— एक वैश्विक सांस्कृतिक तुलनात्मक दृष्टिकोण
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बाद अब दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफ़ोसा से ट्रंप की ऑन कैमरा नोक झोक क्या अपमान नहीं ?
वैश्विक डिजिटल युग में भारतीय संस्कृति संस्कारों व अतिथि देवो भव: जैसे अनेकों परंपराओं संस्कारों का संज्ञान लेकर अनुसरण करना समय की मांग
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र– वैश्विक स्तरपर भारतीय संस्कृति की जड़ें अतिथि-सत्कार की भावना में इतनी गहराई से समाई हुई हैं कि “अतिथि देवो भवः” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। जब भारत ने G-20 की मेज़बानी की थी, तब पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे भारत ने राष्ट्रपति से लेकर अंतिम प्रतिनिधि तक का आतिथ्य-सत्कार अपनी पूरी श्रद्धा और विनम्रता के साथ किया। इसके विपरीत, हाल ही में अमेरिका में घटित घटनाओं पर यदि नज़र डालें, तो एक अलग ही तस्वीर सामने आती है—एक ऐसी तस्वीर जिसमें अतिथियों के साथ किए गए व्यवहार में सम्मान के स्थान पर टकराव और अपमान की झलक दिखती है।
व्हाइट हाउस में अतिथि-सत्कार या अपमान?
22 मई 2025 को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच व्हाइट हाउस की आधिकारिक बैठक के दौरान जो दृश्य सामने आए, वे न केवल चौंकाने वाले थे, बल्कि अमेरिका की अतिथि-नीति पर प्रश्नचिन्ह भी लगाते हैं। मीटिंग के दौरान एक पत्रकार ने दक्षिण अफ्रीका में कथित श्वेत नरसंहार का मुद्दा उठाया। राष्ट्रपति रामाफोसा ने शांति से उत्तर देना चाहा, लेकिन ट्रंप ने ओवल ऑफिस की लाइटें बुझवा दीं और एडिट किए गए वीडियो दिखाने लगे, जो रामाफोसा को असहज करने के लिए पहले से तैयार किए गए प्रतीत होते थे।
जब लाइटें दोबारा ऑन हुईं, तो ट्रंप ने कई अखबारों की कटिंग्स दिखा कर अश्वेतों के खिलाफ हुई घटनाओं की जानकारी दी, मानो यह मीटिंग नहीं, बल्कि कोई अभियोग था। इसके बाद तो ट्रंप लगातार सवाल पर सवाल दागते गए और रामाफोसा की हालत ऐसी हो गई कि उनका चेहरा पढ़ा जा सकता था—वो इस आमंत्रण पर अफसोस करते दिखे।
क्या यह पहली बार हुआ है?

नहीं। इससे पहले फरवरी 2025 में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के साथ भी ट्रंप ने कुछ ऐसा ही व्यवहार किया था। युद्धरत देश के नेता से सहयोग की अपेक्षा रखने के बजाय ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने मिलकर उन्हें अपमानित किया। इससे पूर्व 2017 में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से ट्रंप ने हाथ मिलाने से इनकार किया था, वह भी कैमरे के सामने।
इन घटनाओं को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अमेरिका में, विशेषकर ट्रंप के प्रशासन में, अतिथि-सत्कार की परंपरा कमज़ोर रही है और वह एक राजनीतिक औजार की तरह प्रयुक्त होती दिखती है।
भारतीय संदर्भ और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
भारत में अतिथि देवो भव: केवल सरकारी नीतियों का हिस्सा नहीं, बल्कि यह हर भारतीय के हृदय में बसी संस्कृति है। जब कोई मेहमान हमारे घर आता है, तो बिना किसी अपेक्षा के हम उन्हें आदर-सत्कार से स्वागत करते हैं। चाय-नाश्ता पूछना, बच्चों से मिठाई मंगवाना, आत्मीयता से बातचीत करना—यह भारतीय परंपरा की पहचान है।
सरकारी स्तर पर भी, जब कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि भारत आता है, तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अधिकारीगण तक इस परंपरा का पालन करते हैं। हालांकि, कभी-कभी कुछ अपवाद भी सामने आते हैं—जैसे हाल ही में सीजेआई बीआर गवई को मुंबई आगमन पर स्वागत करने कोई वरिष्ठ अधिकारी नहीं पहुंचा, जो एक गंभीर चूक थी और इसके लिए राज्य सरकार को माफ़ी भी मांगनी पड़ी।
राजनीतिक स्वार्थ बनाम सांस्कृतिक गरिमा

व्हाइट हाउस में जो कुछ हुआ, वह न केवल राष्ट्रपति रामाफोसा के लिए अपमानजनक था, बल्कि वैश्विक राजनीतिक शिष्टाचार के लिए भी एक कलंक है। ट्रंप ने रंगभेद, श्वेत नरसंहार और उपहार नीति जैसे मुद्दों को उठाकर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास किया, जिसकी पुष्टि अमेरिका की घरेलू राजनीति से भी होती है।
सवाल यह नहीं है कि राष्ट्रपति रामाफोसा के देश में क्या चल रहा है, सवाल यह है कि एक आमंत्रित मेहमान से ऐसा व्यवहार करना क्या उचित है? क्या यह ‘प्रोटोकॉल’ है या ‘पोलिटिकल ड्रामा’?
अतिथि देवो भवः की प्रासंगिकता आज भी
डिजिटल युग में, जब हर दृश्य तुरंत वैश्विक हो जाता है, तब सांस्कृतिक व्यवहार की गरिमा और महत्व और अधिक बढ़ जाता है। भारत ने इसे बार-बार सिद्ध किया है कि वह अपने शासकीय व व्यक्तिगत व्यवहार में अतिथि को ईश्वर समान मानता है। इसके विपरीत, अमेरिका में हाल की घटनाएं दर्शाती हैं कि शक्ति की राजनीति ने शिष्टाचार को पीछे धकेल दिया है।
निष्कर्ष
भारत का अतिथि देवो भवः एक ऐसी संस्कृति है जिसे आज वैश्विक स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है। जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के नेता अपनी अतिथि-संस्कृति में चूक करते हैं, तो यह न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि अमेरिका की वैश्विक छवि को भी धूमिल करता है। वहीं भारत, जो हर मेहमान को दिल से अपनाता है, एक बार फिर वैश्विक नेतृत्व में नैतिक आदर्श प्रस्तुत करता है।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया