Tag: प्रियंका सौरभ …….. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस

संयुक्त परिवार: जीवन की सजीव पाठशाला

संयुक्त परिवार केवल साथ रहने की व्यवस्था नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की एक जीवंत पाठशाला है। यहाँ बच्चे रिश्तों के बीच रहकर अनुशासन, सहनशीलता, त्याग और सहयोग जैसे गुणों को…

संघर्ष से शांति तक का सफर …… “युद्ध से युद्धविराम तक: भारत-पाक रिश्तों की बदलती तस्वीर”

10 मई 2025 को, भारत और पाकिस्तान ने एक पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति व्यक्त की, जो हाल के वर्षों में सबसे गंभीर संघर्ष के बाद हुआ। 22 अप्रैल…

प्रोपेगेंडा और झूठी ख़बरों से सतर्क रहें ….. “जब खबरें बनती हैं हथियार: युद्ध, प्रोपेगेंडा और फेक न्यूज”

युद्ध के दौरान फैलाई गई झूठी खबरें न केवल सैनिकों और आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि समाज में भय और नफरत का भी प्रसार करती…

सिंदूर की सौगंध: ‘एक था पाकिस्तान’ की गूंज

“एक था पाकिस्तान” – ये केवल तीन शब्द नहीं, बल्कि इतिहास की एक गहरी दास्तां है। यह उस विभाजन का प्रतीक है, जिसने दिलों को तोड़ा और घरों को उजाड़ा।…

क्या किसी की भूख की तस्वीर लेना जरूरी है? “सोशल मीडिया युग में करुणा की कैद”

सोशल मीडिया के युग में भलाई और करुणा अब मौन संवेदनाएँ नहीं रहीं, वे कैमरे के फ्रेम में क़ैद होती जा रही हैं। आज अधिकांश मदद ‘लाइक्स’ और ‘फॉलोवर्स’ के…

“इतिहास का बोझ : कब तक हमारी पीढ़ियाँ झुकती रहेंगी?”

मुझे यह सोचकर पीड़ा होती है कि आज भी हमारे बच्चों को इतिहास के नाम पर मुग़ल शासकों की गाथाएँ पढ़ाई जाती हैं, जबकि चाणक्य, चित्रगुप्त और छत्रपति शिवाजी जैसे…

“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: “जब पत्रकारिता ज़िंदा थी…”

प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ट्रेंडिंग टैग बन गया। प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स…

“सीमा पार क़ैद एक सिपाही: गर्भवती पत्नी की पुकार और हमारी चुप्पी”

“पूर्णम को लौटाओ: एक अजन्मे बच्चे की पहली माँग” “देश चुप है, पत्नी नहीं: एक सिपाही की वापसी की जंग” बीएसएफ़ के जवान पूर्णम साहू पिछले एक सप्ताह से पाकिस्तान…

अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में अदृश्य रहीं। जाति जनगणना केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय…