
भारत के साथ संघर्ष में उलझे पाकिस्तान हुकुमरानों को बुरी खबर आई-खैबरपख्तून,बलूचिस्तान व सिंध ने उग्र तेवरों में आज़ादी की आवाज उठाई-गृहमंत्री का घर जलाने की स्थिति आई
भारत से तनाव के बीच पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अलग सिंधु देश बनाने की मांग पर जबरदस्त आंदोलन में प्रदर्शन का आगाज़ 1972 से ही शुरू है
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तर पर देखा जा रहा है कि भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच पाकिस्तान को घरेलू मोर्चे पर एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और अब सिंध प्रांत में अलगाववादी आंदोलन तेज़ हो गए हैं। सिंध प्रांत में पानी के बंटवारे को लेकर भड़की जनता ने गृह राज्यमंत्री का घर तक जला डाला है। यह घटना न केवल पाकिस्तान में बढ़ते असंतोष को दर्शाती है, बल्कि एक संभावित गृह युद्ध की चेतावनी भी देती है।
इतिहास का संदर्भ
अगर हम इतिहास की ओर नजर डालें तो सिंध, गुजरात और मुंबई पहले ब्रिटिश काल की बॉम्बे प्रेसिडेंसी के अंतर्गत आते थे। 1936 में सिंध को अलग प्रांत का दर्जा मिला। 1947 में विभाजन के समय सिंध की विधानसभा ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया, लेकिन इसके बाद सिंध में हिंसा और हिंदू नरसंहार की भयावह घटनाएं सामने आईं।
आज वही सिंध, जो कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था, अब पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रहा है। यह आंदोलन 1972 में जी. एम. सैयद द्वारा शुरू किया गया था, जिसे अब “जय सिंध फ्रीडम मूवमेंट” ने गति दी है।
पानी का झगड़ा: चोलिस्तान नहर परियोजना
सिंध में उबाल की एक मुख्य वजह है – चोलिस्तान नहर परियोजना। पाकिस्तान की संघीय सरकार सिंधु नदी से 176 किलोमीटर लंबी छह नहरें निकालकर पंजाब के चोलिस्तान रेगिस्तान की ओर पानी ले जाना चाहती है। सिंध के लोग इसे अपनी कृषि और जीवन-रोजगार के लिए खतरा मानते हैं। सिंधु नदी ही सिंध की जीवनरेखा है, और अगर उसका पानी पंजाब की ओर मोड़ दिया गया, तो सिंध में सूखा, भुखमरी और विनाश तय है।
भारत की भूमिका और सिंधु जल संधि
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित किए जाने से पाकिस्तान पर और दबाव बना है। यह निर्णय पाकिस्तान के लिए दोहरे संकट की स्थिति बना रहा है – एक ओर भारत से तनाव और दूसरी ओर आंतरिक विद्रोह।

सिंध में आंदोलन की तीव्रता
जय सिंध फ्रीडम मूवमेंट के नेतृत्व में सिंध में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए हैं। लापता सिंधी राष्ट्रवादियों की रिहाई, मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज, और सिंध के संसाधनों पर पंजाब के नियंत्रण का विरोध – ये सभी मुद्दे आंदोलन की आग को हवा दे रहे हैं।
भाषाई भेदभाव और प्रशासनिक नियंत्रण
सिंधियों को सरकारी नौकरियों में तब तक जगह नहीं मिलती जब तक उन्हें उर्दू न आती हो। विभाजन के बाद पाकिस्तान गए मुहाजिरों ने सिंध में प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित कर लिया, जिससे स्थानीय लोग हाशिए पर चले गए। इससे सिंधियों में अलगाव की भावना और भी गहरी हो गई है।
हिंसक मोड़ और गृह राज्यमंत्री का घर जलाया गया
21 मई 2025 को सिंध में हालात उस समय विस्फोटक हो गए जब प्रदर्शनकारियों ने सिंध के गृह राज्यमंत्री के घर को आग के हवाले कर दिया। इससे पहले सिंध के मोरो शहर में झड़पों के दौरान एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई थी। यह घटना सरकार के प्रति जनता के बढ़ते आक्रोश को दर्शाती है।
जल संकट और आर्थिक प्रभाव
1999 से 2023 तक सिंध को औसतन 40% जल की कमी का सामना करना पड़ा, जबकि पंजाब में यह कमी मात्र 15% रही। सिंध की 2.5 मिलियन एकड़ भूमि, विशेष रूप से आम के बागान, इस संकट से बुरी तरह प्रभावित हुई है।
निष्कर्ष
अगर इन घटनाओं का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान अब केवल भारत से सीमा पर नहीं, बल्कि अपने ही भीतर भी एक गंभीर संघर्ष का सामना कर रहा है। सिंध और बलूचिस्तान जैसे प्रांत अब खुलकर पाकिस्तान से आज़ादी की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार और सेना को अब इन आंतरिक आवाज़ों को दबाने की बजाय उनके साथ संवाद करना होगा, नहीं तो यह संकट एक पूर्ण गृह युद्ध का रूप ले सकता है।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र