भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं ऑफीसरों बाबुओं द्वारा रिश्वत लेना ही नहीं,बल्कि स्वार्थ सिद्धि द्वारा किया गया हर गलत आचरण ही भ्रष्टाचार है
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

भ्रष्टाचार: एक गंभीर समस्या
भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं या अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक समस्या है जिसमें किसी भी गलत आचरण को, जो स्वार्थ सिद्धि के लिए अनैतिक रूप से किया जाता है, भ्रष्टाचार के रूप में देखा जाता है। यह एक ऐसा आचरण है जो किसी के व्यक्तिगत लाभ के लिए समाज और राष्ट्र की हितों से समझौता करता है। भ्रष्टाचार में काले धन का निर्माण होता है, जो न केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में असंतोष और असमानता को भी बढ़ावा देता है।
विभागों की मलाई पर तकरार
आजकल सरकारी मंत्रालयों में विभागों की मलाई पर तकरार आम बात बन गई है। विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच इस मलाई को लेकर विवाद और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं। सरकारी टेंडर में हिस्सा लेने के लिए कई बार परसेंटेज की मांग की जाती है, जिससे भ्रष्टाचार का एक और रूप सामने आता है। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में एक गृहमंत्री पर 100 करोड़ रुपये प्रतिमाह की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था, और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। यह इस बात का प्रतीक है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक फैला हुआ है और यही कारण है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को प्रभावी बनाना चुनौतीपूर्ण है।
भ्रष्टाचार का आर्थिक प्रभाव

भ्रष्टाचार का सीधा असर विकास की दर पर पड़ता है। जब सरकार कोई निर्माण कार्य करती है, जैसे कि सड़क निर्माण, तो कई बार भ्रष्टाचार के कारण इन कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उदाहरण के तौर पर, यदि एक करोड़ रुपये की सड़क निर्माण परियोजना में 50 लाख रुपये का घोटाला हो, तो यह सड़क समय से पहले टूट सकती है। हालांकि, अगर घूस की राशि को शेयर बाजार में निवेश किया जाता है, तो इसका आर्थिक प्रभाव कम हो सकता है। भारत और चीन जैसे देशों में भ्रष्टाचार के बावजूद विकास दर उच्च रही है क्योंकि भ्रष्टाचार के पैसे का कुछ हिस्सा घरेलू उद्यमियों के पास गया, जिससे इन देशों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
भ्रष्टाचार के कारण
हमारे समाज में भ्रष्टाचार एक अंश बन चुका है। लोग सरकारी काम जल्दी करवाने के लिए रिश्वत देने को मजबूर होते हैं। उदाहरण के लिए, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, या हेलमेट ना पहनने पर ट्रैफिक पुलिस को पैसे देकर बचने की कोशिश करना, ये सभी समाज में फैले भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं। यह हमारी मानसिकता और समाज के सामान्य व्यवहार को दर्शाता है, जिसमें हम भ्रष्टाचार को एक सहज प्रक्रिया मानने लगे हैं। अगर हमें इस समस्या से निपटना है तो हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियों से बाहर निकलना होगा।
क्यों कहा जाता है “मलाई वाला विभाग”?
कुछ विभागों को “मलाई वाला विभाग” कहा जाता है, जैसे कि लोक निर्माण, सरकारी टेंडर, गृह परिवहन मंत्रालय आदि। इन विभागों में सबसे अधिक घोटाले होते हैं और इनमें काम करने वाले अधिकारी से लेकर मंत्री तक शामिल होते हैं। इनमें खनन विभाग का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है, जो अक्सर भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण सुर्खियों में रहता है। खनन विभाग में होने वाले घोटाले, जैसे कि कोयला खदान आवंटन घोटाला, इन विभागों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली को उजागर करते हैं। इन घोटालों में मंत्री, अधिकारी और यहां तक कि चपरासी भी शामिल होते हैं, जो भ्रष्टाचार के हर पहलू में लिप्त होते हैं।
निष्कर्ष
भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं और अधिकारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति द्वारा किया गया गलत आचरण है, जो अपने स्वार्थ के लिए समाज और राष्ट्र के हितों से समझौता करता है। जब तक हम खुद अपनी सोच और कार्यों में सुधार नहीं करेंगे, तब तक भ्रष्टाचार की इस समस्या से निपटना असंभव है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होने के लिए अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र