सत् विद्या यदि का चिन्ता, वराकोदर पूरणे-यदि सच्चा ज्ञान हो तो भूख मिटाने की चिंता नहीं करनी पड़ती।

पृथ्वी पर बुद्धि क्षमता में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि- विद्या, ज्ञान और कौशलता से परिपूर्ण होना समय की मांग

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया – धरती पर यदि किसी योनि को बुद्धिमत्ता, विवेक और चेतना का सर्वोच्च रूप माना गया है, तो वह निस्संदेह मानव योनि है। यह बात न केवल हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है, अपितु आध्यात्मिक प्रवचनों, संतों के उपदेशों और अनुभवी बुज़ुर्गों की जीवन दृष्टि में भी बार-बार प्रतिध्वनित होती रही है। यदि हम इसे व्यवहारिक रूप से देखें, तो यह पूर्णतः सत्य प्रतीत होता है।

हम सभी जानते हैं कि मनुष्य जन्म के साथ किसी भी प्रकार का ज्ञान लेकर नहीं आता — वह जन्म के उपरांत ही सीखता है, अनुभव करता है और विविध कौशलों के माध्यम से अपनी आजीविका संचालित करता है। जीवन में आने वाले सुख-दुख, समृद्धि-ग़रीबी और संघर्ष ही उसे जीवन के वास्तविक अर्थ सिखाते हैं।

यदि कोई व्यक्ति विद्या, ज्ञान और कौशल – इन तीनों में से किसी एक या सभी को जीवन में आत्मसात कर ले, तो वह निश्चित रूप से सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ता है। ये तीनों तत्व मनुष्य के जीवन के लिए उस ब्रह्मास्त्र के समान हैं जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उसकी राह आसान बनाते हैं।

शिक्षा का मूल आधार मानसिक स्वास्थ्य है, और स्वस्थ मानसिक स्थिति ही व्यक्ति को सीखने और सृजनात्मकता में सक्षम बनाती है। प्री-स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक की संपूर्ण प्रणाली का उद्देश्य भी इन्हीं तीन मंत्रों – विद्या, ज्ञान और कौशल – को विद्यार्थियों में विकसित करना है। यह मंत्र केवल जीवन यापन का साधन नहीं, बल्कि जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करने की कुंजी हैं।

भारत एक आस्था प्रधान देश है, जहां अधिकांश लोग भाग्य और ईश्वर पर गहरी आस्था रखते हैं। किंतु यह भी उतना ही सत्य है कि जब कोई व्यक्ति विद्या, ज्ञान और कौशल के पथ पर दृढ़तापूर्वक अग्रसर होता है, तो भाग्य भी उसके समर्पण और परिश्रम के आगे झुकने को बाध्य होता है। जैसा कहा जाता है — “भगवान भूखा उठाता है, पर भूखा सुलाता नहीं।” किन्तु यह भी उतना ही आवश्यक है कि मनुष्य अपनी नियति को संवारने हेतु उपरोक्त तीनों मंत्रों को साधे।

आज जब देश आत्मनिर्भर भारत, 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और India@2047 जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों की ओर अग्रसर है, तब हर नागरिक का दायित्व है कि वह इन मूलभूत तत्वों को आत्मसात करे। इन तीनों के माध्यम से न केवल व्यक्ति स्वयं आगे बढ़ता है, बल्कि उसका गांव, शहर, जिला और अंततः राष्ट्र भी विकास की गति पकड़ता है।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने एक हालिया संबोधन में कहा था —
“सत् विद्या यदि का चिन्ता, वराकोदर पूरणे।”
अर्थात जिसके पास विद्या, ज्ञान और कौशल है, उसे जीवन की चिंता नहीं सताती; वह स्वयं अपनी राह बना लेता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि 21वीं सदी के भारत को वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार करना है, और इसके लिए शिक्षा और कौशल विकास सर्वोपरि है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इस दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से स्थान दिया गया है।

निष्कर्षतः, यदि हम गहनता से अवलोकन करें तो पाएंगे कि मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर अर्जित विद्या, ज्ञान और कौशल ही ऐसे मूल मंत्र हैं, जो न केवल व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से उबार सकते हैं, बल्कि उसे आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी और सफल नागरिक के रूप में स्थापित कर सकते हैं। और जब प्रत्येक नागरिक सशक्त होगा, तभी भारत एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा।

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