भारत नें दुश्मन देश के परमाणु हथियारों को आईएईए की निगरानी में लाने की ओर कदम बढ़ाया 

भारत का आतंकवाद के खिलाफ़ जीरो टॉलरेंस का दृढ़ संकल्प-पाक के परमाणु ब्लैकमेल की धमकीसे विचलित नहीं हुआ-अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से निगरानी की मांग उचित

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

वैश्विक मंच पर बीते वर्षों में गुटबाजी आधारित युद्धों का प्रचलन बढ़ा है। रूस-यूक्रेन और इज़राइल-हमास संघर्ष इसके ज्वलंत उदाहरण हैं, जहां प्रत्यक्ष युद्ध में अप्रत्यक्ष समर्थन देने वाले देश हथियार, संसाधन और रणनीतिक मदद मुहैया कराते हैं। इस परिदृश्य में परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकियां चिंता का विषय बन चुकी हैं। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों के विनाशकारी परिणाम आज भी पीढ़ियों को प्रभावित कर रहे हैं।

भारत-पाकिस्तान संघर्ष में भी यह परमाणु ब्लैकमेल सामने आया है। हालिया घटनाक्रम में पाकिस्तान की ओर से भारत को दी गई परमाणु हमले की धमकियों के बावजूद भारत डटा रहा और आतंकवाद के खिलाफ अपने ‘जीरो टॉलरेंस’ के संकल्प पर कायम रहा। 15 मई 2025 को जम्मू-कश्मीर में सैनिकों के सम्मान में पहुंचे भारत के रक्षा मंत्री ने इस संकल्प को दोहराते हुए कहा कि भारत, पाकिस्तान की परमाणु धमकियों से विचलित नहीं हुआ और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब यह सोचना चाहिए कि क्या ऐसे गैरजिम्मेदार राष्ट्र के हाथों में परमाणु हथियार सुरक्षित हैं।

भारत की नई पहल: परमाणु हथियारों की निगरानी की मांग

भारत ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को निगरानी में लाने की मांग की है। रक्षा मंत्री के अनुसार, पाकिस्तान को अपने परमाणु बमों को IAEA की निगरानी में लाना चाहिए। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि यह पहल सैन्य नीति के तहत हथियार खत्म करने की नहीं, बल्कि दुश्मन राष्ट्र के हथियारों को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में लाने की ओर पहला कदम है।

ब्लैकमेल कब थमेगा?

परमाणु ब्लैकमेल को रोकने के लिए तीन रास्ते हो सकते हैं:

  1. IAEA के माध्यम से निगरानी
  2. UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) में प्रस्ताव
  3. किसी तृतीय शक्ति द्वारा नियंत्रण

हालांकि, पाकिस्तान एनपीटी (नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) का सदस्य नहीं है, इसलिए IAEA के पास पाक के हथियारों की निगरानी का अधिकार नहीं है। फिर भी UNSC के जरिये भारत यह मुद्दा उठा सकता है। सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव तभी पारित हो सकता है जब 15 में से 9 सदस्य पक्ष में हों और कोई स्थायी सदस्य वीटो न करे। चीन द्वारा वीटो दिए जाने की संभावना है, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों से चीन को संतुलित किया जा सकता है।

दोहरा खतरा: तुर्किए और आतंकी संगठन

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर दोहरा खतरा मंडरा रहा है — एक ओर तुर्किए, जो इस्लामी राष्ट्र होने के कारण पाकिस्तान का समर्थन करता है, वहीं दूसरी ओर, टीटीपी जैसे आतंकी संगठन, जिन्होंने कई बार पाक के परमाणु हथियारों पर कब्जा करने की धमकी दी है। ऐसी स्थिति में, पाकिस्तान को अपने हथियारों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने सरेंडर कर देना ही बेहतर विकल्प हो सकता है।

परमाणु हथियार सरेंडर करने वाले देश

इतिहास में कई देशों ने जिम्मेदारी के साथ अपने परमाणु कार्यक्रमों को समाप्त किया है:

  • दक्षिण अफ्रीका (1977)
  • बेलारूस (1996)
  • कज़ाकिस्तान (1999)
  • यूक्रेन (1996 – रूस को हथियार सौंपे)

यह उदाहरण दर्शाते हैं कि एक राष्ट्र के परमाणु हथियारों का सरेंडर कोई नई या असंभव प्रक्रिया नहीं है।

IAEA: क्या भूमिका निभा सकता है?

IAEA एक स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 29 जुलाई 1957 को हुई थी। इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है। यह परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है और हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए कार्य करता है। हालांकि, IAEA को किसी देश के हथियारों की निगरानी का अधिकार तभी है जब वह देश एनपीटी का हस्ताक्षरकर्ता हो।

इसके बावजूद, पाकिस्तान जैसे गैर-जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र के हथियारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र और IAEA को नए दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिससे वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

निष्कर्ष

अब समय आ गया है कि “बहुत हुआ परमाणु ब्लैकमेल” का नारा सिर्फ नारा न रहे, बल्कि एक वैश्विक पहल का रूप ले। भारत ने साहसिक कदम उठाया है, अब संयुक्त राष्ट्र को भी इस मुद्दे पर ठोस कार्यवाही करनी चाहिए। यूएनएससी के माध्यम से पाकिस्तान जैसे राष्ट्र के परमाणु हथियारों को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में लाने का प्रयास समय की मांग है।

संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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