Tag: प्रियंका सौरभ …….. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस

“बेटियाँ थमीं, रास्ते नहीं थे: शिक्षा से दूर होती उम्मीदें और हमारी चुप्पी”

“बेटियाँ क्यों छोड़ रही हैं स्कूल? सवाल सड़कों, शौचालयों और सोच का है” “39% लड़कियाँ स्कूल से बाहर: किसकी जिम्मेदारी?” “‘बेटी पढ़ाओ’ का सच: किताबों से पहले रास्ते चाहिए” राष्ट्रीय…

गिरती छतें, गिरती ज़मीर: झालावाड़ हादसा और हमारी व्यवस्था की नींव में छुपी मौत

प्रियंका सौरभ राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की मौत हो गई। इसे कुछ लोग “हादसा” कहेंगे, लेकिन असल में यह एक व्यवस्थागत…

युवा देश, वृद्ध नेतृत्व : क्या लोकतंत्र में उम्र जनादेश से बड़ी है?

प्रियंका सौरभ भारत आज संसार का सबसे युवा देश है। हमारी जनसंख्या का लगभग पैंसठ प्रतिशत भाग पैंतीस वर्ष से कम आयु का है। यही युवा भारत की शक्ति है,…

(जब शिक्षा डर बन जाए) : डिग्रियों की दौड़ में दम तोड़ते सपने, संभावनाओं की कब्रगाह बनते संस्थान !

संस्थाएं डिग्रियां नहीं, ज़िंदगियां दें — तभी शिक्षा का अर्थ है भारत में शिक्षा संस्थान अब केवल डिग्रियों की फैक्ट्री बनते जा रहे हैं, जहां बच्चों की संभावनाएं और संवेदनाएं…

“डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल : निजी बैंकों का नया लोकतंत्र”

– प्रियंका सौरभ “नमस्ते महोदय/महोदया, क्या आप व्यक्तिगत ऋण लेना चाहेंगे?” कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय…

बदन की नहीं, बुद्धि की बनाओ पहचान बहनों: अश्लीलता की रील संस्कृति पर एक सवाल

“रील में न खोओ बहना, सोच को आवाज़ दो, जो तुम हो भीतर से, वही असली साज़ दो। बदन की नहीं, बुद्धि की बनाओ पहचान, यही है स्त्री की सबसे…

कोख में कत्ल होती बेटियाँ: हरियाणा की घुटती संवेदना

“ये आँकड़े नहीं, हर चीखती कोख की अंतिम पुकार हैं।” हरियाणा में केवल तीन महीनों में एक हज़ार एक सौ चौवन गर्भपात। कारण – कन्या भ्रूण हत्या की आशंका। छप्पन…

कांवड़ या हुड़दंग? आस्था की राह में अनुशासन की दरकार

कांवड़ यात्रा का स्वरूप अब आस्था से हटकर प्रदर्शन और उन्माद की ओर बढ़ गया है। तेज़ डीजे, बाइक स्टंट, ट्रैफिक जाम और हिंसा ने इसे बदनाम कर दिया है।…

“कृत्रिम बुद्धिमत्ता: नवाचार की उड़ान या बौद्धिक चोरी का यंत्र?”

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आज नई रचनात्मकता का माध्यम बन चुकी है, पर यह बहस का विषय है कि क्या यह नवाचार, रचनाकारों की मेहनत की चोरी पर टिका है? अमेरिका…

रील की दुनिया में रियल ज़िंदगी का विघटन, दिखावे की दौड़ में थकती ज़िंदगी ……..

सोशल मीडिया: नया नशा, टूटते रिश्ते और बढ़ता मानसिक तनाव -प्रियंका सौरभ आज का समाज एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ है जहाँ एक तरफ़ तकनीकी प्रगति ने जीवन…