क्या प्रशासन द्वारा छोड़ी हुई दुकानों की तालाबंदी उचित थी?
भारत सारथी/ कौशिक
नारनौल । न्याय के प्रहरी माने जाने वाले अधिवक्ताओं ने गत सोमवार को जिला प्रशासन व उपायुक्त मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं के प्रदर्शन ने कुछ सवाल खड़े कर दिए है। क्या अधिवक्ताओं द्वारा की गई तालाबंदी उचित थी? इसमें सबसे अजीब बात यह हो गई जिस समय अधिवक्ता प्रदर्शन कर रहे थे सरकार ने उसी वक्त या उससे पहले उपायुक्त के ट्रांसफर के आदेश जारी कर दिए थे। अब कुछ अधिवक्ता इसे प्रदर्शन के कारण हुए तबादले को अपनी जीत मान रहे है।
उनकी मांग है कि नए लिटिगेंट हाल में स्थित कैंटीन, उसमें बनी तीन दुकानें व साईकिल स्टैंड को बार एसोसिएशन के हवाले किया जाए। जिससे बार एसोसिएशन उनका ठेका छोड़ कर, उनसे होने वाली आमदनी को अपने उपयोग के लिए रख सके । इसके पीछे बार एसोसिएशन का तर्क है कि इन ठेकों से प्राप्त राजस्व को वह वकील बिरादरी के लिए उपयोग में लाएगी।
इस संबंध में बार एसोसिएशन नारनौल ने गत 5 अप्रैल को बैठक करके निर्णय लिया था कि इस बाबत उपायुक्त, जिला महेन्द्रगढ़ से बातचीत की जाए। बातचीत करने के लिए अधिवक्ताओं का प्रतिनिधि मण्डल गत 6 अप्रैल को उपायुक्त से मिला तथा उनसे इस बारे आग्रह किया। किन्तु उपायुक्त ने अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए, उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। सूत्रों के अनुसार अधिवक्ताओं के शिष्टमंडल को उपायुक्त ने बैठने को भी नहीं कहा। उन्होंने अपनी बात सामान्य आदमी की तरह खड़े-खड़े की।
उपायुक्त द्वारा कैंन्टीन, दुकानें तथा साईकिल स्टैंड बार एसोसिएशन को देने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिए जाने के बाद, इसे अपना अपमान समझ कर, गत 10 अप्रैल को फिर से बैठक बुलाई। बैठक में उपायुक्त द्वारा किए गए अपमान बाबत उनकी निंदा की। कैंन्टीन व दुकानों पर तालाबंदी का तथा पार्किंग में अधिवक्ताओं के वाहन के अलावा किसी अन्य वाहन को नहीं खड़ा होने देने का निर्णय लिया। इसके बाद अधिवक्ता उपायुक्त के विरूद्ध नारेबाजी करते हुए, न्यायालय परिसर का चक्कर लगाया। बाद में अधिवक्ताओं ने नए लिटिगेंट हाल में स्थित कैंन्टीन व दुकानों पर अपना ताला जड़ दिया। इस तालाबंदी को अनेक अधिवक्ताओं ने गलत ठहराया है।
पुराने लिटिगेंट हाल में बनी कैंन्टीन व उसमें चलाई जा रही फोटो स्टेट की दुकान व पुराने सचिवालय के गेट के पास स्थित एक दुकान का ठेका जिला बार एसोसिएशन छोड़ती है तथा उससे प्राप्त राशि को अपने उपयोग में लेती है। अधिवक्ताओं के चैंबर्स में स्थित कैंटीन का ठेका व उसमें स्थित फोटो स्टेट का ठेका भी चेंबर सोसाइटी ही छोड़ती है।
अब बार एसोसिएशन नए लिटिगेंट हाल में बनी कैंटीन व उसमें बनी 3 दुकानों के साथ साईकिल स्टैंड का भी ठेका स्वयं छोड़ कर, उससे प्राप्त राशि को भी अपने कोष में लेना चाहती है। इसी के चलते सारा विवाद है। उपायुक्त, जो लोकसेवक है वह सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व पर अपना अधिकार छोड़ कर, बार एसोसिएशन को देने में कानूनी समर्थ नहीं हैं । संभवतः इसी के चलते उपायुक्त ने वकीलों को दो टूक इन्कार कर दिया हो।
उपायुक्त कार्यालय से जुड़े एक कर्मचारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि बार एसोसिएशन के पुराने व नए लिटिगेंट हाल का बिजली का बिल प्रशासन जमा करवाता है, बिल्डिंग की मरम्मत, रंग रोगन आदि भी सरकार का लोक निर्माण विभाग करवाता है। अभी हाल ही में जिला उपायुक्त द्वारा बार एसोसिएशन के पुराने लिटिगेंट हाल का करीब 10 लाख रुपए का बकाया बिजली का बिल जमा करवाया है। नए लिटिगेंट हाल का बिजली का मीटर भी नगरायुक्त के नाम है। ऐसे में उक्त ठेकों से ही इन खर्चों की भरपाई होती है।
पुराने लिटिगेंट हाल की कैंटीन व उसमें फोटो स्टेट की दुकानों का किराया बार एसोसिएशन पहले से ले ही रही है, जबकि प्रशासन पुराने व नए लिटिगेंट हाल के बिजली के बिल व रंगरोगन मरम्मत का खर्चा भी उठा रहा है। किन्तु अधिवक्ताओं ने आरपार की लड़ाई की ठानी है। गत वर्ष के अप्रैल माह में भी वकील व प्रशासन आमने सामने थे, तब वकीलों व पुलिस में ठनी हुई थी तथा उन्होंने अपने प्रदर्शन से पुलिस अधीक्षक का स्थानान्तरण करवा कर दम लिया था। अब यदि अधिवक्ता उपायुक्त के तबादले को भी अपनी जीत मान रहे हैं तो यह आश्चर्यजनक है।