भगवान परशुराम ने समाज में एकता समरसता का संदेश दिया जो उनकी जयंती का महत्वपूर्ण पहलू है
पृथ्वी पर जब-जब अत्याचार व पाप बढ़ते हैं तो जीवों का कल्याण व रक्षा करने संतो महात्माओं युगपुरुषों का अवतरण हुआ है, बड़े बुजुर्गों का सत्य कथन
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

– वैश्विक स्तर पर भारत को “पृथ्वी का सबसे बड़ा आध्यात्मिक महाकुंभ” कहा जाता है। यह विचार मैंने कई बार अपने बड़े बुजुर्गों से सुना है। आज भी हम भारत में बड़े-बड़े धार्मिक व आध्यात्मिक आयोजनों को होते देख रहे हैं, जिनका सबसे ताजा उदाहरण महाकुंभ रहा, जिसने पूरी दुनिया में मिसाल कायम की।
बुजुर्गों का मानना है कि जब-जब पृथ्वी पर अन्याय, अत्याचार और पाप का अतिरेक होता है, तब-तब संतों, महात्माओं और युगपुरुषों का अवतरण होता है। इसी संदर्भ में 29 अप्रैल 2025 को भगवान विष्णु के छठवें अवतार, भगवान परशुराम की जयंती का महोत्सव मनाया जाएगा।
भगवान परशुराम: एक परिचय
भगवान परशुराम ने समाज में एकता और समरसता का संदेश दिया, जो उनकी जयंती का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। उन्होंने जब धरती पर अन्याय और अत्याचार बढ़ते देखे, तब आवाज उठाई और दुष्ट शक्तियों का दमन किया।
भारतीय वाङ्मय में परशुराम जी का चरित्र सबसे दीर्घजीवी माना गया है। सतयुग के अंत से लेकर कलियुग के प्रारंभ तक उनका उल्लेख मिलता है। उनका जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में हुआ। वे सदैव निर्णायक और नियामक शक्ति रहे हैं, जिनकी भूमिका दुष्टों के दमन और सत्पुरुषों के संरक्षण में रही है।
परशुराम जी का सामाजिक योगदान

परशुराम जी ने:
- समाज में समरसता और एकता का संदेश दिया।
- दक्षिण भारत में कमजोर समाजों को संगठित कर समुद्र तटों को रहने योग्य बनाया।
- ब्रह्मकुंड से ब्रह्मपुत्र नदी प्रवाहित कराई।
- समुद्र तटों पर बंदरगाहों का विकास किया।
- न्याय आधारित शासन प्रणाली का प्रचार किया।
उन्होंने समाज में जाति आधारित भेदभाव को अस्वीकार करते हुए संस्कार और चरित्र को प्रमुखता दी।
क्षत्रियों के विरोध का सही कारण
परशुराम जी द्वारा क्षत्रियों का वध केवल जातीय कारणों से नहीं था। उन्होंने उन अहंकारी और धर्म भ्रष्ट क्षत्रिय राजाओं को दंडित किया, जो समाज रक्षण के अपने कर्तव्यों को भूल चुके थे। अपने पिता जमदग्नि ऋषि की हत्या के बाद उनके भीतर अन्याय के खिलाफ संघर्ष की ज्वाला और भड़क उठी थी।
परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व
- परशुराम जयंती वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है, जो अक्षय तृतीया भी कहलाती है।
- इस दिन बिना किसी विशेष मुहूर्त के सभी शुभ कार्य संपन्न किए जा सकते हैं।
- श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं, हवन करते हैं, दान करते हैं और भगवान परशुराम का पूजन करते हैं।
- परशुराम जी ज्ञान, शक्ति और न्याय के प्रतीक माने जाते हैं।
- वे सप्त चिरंजीवी में से एक हैं (अश्वत्थामा, बलि, परशुराम, विभीषण, महर्षि व्यास, हनुमान, कृपाचार्य)।
भगवान परशुराम का वंश और महत्ता
परशुराम जी का जन्म भृगु वंश में हुआ। भृगु वंश के ऋषि भृगु को:

- अंतरिक्ष विज्ञान,
- चिकित्सा विज्ञान,
- और नीति शास्त्र का जनक माना गया है।
भृगु संहिता, जो ग्रहों और नक्षत्रों की गणना का पहला ग्रंथ है, इन्हीं के द्वारा रचित है। महर्षि भृगु की वंशज होने के नाते परशुराम जी ने भी धर्म और नीति की रक्षा हेतु कार्य किए।
पौराणिक प्रसंग
पुराणों के अनुसार:
- कार्तवीर्य अर्जुन जैसे अत्याचारी क्षत्रियों द्वारा निर्दोषों पर हो रहे अत्याचार से पृथ्वी व्यथित थी।
- माता पृथ्वी की पुकार पर भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया।
- परशुराम ने अत्याचारियों का नाश कर पृथ्वी पर न्याय और शांति की स्थापना की।
निष्कर्ष
अतः उपरोक्त अध्ययन और विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने समाज में एकता और समरसता का संदेश दिया, और जब-जब धरती पर पाप बढ़े, तब-तब युगपुरुषों का अवतरण हुआ।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र