– सुरेश गोयल ‘धूप वाला’

जीवन पद्धति नहीं, एक सनातन संस्कृति

भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ और सनातन संस्कृति का दर्जा प्राप्त है। यह केवल कुछ परंपराओं, रीति-रिवाजों या धार्मिक कर्मकांडों का समूह नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक समग्र और संतुलित कला है। हमारे ऋषियों ने जीवन को सोलह संस्कारों और चार आश्रमों के माध्यम से ऐसा स्वरूप प्रदान किया, जो जन्म से मृत्यु तक मानव को संयम, संतुलन और सदाचार की ओर प्रेरित करता है।

आश्रम व्यवस्था : संतुलन और उत्तरदायित्व का दर्शन

प्राचीन काल में जीवन के चार चरण — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास — केवल उम्र की गणना नहीं थे, बल्कि प्रत्येक कालखंड का एक स्पष्ट उद्देश्य था। ब्रह्मचर्य में ज्ञान, चरित्र और आत्मसंयम; गृहस्थ में कर्तव्य और सेवा; वानप्रस्थ में मोह से दूरी और संन्यास में आत्मबोध। यह व्यवस्था केवल वैयक्तिक अनुशासन नहीं, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता की भी आधारशिला थी।

पश्चिमी प्रभाव और नैतिक मूल्यों का क्षरण

आज का समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण, तथाकथित आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर परिवार, रिश्ते और संस्कारों का क्षरण स्पष्ट दिखाई दे रहा है। लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक विवाह, विवाह से परहेज और रिश्तों में बढ़ती विकृति समाज के नैतिक आधार को हिला रही है। हाल की कुछ घटनाएँ — जैसे सास का अपनी बेटी के मंगेतर के साथ भाग जाना या बहू का चाचा ससुर संग घर छोड़ना — हमारी सांस्कृतिक गिरावट के खतरनाक संकेत हैं।

धार्मिक आयोजनों की बाढ़, आचरण का सूखा

यह विडंबना ही है कि देशभर में धार्मिक प्रवचन, यज्ञ-हवन और सत्संगों की संख्या तो बढ़ रही है, परंतु समाज में आचरण, नैतिकता और आत्मसंयम का अभाव बढ़ता जा रहा है। धर्म का सार पीछे छूट गया है, और उसका आडंबर सामने आ गया है। धर्म आज अनेक लोगों के लिए केवल प्रदर्शन, मनोरंजन या राजनीतिक माध्यम बनकर रह गया है।

समय की पुकार : संस्कृति की ओर वापसी

समाज के इस विघटन को रोकने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटें। हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही भारतीय संस्कारों, मर्यादाओं और जीवन-मूल्यों की शिक्षा देनी होगी। धर्म का पालन केवल रीति के रूप में नहीं, व्यवहार में होना चाहिए। आत्मचिंतन, संयम, कर्तव्यपरायणता और सेवा जैसे मूल गुणों को पुनः जीवन में उतारना होगा। तभी हम एक सशक्त, मर्यादित और संतुलित समाज की पुनर्स्थापना कर सकते हैं।

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