में सजा पूरी कर चुके हैं परन्तु अभी तो उनके खिलाफ अदालत में आय से ज्यादा सम्पत्ति अर्जित करने का मुकदमा भी चल रहा है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)