श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र केवल ग्रंथ नहीं, भारतीय दर्शन, कला और जीवन मूल्यों के स्तंभ हैं:

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ऐतिहासिक सम्मान प्राप्त हुआ है। 17 अप्रैल 2025 को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भारत के दो महान ग्रंथों — श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र — को अपनी मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल कर लिया है। यह निर्णय न केवल भारत के लिए गौरव का विषय है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय दर्शन और कलाओं की कालजयी प्रासंगिकता का प्रमाण भी है।

भारतीय ज्ञान परंपरा को ऐतिहासिक वैश्विक पहचान

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र मात्र धार्मिक अथवा कलात्मक ग्रंथ नहीं, बल्कि वे ऐसे प्रेरणास्रोत हैं जो मानवीय जीवन, समाज, संस्कृति और दर्शन को दिशा प्रदान करते हैं। इनकी वैश्विक मान्यता इस बात का प्रमाण है कि भारत की शाश्वत परंपराएं आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं जितनी सहस्रों वर्ष पूर्व थीं।

यूनेस्को का ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ कार्यक्रम

वर्ष 1992 में प्रारंभ किया गया यह कार्यक्रम विश्व की महत्वपूर्ण दस्तावेजी धरोहरों के संरक्षण, डिजिटलीकरण और प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित है। इस सूची में शामिल होना किसी ग्रंथ या दस्तावेज को वैश्विक धरोहर के रूप में मान्यता देने के समान है।
भारत से अब तक इस रजिस्टर में 14 प्रविष्टियां शामिल हो चुकी हैं, जिनमें ताम्रपत्र, ऋग्वेद, रामचरितमानस, पंचतंत्र और अष्टाध्यायी जैसी अनुपम कृतियाँ सम्मिलित हैं। अब गीता और नाट्यशास्त्र का जुड़ना भारत के बौद्धिक खजाने को और समृद्ध करता है।

श्रीमद्भगवद्गीता: धर्म, दर्शन और कर्तव्य का विश्वदर्शन

700 श्लोकों और 18 अध्यायों में विभक्त यह ग्रंथ महाभारत का हृदय है। यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ तत्वों को सरलता से स्पष्ट करने वाला अद्वितीय दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान के सिद्धांतों को जीवनमूल्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ आज भी विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित होकर प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

नाट्यशास्त्र: भारतीय कला परंपरा का विश्वकोश

भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र प्रदर्शन कलाओं पर आधारित एक महाग्रंथ है, जो नृत्य, संगीत, अभिनय, रस-भाव, रंगमंच और सौंदर्यशास्त्र की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। यह न केवल भारतीय रंगमंच और काव्य की नींव है, बल्कि इसकी गूंज वैश्विक कला परंपराओं में भी सुनाई देती है।

केवल सम्मान नहीं, एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व

इस उपलब्धि के साथ भारत पर यह नैतिक दायित्व भी है कि वह वेद, उपनिषद, आयुर्वेद संहिताएं, तंत्र ग्रंथ, वास्तुशास्त्र जैसे अन्य प्राचीन ग्रंथों को संरक्षित करे और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उचित स्थान दिलाए। यह समय है जब हम अपनी समृद्ध विरासत को न केवल अगली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ, बल्कि विश्व संवाद का अभिन्न हिस्सा भी बनाएं।

प्रधानमंत्री और संस्कृति मंत्री की प्रतिक्रिया

भारत के प्रधानमंत्री और केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने इस उपलब्धि को अत्यंत गर्व का क्षण बताया है। प्रधानमंत्री ने इसे भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक समृद्धि की वैश्विक स्वीकृति बताया, वहीं संस्कृति मंत्री ने इसे भारतीय शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का उत्सव करार दिया।

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना केवल एक सांस्कृतिक उपलब्धि नहीं, अपितु भारत के शाश्वत ज्ञान और वैश्विक दृष्टिकोण की पुनः पुष्टि है। यह उन असंख्य ऋषियों, कलाकारों, विचारकों और शिल्पियों के प्रति श्रद्धांजलि है जिन्होंने इस अमूल्य ज्ञान को रचा, संजोया और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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