– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

स्वयं को माचिस की तीली बनाने की बजाय शांत सरोवर बनाएं, जिसमें कोई अंगारा भी फेंके तो स्वयं ही बुझ जाए। क्रोध व उत्तेजना अपराध बोध का मुख्य प्रवेश द्वार हैं, जो व्यक्ति को हिंसा, भ्रष्टाचार और अमानवीय कृत्यों की ओर धकेलते हैं।

क्रोध: सबसे बड़ा शत्रु
क्रोध विवेक नष्ट कर देता है, जिससे व्यक्ति आपा खो बैठता है और गलत फैसले लेता है। यह आत्म-विनाश का कारण बनता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, क्रोध प्रबंधन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है, जिसमें ध्यान, आत्मनिरीक्षण और सकारात्मक ऊर्जा को अपनाना प्रभावी उपाय हैं।

शांति: सतयुग की ओर कदम
यदि हम शांत, परोपकारी और प्रेमपूर्ण स्वभाव अपनाएं, तो समाज अपराध-मुक्त बन सकता है। भाईचारे, ईमानदारी और सद्भाव का वातावरण बनेगा, जहां बिना ताले के घर छोड़ने की कल्पना भी साकार हो सकेगी।

अतः, क्रोध त्यागें और परोपकारी भाव अपनाएं, यही सुखी जीवन और अपराध-मुक्त भारत की कुंजी है।

Share via
Copy link