दहशतगर्दी के विरोध में पूरा कश्मीर बंद सफ़ल-पहलगाम वासी सड़कों पर उतरे, विरोध प्रदर्शन किया-मस्जिदों के लाउडस्पीकरों में बैंड में शामिल होने की अपीलें

कश्मीरियों का साथ-पूरी दुनियाँ का हाथ-भारत की एक्शन पर तुरंत रिएक्शन की रणनीति लगातार चली तो नक्सलवाद की तरह आतंकवाद पर भी डेड लाइन 31 मार्च 2026 हो सकती है

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

— “इंडियन आर्मी ज़िंदाबाद, हम हिंदुस्तानी हैं; हिंदुस्तान हमारा है” के नारों से गूंज उठी घाटी

  1. घटनाक्रम : 22 अप्रैल 2025

स्थान: पहलगाम, जम्मू‑कश्मीर

वृत्तांत: सशस्त्र आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोली‑बारी की; 27 निधन, अनेक घायल।

प्रभाव: स्थानीय अर्थ‑व्यवस्था, जो मुख्यतः पर्यटन‑आधारित है, को गहरा आघात।

  1. ऐतिहासिक प्रतिक्रिया — पहली बार एकजुट घाटी

40 वर्ष से कश्मीर कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार, स्थानीय विरोध का यह स्वरूप अभूतपूर्व है।

  1. सर्वदलीय व सामाजिक समर्थन

राजनीतिक एकता: नेशनल कॉन्फ़्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स पार्टी, ‘अपनी पार्टी’—सभी ने बंद का समर्थन।

हुर्रियत का रुख: मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने भी शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान कर घटना की निंदा की।

टैक्सी यूनियन की मिसाल: पीड़ित पर्यटकों को 24×7 मुफ़्त परिवहन, ठहरने व रक्तदान की पेशकश; हेल्पलाइन नंबर जारी।

  1. केंद्र की सख़्त कार्रवाइयाँ

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 23 अप्रैल की शाम आपात बैठक के बाद-

सिंधु जल संधि (1960) को अस्थायी निलंबन।

एकीकृत चेक‑पोस्ट अटारी तत्काल बंद।

एसएएआरसी वीज़ा छूट: पाक नागरिकों पर रोक; जारी वीज़ा रद्द।

राजनयिक कटौती: दोनों देशों के उच्चायोगों में सैन्य सलाहकारों की वापसी व स्टाफ घटाकर 30 तक सीमित।

“नक्सलवाद मॉडल” : आतंकवाद पर Deadline 31 मार्च 2026?

नक्सल‑माओवाद के उन्मूलन हेतु सरकार ने पहले ही 31 मार्च 2026 की समय‑सीमा तय की है।

यदि “एक्शन पर तुरंत रिएक्शन” की यही नीति जारी रही तो आतंकवाद पर भी वही डेड‑लाइन संभव—ऐसा मानना है कर‑विशेषज्ञ व लेखक एडवोकेट किशन स. भावनानी का।

  1. जन‑आक्रोश से उम्मीद की किरण

कश्मीर की आत्मा ने इस हमले को कश्मीरियत पर हमला माना है। घाटी‑व्यापी सहानुभूति, आर्थिक हितों पर चोट, और सर्वदलीय लामबंदी ने एक स्पष्ट संदेश दिया:

“आतंक का अब कोई स्थान नहीं; कश्मीर खुद इसके ख़िलाफ़ खड़ा है।”

यदि यही जन‑दबाव कायम रहा और राजनीतिक‑सुरक्षात्मक इच्छाशक्ति सुदृढ़ रही, तो 35 वर्षों बाद फूटे इस सामूहिक विद्रोह को आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक मोड़ माना जा सकता है।

निष्कर्ष

पहलगाम का रक्तरंजित हमला त्रासदी मात्र नहीं, बल्कि घाटी में बनते नए सामूहिक चेतना का प्रस्थान‑बिंदु है। कश्मीरवासियों का यह दुर्दम्य स्वर आतंक‑मुक्त भविष्य की ओर पहला ठोस क़दम सिद्ध हो सकता है- जिसका समर्थन देश ही नहीं, पूरी दुनिया कर रही है।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Share via
Copy link