Tag: प्रियंका सौरभ …….. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस

“टेकऑफ से पहले अंत: 242 ज़िंदगियाँ और एक सवालों से भरा आसमान”

“ड्रीमलाइनर या डेथलाइनर?: जब उड़ान ही आख़िरी सफर बन गई” “हादसे की ऊँचाई से गिरते सवाल: अहमदाबाद की एक दोपहर” -प्रियंका सौरभ अहमदाबाद की सुबह सामान्य थी। लोग अपनी-अपनी दिनचर्या…

स्त्री जब सांचों को तोड़ती है, समाज चीख पड़ता है — “क्या हो गया है इन औरतों को?”

“जब कोई महिला अपराध में शामिल होती है, तो समाज उसकी परवरिश, चरित्र और कोमलता पर सवाल उठाता है, जबकि पुरुष अपराधियों को अक्सर सहानुभूति या ‘दबंगई’ का जामा पहनाया…

मिलावट: मुंह में नहीं, ज़मीर में घुला ज़हर

मिलावट अब केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं रही, यह हमारे सोच, संबंध, और व्यवस्था तक में घुल चुकी है। मूँगफली में पत्थर हो या दूध में डिटर्जेंट, यह मुनाफाखोरी की…

इतिहास की परछाइयों में स्त्री: संस्कृति और सभ्यता का एक नया पाठ

राखीगढ़ी: भारत की स्त्री-केंद्रित सभ्यता की झलक हरियाणा स्थित राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है, जहाँ से मिले 4600 साल पुराने महिला कंकाल, शंख की चूड़ियाँ और ताम्र…

“पिछले साल के पौधे भी देखे क्या?”

हर वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर हम पौधे लगाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन एक प्रश्न अनदेखा रह जाता है — क्या पिछले साल लगाए पौधे अभी भी जीवित हैं?…

दुल्हन फर्जी, रिश्ता असली बेवकूफी का! ……. फर्जी रिश्तों का व्यापार: शादी नहीं, ठगी का धंधा

भारत में शादियों को लेकर एक सांस्कृतिक उत्सव, पारिवारिक प्रतिष्ठा और भावनात्मक जुड़ाव की भावना जुड़ी होती है। लेकिन जब इस पवित्र रिश्ते को ठगों का व्यवसाय बना दिया जाए,…

बेटियां: विरासत नहीं, संवेदना का सच …….. “पितृसत्ता की विरासत में बेटियों की अनदेखी”

> “लिपट के रोये हैं बेटियों से अपनी हालत पे, जो कहते थे विरासत के लिये बेटा जरूरी है…” यह शेर एक टीस है, एक कराह है उस व्यवस्था की,…

कलम की बेटियाँ: आवाज़ें जो कुचली नहीं जा सकतीं

(पत्रकारिता दिवस पर महिला पत्रकारों के संघर्ष और अनदेखी पर आधारित विशेष लेख) -प्रियंका सौरभ जब कोई स्त्री कलम उठाती है, तो वह केवल शब्द नहीं रचती—वह एक युग को…

“कम उम्र का गुस्सा, समाज का आईना: जब बच्चे चाकू उठाने लगे”

स्कूली छात्रों द्वारा चाकू से हमले की घटनाएं बता रही हैं कि बच्चों की मासूमियत में अब गुस्सा, हिंसा और असहायता छिपी है। सोशल मीडिया, संवादहीन पालन-पोषण, और ग्लैमराइज हिंसा…

महाराणा प्रताप: स्वाभिमान का प्रतीक और स्वतंत्रता का अमर सेनानी

महाराणा प्रताप केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि भारतीय आत्मगौरव के प्रतीक थे। जब सारे राजपूत मुग़ल दरबार में झुक गए, तब प्रताप ने जंगल में रहना स्वीकार किया लेकिन दासता…